Father’s Day: बॉलीवुड में दिखे तरह-तरह के बाप, किसी ने मांगी प्यार की कुर्बानी, किसी ने हिला डाला सिस्टम
Father’s Day bollywood: हिंदी फिल्मों के पर्दे पर पिता के सैकड़ों रूप दिखे हैं. सुपर सितारे भी हीरो वाली पारी ढलने के बाद पिता बनकर आते हैं. उनकी कोशिश होती है कि पिता के रूप में भी अच्छे रोल मिलें. यहां जानें पर्दे के कुछ यादगार पिता.
Father’s Day 2022: सारे पिता एक जैसे होते हैं या सब अलग-अलग. इसका कोई ठोस जवाब नहीं हो सकता. बॉलीवुड फिल्मों में पिता के तमाम रंग दिखते हैं. सब कहानी की डिमांड से तय होता है. फिल्मों में पिता कभी मास्टरजी और पुलिस इंस्पेक्टर बना कर आदर्श दिखाए गए तो कभी गैंगस्टर और नेता के रूप में भ्रष्ट. कभी पिता बच्चे के लिए अपना सब कुछ लुटाते दिखा तो कभी उसने बच्चे से ही कुर्बानी मांग ली. फिल्मों में कई बार पिता बच्चे के लिए विलेन क्या, पूरे सिस्टम से टकरा गया. इन तमाम बातों के बीच बड़े पर्दे पर पिता के कुछ ऐसे किरदार दिखे हैं, जिन्हें आप कभी भुला नहीं पाएंगे.
मुगल-ए-आजम
हिंदी सिनेमा के इतिहास की टॉप पांच फिल्मों में शुमार निर्देशक के. आसिफ की फिल्म मुगल-ए-आजम में दिखे अकबर यानी पृथ्वीराज कपूर इस रोल में अमर हैं. इस कहानी में एक बादशाह और उसका बागी बेटा है. बादशाह के लिए यह बात बर्दाश्त से बाहर है कि उसके बेटे के दिल पर एक कनीज राज करे. उसके बेटे को तो हिंदुस्तान पर राज करना है. बादशाह चाहता है कि बेटा अपनी मोहब्बत को कुर्बान कर दे, उसे ठुकरा दे. बेटा जब नहीं मानता तो बादशाह जबर्दस्ती उसकी मोहब्बत को छीन लेता है.
दीवार
यश चोपड़ा की दीवार दो भाइयों (अमिताभ बच्चन-शशि कपूर) की टक्कर दिखाती है. यहां ज्यादातर हिस्से में पिता गायब है, लेकिन बैकग्राउंड में पूरे समय ‘बाप’ की गूंज है. मिल मालिक से समझौता करने वाले विजय के पिता से नाराज मजदूर इस बच्चे के हाथ पर गोद देते हैं, ‘मेरा बाप चोर है’. यही कहानी की नींव है. यह पंक्ति विजय को अपराधी बनाती है. वह समाज और व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा है. दीवार में ही हिंदी का संभवतः सबसे लोकप्रिय फिल्मी डायलॉग भी है, ‘मेरे पास मां है.’
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दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे
यहां दो तरह के पिता हैं. एक पिता कम और दोस्त ज्यादा है. दूसरा हिटलर है. यही विलेन है. अनुपम खेर शाहरुख के पिता बने हैं लेकिन काजोल के पिता के रूप में अमरीश पुरी जबर्दस्त है. हर पिता की तरह वह अपनी बेटी का हाथ काबिल और संस्कारी युवक के हाथों में देना चाहते हैं, जबकि शाहरुख की छवि उनके दिमाग में कुछ और होती है. खैर, अंत में यह पत्थर दिल पिता पिघलता है और बेटी को रिहा करते हुए कहता है, ‘जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिंदगी.’
सारांश
अनुपम खेर ने पहली ही फिल्म में जो छाप छोड़ी, आज भी दर्शकों के दिल में ताजा है. सेवानिवृत्त शिक्षक और उसकी पत्नी अमेरिका में एक घटना में मारे गए बेटे की अस्थियां भारत लौटने का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन हमारी व्यवस्था संभालने वाले अधिकारियों के दिल पत्थर के है. 1984 में आई इस फिल्म का अंतिम दृश्य दर्शक कभी नहीं भूल सकते. रोता-बिलखता पिता दिल चीर देने वाली बातों से सिस्टम को हिला डालता है. रिटायर्ड टीचर का रोल निभाते वक्त अनुपम खेर की उम्र मात्र 28 साल थी.
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पा
यह पिता-पुत्र की विशिष्ट कहानी है. पर्दे पर अभिषेक बच्चन अमिताभ बच्चन के पिता बने हैं. निर्देशक आर बाल्की की यह फिल्म प्रोजेरिया नाम की बीमारी को आधार बनाती है, जिसमें बच्चा उम्र से पांच गुना बड़ा दिखता है. डॉ.विद्या (विद्या बालन) और राजनेता अमोल (अभिषेक) अलग-अलग रहते हैं. अभिषेक को पता नहीं उसका एक बेटा है, ऑरो (अमिताभ बच्चन). घटनाएं तीनों को एक जगह लाती हैं और कहानी अंग्रेजी की इस कहावत की तरफ बढ़ जाती हैः चाइल्ड इज द फादर ऑफ मैन.