Mughal-e-Azam budget in Hindi: दुनिया की हर महानतम कलाकृति के पीछे कलाकार की सालों की मेहनत, हद दर्जे का जुनून और हार न मानने का जज्‍बा छिपा होता है. तभी कलाकार अपनी कृति के जरिए ऐसी छाप छोड़कर जाता है, जो उसे सदियों के लिए अमर बना देती है. बॉलीवुड में भी कई ऐसे कलाकार हुए हैं. आज हम उस जुनूनी बॉलीवुड डायरेक्‍टर की बात करेंगे, जिसने अपने पूरे करियर में केवल 2 फिल्‍में बनाईं. लेकिन एक फिल्‍म ने उसे ऐसा सफलता का ऐसा मुकाम दिलाया, जो 6 दशक बीतने के बाद भी कायम है. बात हो रही है फिल्‍म मुगल-ए-आजम के डायरेक्‍टर के. आसिफ की, जिन्‍होंने इस फिल्‍म के जरिए इतिहास रच दिया. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

14 साल में बनाई एक फिल्‍म 


मुगल-ए-आजम फिल्‍म 1960 में रिलीज हुई थी और उसे बनाने का सिलसिला 1947 में देश को आजादी मिलने से कुछ समय पहले ही शुरू हो गया था. फिल्‍म के डायरेक्‍टर के. आसिफ साहब इसके हर सीन को इस तरह परफेक्‍ट बनाना चाहते थे कि उसके किस्‍से सुनकर लोग आज भी दांतों तले उंगली दबा लें. यही वजह थी कि फिल्‍म को बनाने में 14 साल लग गए, साथ ही इस फिल्‍म निर्माण की लागत डेढ़ करोड़ रुपए पर पहुंच गई थी. जबकि उस समय में फिल्‍म का बजट 5 से 10 लाख रुपए हुआ करता था. 


हैरान कर देंगे के.आसिफ के जुनून से जुड़े ये किस्‍से 
 
- के.आसिफ साहब फिल्‍म के हर सीन को इतना रियल दिखाना चाहते थे कि सेट, कॉस्‍ट्यूम आदि से जुड़े हर काम के लिए देश के कोने-कोने से उस काम के महारथी बुलाए. जैसे एम्‍ब्रायडरी के लिए सूरत से कारीगर तो लोहे के काम के लिए राजस्‍थान से लोग बुलाए. 


- फिल्‍म के एक सीन में सलीम (दिलीप कुमार) को मोतियों पर चलकर महल में दाखिल होना था. इस सीन के लिए नकली मोती मंगवाए गए थे लेकिन के. आसिफ की जिद थी कि सलीम असली मोतियों पर चलकर जाएं, तभी उनके चेहरे पर मोतियों पर चलने का असली फील आएगा. इस सीन के लिए असली मोती मंगवाने के लिए 1 लाख रुपए खर्च किए गए. साथ ही मोती आने तक 20 दिन फिल्‍म की शूटिंग भी रुकी रही. 


- के.आसिफ चाहते थे कि उस समय के सबसे बड़े सिंगर गुलाम अली उनकी फिल्‍म के लिए गाना गाएं. लेकिन गुलाम अली साहब फिल्‍मों के लिए नहीं गाते थे, लिहाजा उन्‍होंने इंकार कर दिया. बाद में के.आसिफ को पीछे हटते ना देख उन्‍होंने एक गाने के लिए 25 हजार रुपए की डिमांड कर दी. के.आसिफ इस पर भी नहीं झुके और तुरंत 10 हजार रुपए एडवांस देकर गुलाम अली को गाने के लिए मना लिया. जबकि उस समय में बड़े गायकों को महीने में 300 से 500 रुपए ही मिला करते थे. 


- के.आसिफ सिगार पिया करते थे और फिल्‍म के हर एक सीन को परफेक्‍ट बनाने के लिए घंटों सोचा करते थे. उनकी एकाग्रता और काम में डूबने का आलम यह था कि वे हाथ में जलती सिगार को थामे सोच में डूबे रहते थे और सिगार से उंगलियां जल जाया करती थीं. उनके करीबी जानते हैं कि उनके एक हाथ की उंगलियां बुरी तरह जली रहती थीं. 


जाहिर है कि के.आसिफ का ये जुनून और दीवानगी ही थी जिसने फिल्‍म इंडस्‍ट्री को मुगल-ए-आजम के रूप में बड़ी विरासत दी. के आसिफ को इस क्लासिक फिल्म के लिए फिल्मफेयर और नेशनल फिल्म अवॉर्ड भी मिला. दशकों बाद आज भी इस फिल्‍म को बॉलीवुड की सबसे सफल फिल्‍मों में शुमार किया जाता है.