ये कहानी है जुबैदा बेगम की. जिन्होंने शादी, तलाक, फिर महाराजा का प्यार और फिर दर्दनाक मौत मिली. एक्ट्रेस की कहानी तो ऐसी है कि साल 2001 में 'जुबैदा' नाम से फिल्म भी बन चुकी है जिसमें करिश्मा कपूर ने लीड रोल प्ले किया था. इस फिल्म को उनके बेटे खालिद मोहम्मद ने ही लिखा था. फिल्म में जुबैदा बेगम  की डेथ मिस्ट्री से लेकर कई अन्य पहलुओं को दिखाया गया था. 


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जुबैदा की दर्दभरी दास्तां तो उनके खुद के घर से शुरू हो गई थी. जब उनके पिता को पता चला कि जुबैदा के दिल-दिमाग में एक्ट्रेस बनने का सपना पल रहा है तो पिता ने वहीं बेटी के सपनों का गला घोंट दिया. बेटी पर गुस्से में तमंचा तान दिया. इतना ही नहीं शादी तक करवा दी गई. यही वजह है कि जुबैदा बेगम ने करियर में सिर्फ एक ही फिल्म की थी 'उषा किरण' (1952) जिसमें गीता बाली ने लीड रोल प्ले किया था. मगर ये फिल्म भी कभी रिलीज नहीं हो पाई थी.


जुबैदा के पिता को ये बात नहीं पसंद थी कि
जुबैदा की जिंदगी में उनके पिता की काफी चलती थी. 1926 में आज के मुंबई के बोहरा शिया मुस्लिम परिवार में जुबैदा का जन्म हुआ. उनके पिता फिल्म स्टूडियो के मालिक थे तो मां फेमस सिंगर हुआ करती थीं. ऐसे में फिल्में, गायिकी और सिनेमा का कल्चर जुबैदा को परिवार से ही मिला. ऐसे में जुबैदा के मन में भी एक्ट्रेस बनने का सपना पैदा हुआ था. लेकिन जुबैदा के पिता को ये बात नहीं पसंद थी कि बेटी नाच गाना करे या फिल्मों में आए. वह सेट पर पहुंच गए और जेब से पिस्तौल निकाली. इतना तमाशा हुआ की शूटिंग रुक गई.


पिता ने करवा दी शादी
इतना ही नहीं, नाराज पिता ने जुबैदा की शादी करवा दी. फिर क्या जुबैदा ने शादी और परिवार को संभाला. एक बेटे खालिद मोहम्मद की मां बनी. लेकिन एक बार फिर जुबैदा की जिंदगी में तूफान जब आया जब पति ने बेटे के जन्म के बाद कराची लौटने का फैसला लिया. लेकिन जुबैदा के पिता एक बार फिर नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी इतनी दूर जाए. इस जिद पर उन्होंने बेटी का तलाक करवा दिया. जुबैदा तलाक के बाद काफी टूट गई थीं. उन्होंने अपनी पूरी ताकत बेटे की परवरिश में लगा दी ताकि बेटे को कभी भी पिता की कमी महसूस न हो.


महाराजा संग शुरू हुई प्रेम कहानी
फिर जुबैदा बेगम की जिंदगी में एंट्री हुई महाराजा की. साल 1950 की बात होगी. वह राजघराने की शादी में गई थीं. तब कई गायकों ने अपनी प्रतिभा स्टेज पर दिखाई. अचानक जुबैदा भी स्टेज पर गईं और गाने लगी. सब जुबैदा को देखते रह गए. बलां की खूबसूरत और शहद सी मीठी आवाज सब इम्प्रेस हो गए. इन सबमें से एक थे मारवाड़ रियासत के महाराजा हनवंत सिंह. जो जुबैदा की आवाज और खूबसूरती पर फिदा हो गए.


उम्मेद सिंह के बेटे
दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ. दोनों को एक से मोहब्बत सी हो गई. लेकिन एक बार फिर से कई दुविधाएं दोनों के बीच थी. सबसे बड़ी परेशानी तो यही थी कि हनवंत सिंह, जोधपुर के राजा थे. वह उम्मेद सिंह के बेटे थे. तो जुबैदा मुस्लिम परिवार से. ऊपर से हनवंत सिंह शादीशुदा भी थे. अब कैसे इस रिश्ते को सबकी हरी झंडी मिले या कैसे जुबैदा के परिवार वाले इस रिश्ते कुबूल करें. 


हिंदू बन गईं
मगर दोनों ने शादी का फैसला लिया. महाराजा के लिए जुबैदा ने हिंदू बनने के लिए भी हामी भर दी. 17 दिसंबर 1950 को 23 साल की जुबैदा ने महाराजा हनवंत सिंह से हिंदू रीति-रिवाज से शादी की. हिंदू धर्म अपनाकर नाम रख लिया विद्या रानी. लेकिन इतिहासकार के बीच इस बात को लेकर दो मत रहे हैं. कुछ कहते हैं कि वह हिंदू तो बन गई थीं लेकिन उनकी शादी नहीं हुई थी. वहीं दूसरी ओर,  शाही खानदान ने जुबैदा को बहू मनाने से इंकार कर दिया. ऐसे में महाराजा को भी शादी उम्मेद भवन छोड़ा पड़ गया था. फिर दोनों मेहरानगढ़ के किले में रहने लगे. शाही परिवार ने हमेशा जुबैदा को शाही चर्चा, फैसलों और चीजों से दूर रखा. आगे चलकर जुबैदा और महाराजा की संतान भी हुई जिनका नाम राव राजा हुकुम सिंह को जन्म दिया.


प्लेन क्रैश में हुई मौत
लेकिन दो साल बाद ही दोनों की जिंदगी ने फिर करवट ली. एक प्लेन क्रैश में जुबैदा और महाराजा की मौत हो गई. वहां, जुबैदा-महाराजा की मौत के बाद उनके बेटे  राव राजा हुकुम सिंह की परवरिश राजमाता ने की. उनकी शादी ब्याह सब हुआ. हंसता खेलता परिवार भी था. लेकिन साल 1981 में हुकुम सिंह का सिर कलम कर दिया गया. किसने क्या क्यों किया ये पहेली आज भी सुलझ नहीं पाई है.