`एनिमल` का नाम लिए बगैर फिल्म पर भड़के जावेद अख्तर, बोले- `अगर कोई पुरुष किसी महिला से अपना जूता चाटने को कहे...`
Javed Akhtar on Animal: संदीप रेड्डी वांगा की फिल्म `एनिमल` पर स्पष्ट रूप से कटाक्ष करते हुए जावेद अख्तर ने कहा है कि समस्याग्रस्त सीन्स वाली फिल्मों की व्यावसायिक सफलता एक `खतरनाक` प्रवृत्ति है. जावेद अख्तर ने फिल्म का नाम नहीं लिया, लेकिन `एनिमल` के जूते चाटने वाले सीन का जिक्र करने हुए अपनी बात कही.
Javed Akhtar on Animal: स्त्री-द्वेष और हिंसा के कथित 'महिमामंडन' के लिए आलोचना का सामना करने के बावजूद निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा (Sandeep Reddy Vanga) की रणबीर कपूर (Ranbir Kapoor) स्टारर 'एनिमल' 2023 की सबसे बड़ी भारतीय ब्लॉकबस्टर (Animal) में से एक बनकर उभरी, जिसने दुनिया भर में लगभग 900 करोड़ रुपये की कमाई की है. जहां एक तरफ फिल्म इंडस्ट्री के कई लोगों ने इस फिल्म की तारीफ की है तो ऐसे लोगों की भी बड़ी संख्या है जिन्होंने नारीवाद और टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी का हवाला देते हुए फिल्म की कड़ी आलोचना की है. इन आलोचकों में अब पटकथा लेखक, गीतकार और कवि जावेद अख्तर (Javed Akhtar) का नाम भी शामिल हो गया है. जावेद अख्तर का कहना है कि 'एनिमल' की सफलता खतरनाक है.
78 वर्षीय पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने औरंगाबाद में अजंता एलोरा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सिनेमा की वर्तमान स्थिति के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की. हालांकि, उन्होंने 'एनिमल' (Animal) का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका इशारा उसी तरफ था. जावेद अख्तर ने कहा, ''मेरा मानना है कि आज युवा फिल्म निर्माताओं के लिए यह परीक्षा की घड़ी है कि वे किस तरह के किरदार बनाना चाहते हैं, जिसकी समाज सराहना करे. उदाहरण के लिए, यदि कोई ऐसी फिल्म है, जिसमें कोई पुरुष किसी महिला से अपने जूते चाटने के लिए कहता है या यदि कोई पुरुष कहता है कि महिला को थप्पड़ मारना ठीक है. और यदि फिल्म सुपर डुपर हिट है, तो यह बहुत खतरनाक है.''
जावेद अख्तर ने किया फिल्म 'एनिमल' के एक सीन का जिक्र
जावेद अख्तर (Javed Akhtar) स्पष्ट रूप से फिल्म 'एनिमल' के एक सीन का जिक्र कर रहे थे, जहां फिल्म का मुख्य किरदार रणविजय (रणबीर कपूर) जोया (तृप्ति डिमरी) से उसके प्रति अपना प्यार साबित करने के लिए उसके जूते चाटने के लिए कहता है. अनुभवी पटकथा लेखक का मानना है कि आज दर्शकों पर यह निर्णय लेने की जिम्मेदारी है कि कौन सी फिल्म स्वीकार करें और कौन सी अस्वीकार करें.
'निर्माताओं से ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी दर्शकों की'
उन्होंने आगे कहा, ''आजकल मुझे लगता है कि फिल्म निर्माताओं से ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी दर्शकों की है. दर्शकों को तय करना होगा कि किस तरह की फिल्में बनानी चाहिए और किस तरह की नहीं. साथ ही, हमारी फिल्मों में किस तरह के मूल्य और नैतिकता दिखानी चाहिए. हमें किसे अस्वीकार करना चाहिए, यह निर्णय आपके हाथ में है. गेंद फिलहाल दर्शकों के पाले में है.''
'किस तरह के हीरो को पर्दे पर पेश किया जाए यह भ्रम इसलिए है, क्योंकि समाज में ही भ्रम '
जावेद अख्तर ने यह भी कहा कि लेखकों को नायक के प्रतिनिधित्व को लेकर एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा, ''आज लेखकों के सामने बड़ी चुनौती है कि किस तरह के हीरो को पर्दे पर पेश किया जाए. यह भ्रम इसलिए है, क्योंकि समाज में ही भ्रम है. जब समाज इस बारे में स्पष्ट होता है कि क्या सही है और क्या गलत, तब आपको कहानी में बेहतरीन पात्र मिलते हैं. लेकिन जब समाज यह समझने में असमर्थ है कि क्या सही है और क्या गलत है, तो आप महान चरित्र नहीं बना सकते.''
'हम अमीर लोगों को बुरा नहीं दिखा सकते, क्योंकि हम खुद अमीर बनना चाहते हैं'
जावेद अख्तर ने कहा, ''एक समय था जब जीवन सरल था. अमीर लोगों को बुरा और गरीबों को अच्छा माना जाता था. लेकिन आज, हम सभी के दिमाग में यह विचार है, 'कौन बनेगा करोड़पति?'. इसलिए हम अमीर लोगों को बुरा नहीं दिखा सकते, क्योंकि हम खुद अमीर बनना चाहते हैं. तो हम किसे बुरा कहें? और हम जेल भी नहीं जाना चाहते, हमारे ऊपर बहुत सारी बंदिशें हैं.''