NFDC Films: एक दौर था जब दूरदर्शन और भारतीय राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) सार्थक सिनेमा का बड़ा सहारा थे. वे न केवल मेकर्स को ऐसी फिल्में बनाने के लिए धनराशि देते थे, बल्कि इनके प्रदर्शन में बड़ी भूमिका भी अदा करते थे. मगर ऐसी फिल्मों का दर्शक वर्ग छोटा होने की वजह से कॉमर्शियल मनोरंजन चैनलों पर जगह या किसी तरह की मदद नहीं पा सकीं. अब ओटीटी के दौर में फिर से खेल पलटता नजर आ रहा है. ऐसे वक्त जबकि बॉलीवुड का सिनेमा पिछड़ रहा है और कंटेंट सिनेमा की भूख दर्शकों में बढ़ गई है, इन पुरानी आर्ट फिल्मों की वापसी होने को तैयार है.


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गांधी और सलाम बॉम्बे
ओटीटी प्लेटफॉर्मों की रेस में तेजी से अपनी जगह बनाने की तैयारी में लगे जियो सिनेमा ने एनएफटीडी की कुछ फिल्में अपने यहां दर्शकों को उपलब्ध कराने का फैसला किया है. खास बात यह है कि इनमें से कुछ फिल्में दर्शकों के लिए मुफ्त उपलब्ध कराई गई हैं. इनमें हिंदी के साथ क्षेत्रीय भाषाओं की सार्थक फिल्में भी शामिल हैं. इन फिल्मों के अंग्रेजी सब-टाइटल्स भी उपलब्ध हैं. एनएफडीसी देश में फिल्मों को बढ़ावा देने वाली सरकारी एजेंसी है. एनएफडीसी ने कई बेहतरीन फिल्मों का निर्माण या निर्माण में योगदान दिया है. इनमें रिचर्ड एटनबरो की गांधी, मीरा नायर की सलाम बॉम्बे और सुधीर मिश्रा की धारावी जैसी फिल्में शामिल हैं. यह फिल्में अब जियो सिनेमा पर देखी जा सकती हैं.


हिंदी और रीजनल क्लासिक
इनके अतिरिक्त मम्मो, मिर्च मसाला जैसी समानांतर सिनेमा आंदोलन की कई फिल्में ओटीटी पर मिलेंगी. मणि कौल की आषाढ़ का एक दिन, श्याम बेनेगल की सूरज का सातवां घोड़ा, रघुबीर यादव अभिनीत मैसी साहब, पंकज कपूर की रुई का बोझ और कई अन्य कला फिल्में शामिल हैं. बासु चार्टर्जी का त्रियाचरित्र, उत्पलेंदु चक्रवर्ती द्वारा निर्देशित देबशिशु, नाना पाटेकर की दीक्षा, ओम पुरी स्टारर तर्पण, महेश भट्ट की थ्रिलर नजर अब जियोसिनेमा पर मुफ्त देखने के लिए उपलब्ध हैं. शुभंकर घोष का नाटक वो छोकरी, तपन सिन्हा की यादगार फिल्म एक डॉक्टर की मौत, मराठी फिल्म एक होता विदूषक, डिंपल कपाड़िया की रुदाली तथा म्यूजिकल ड्रामा गमन यहां देखने मिलेंगी. हिंदी के साथ मराठी, बंगाली, गुजराती, उड़िया और दक्षिण भारतीय भाषाओं की कला या  सार्थक फिल्मों की भी लंबी सूची है.