`केसरी` मूवी रिव्यू: अक्षय की जबरदस्त एक्टिंग और दमदार डायलॉग हैं फिल्म की जान
अक्षय कुमार की `केसरी` 1897 में सारागढ़ी में लड़े गये एक ऐसे युद्ध की दास्तान है...
नई दिल्ली: रिकॉर्ड है कि जब बॉलीवुड के 'सिंह इस किंग' अक्षय कुमार ने सिख का किरदार निभाया है वह सीधे दर्शकों का दिल जीत ले गए हैं. लेकिन इस बार मामला और ज्यादा गहरा हो जाता है, क्योंकि होली पर रिलीज होने वाली इस फिल्म में अक्षय अपनी केसरिया पगड़ी के साथ लोगों पर देशभक्ति का रंग छिड़क रहे हैं. 80 करोड़ के बजट में बनी यह अक्षय कुमार अैर परिणीति चोपड़ा की फिल्म कल यानी 21 मार्च को सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है. जिसे देखने बाद कई दिन तक आपके जहन पर केसरिया रंग चढ़ा रह सकता है.
शुरुआत सीन्स में यह फिल्म 'केसरी' किसी बड़े बजट की बेहतरीन पंजाबी डॉक्यूमेंट्री जैसी दिखती है. जब पर्दे पर अक्षय कुमार जाबांज सिख सैनिक के अंदाज में नजर आते हैं तो ढ़ाई घंटे की फिल्म भी छोटी लगने लगती है. हालांकि इस मामले में निर्देशक अनुराग सिंह के काम की भी दाद देनी होगी कि उन्होंने इतिहास से एक छोटी सी कहानी उठाकर उसपर ढ़ाई घंटे की जबरदस्त फिल्म बना डाली.
यह कहानी 1897 में सारागढ़ी में लड़े गये एक ऐसे युद्ध से जुड़ी है जिसे मात्र 21 सिख सैनिकों ने 10 हजार अफगानी लड़ाके के खिलाफ लड़ा था. इस फिल्म में इन 21 सैनिकों के इमोशनल और जाबांजी को काफी बारीकी से दिखाया गया है. यहां एक बार फिर अक्षय कुमार अपने दर्शकों की उम्मीदों पर खरे उतरते हुए उन्हें देशभक्ति के रंग में सराबोर करने में सफल होते हैं.
फिल्म की कहानी की बात करें तो 'केसरी' की कहानी कुछ इस तरह शुरू होती है. गुलिस्तान फोर्ट पर तैनात हवलदार ईशर सिंह यानी अक्षय कुमार ब्रिटिश राज की सेना में एक सैनिक है. जो अफगानी लड़ाकों के लीडर राकेश चतुर्वेदी ओम के हाथों मारी जाने वाली एक महिला की जान बचाता है. लेकिन यह काम उसने अपने फिरंगी साहब की अनुमति के बिना किया होता है जिसके चलते उसका तबादला गुलिस्तान फोर्ट से सारागढ़ी फोर्ट में कर दिया जाता है. यहां से शुरू होती है असल कहानी.
सारागढ़ी में आने पर ईशर को मेहसूस होता है कि यहां तैनात 21 सैनिकों में अनुशासन की कमी है. इसलिए वह अपने काम पर लग जाता है. इस दौरान अनुशासन सिखाने वाला और इमोशनली जुडने वाला ईशर सभी सैनिकों के दिलों पर राज करने लगता है. वह समय समय पर अपनी पत्नी यानी परिणीति को याद करता है.
इस दौरान ईशर को पता लगता है कि अफगानी पठानों की एक बड़ी फौज तैयार है सारागढ़ी पर हमला करने के लिए. जिस पर वह अंग्रेजी हुकूमत से मदद मांगता है लेकिन मदद नहीं आती. उल्टा सभी जवानों को किला छोड़ने की बात कहते हैं. लेकिन ईशर सिंह को यहां एक पुरानी याद ताजा हो जाती है जब किसी अंग्रेज ने उसे कहा था, 'तुम हिंदुस्तानी कायर हो, इसीलिए हमारे गुलाम हो.' बस फिर क्या था ईशर जब शहीद होने का ईरादा बनाता है तो उसके 21 सैनिक भी उसका साथ देने की ठान लेते हैं.
यह फिल्म देखते हुए आपको पहला हॉफ थोड़ा स्लो और उबाऊ लग सकता है लेकिन दूसरा पार्ट हर पल आपके रोंगटे खड़े करने वाला है. फिल्म में गजब की एक्शन करियोग्राफी है, अक्षय कुमार के एक-एक डायलॉग देश पर जान छिड़कने के लिए किसी को भी राजी कर सकते हैं. कहना गलत नहीं होगा कि यह फिल्म पूरी तरह पैसा वसूल फिल्म है.