Kuldip Kaur: कुलदीप कौर की पहचान हिंदी फिल्मों की पहली वैंप यानी खलनायिका (Bollywood Vamp) के रूप में है. सिर्फ साल की जिंदगी में कुलदीप कौर ने बहुत उतार चढ़ाव देखे. 1926 में वह पंजाब के अटारी में एक सिख जमींदार परिवार में पैदा हुईं. दो साल की थीं, तभी पिता गुजर गए. मगर कुलदीप की उस दौर के हिसाब से पढ़ाई हुई. उन्हें स्कूल भेजा गया. वह रसूखदार परिवार से थीं, इसलिए उस समय के हिसाब से 14 साल की उम्र में उनकी शादी एक अन्य पंजाबी जमींदार के बेटे मोहिंदर सिंह संधू से की गई और वह 16 साल की उम्र में बन गईं. मोहिंदर के दादा महाराजा रणजीत सिंह (Maharaja Ranjeet Singh) की सेना में कमांडर थे. मोहिंदर सिंह संधु आधुनिक खयालों के थे और वह चाहते थे कि उनकी पत्नी पढ़े और अंग्रेजी तौर तरीके सीखे. क्लब में जाए. थिएटर देखे. कुलदीप स्कूल के दिनों से ड्रामा में हिस्सा लेती थीं और समय के साथ उनके मन में फिल्मों में काम करने की इच्छा जागी.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कार से लाहौर-टू-मुंबई
लाहौर (Lahore) में कुलदीप कौर की फिल्मों में काम कर रहे प्राण (Actor Pran) से हो चुकी थी. वह प्राण की प्रशंसक थीं और दोनों की दोस्ती हो गई. देश विभाजन के समय कुलदीप कौर अपने परिवार के विरोध के बावजूद, अपना सब कुछ छोड़कर मुंबई (Mumbai) चली आईं. रोचक बात यह है कि प्राण भी उस समय लाहौर से मुंबई के लिए निकले थे. दोनों साथ थे. लेकिन दंगों की भागदौड़ के बीच प्राण की कार वहीं छूट गई. तब कुलदीप कौर ने प्राण से कहा कि वह मुंबई पहुंचें और वह कार लेकर आएंगी. प्राण उन्हें रोकते रह गए परंतु उन भीषण दंगों के बीच कुलदीप कौर ने लाहौर से प्राण की कार ली और अमृतसर (Amritsar) से दिल्ली होते हुए मुंबई पहुंची. जब उन्होंने कार की चाबी प्राण के हाथों में सौंपी तो वह हैरान रह गए. कुलदीप दबंग पंजाबी महिला थीं. कुलदीप की पहली फिल्म पंजाबी में थी, चमन (1948). जो बेहद सफल रही. लेकिन वह हिंदी फिल्में करना चाहती थीं. प्राण के नजदीक रहना चाहती थीं.


समाज में अन-फिट
वह हिंदी और पंजाबी फिल्मों में काम करती रहीं. धीरे-धीरे हिंदी में भी उन्हें सफलता मिली. प्राण मुंबई में जम चुके थे. कुलदीप कौर को भी काम मिलने लगा था. 1948 में आई फिल्म गृहस्थी में वह एक मॉडर्न महिला के रूप में आईं. जो अपने पति से बगावत करती हैं. फिल्म तो हिट रही, लेकिन यहीं से उन्हें ऐसे रोल ऑफर होने लगे, जो उन्हें उस समय की सामाजिक स्थिति में अन-फिट बताते थे. कनीज (1949), समाधि (1950) और अफसाना (1951) जैसी फिल्मों ने उन्हें वैंप की भूमिका में जमा दिया. अफसाना में वह अशोक कुमार (Ashok Kumar) की बेवफा पत्नी बनीं, जो प्राण से प्यार करती है. जबकि समाधि में नलिनी जयवंत (Nalini Jayawant) के साथ उन्हें ऑल-टाइम-हिट गाने (All Time Hit Song) गोरे गोरे ओ बांके छोरे में देखा जा सकता है. 1952 की सुपर हिट फिल्म बैजू बावरा (Baiju Bawra) में वह डाकू बनी थीं, जो बैजू का अपहरण करती है. फिल्म अनारकली में वह गुलजार नाम की सुंदरी के रोल में थी, जो सलीम को अनारकली (Anarkali) से दूर करना चाहती है.



जख्म ने ली जान
कुलदीप वास्तव में आजाद भारत के बाद पहली एक्ट्रेस थीं, जिन्हें दर्शकों के बीच वैंप के रूप में जबर्दस्त पहचान मिली. पर्दे की इमेज का ही असर था कि लोग उन्हें अच्छी महिला नहीं मानते थे. प्राण के साथ भी उनकी नजदीकियों की चर्चा थी, जबकि प्राण शादीशुदा थे. उस वक्त ऐसे संबंधों को हेय दृष्टि से देखा जाता था. नेगेटिव छवि का ही असर था कि उस दौर में एक समय ऐसा आया, जब कुलदीप कौर पर भारत में पाकिस्तान (Pakistani Spy) के लिए जासूसी करने के आरोप लगाए. हालांकि अंत में यह बात सिर्फ अफवाह साबित हुई. उन्हें लंबी उम्र नहीं मिली. उनकी मौत की दो वजहें मिलती हैं. एक में कहा जाता है कि वह शिर्डी से लौटते हुए कार से बेर तोड़ने उतरीं और पैरों में कांटा चुभ गया. वहीं दूसरी में बताया जाता है कि एक दरगाह से लौटते हुए उनके पैर में कील गड़ गई. दोनों ही स्थितियों में यह हुआ कि कुलदीप कौर डॉक्टर के पास नहीं गईं और शूटिंग करती रहीं. जख्म के कारण उनके पैरों से होते हुए जहर बदन में फैल गया. 1960 में वह टिटनेस की वजह से मौत के मुंह में चली गईं. तब उनकी उम्र थी, सिर्फ 33 साल.