कपूर खानदान की इस बहू ने पहली बार कराई थी Guru Dutt से एक्टिंग, जानिए अनसुने किस्से

क्या आप जानते हैं कि बतौर निर्देशक काम करने वाले गुरु दत्त (Guru Dutt) को पर्दे के सामने लाने वाली एक्ट्रेस कौन थी?

ऋतु त्रिपाठी Oct 10, 2020, 14:00 PM IST
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ये था असली नाम

गुरु दत्त का असली नाम शायद ही आपने कभी सुना हो, दरअसल बंगाल में हुए एक विवाद के बाद गुरु दत्त ने अपना नाम बदल लिया था. उनका पारिवार द्वारा दिया गया असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोणे था. लेकिन बंगाल की परिस्थितियों को देखते हुए गुरु दत्त ने अपना नाम बदलने का फैसला लिया और 'गुरु दत्त' बन गए. 

 

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कपूर खानदान की बहू ने कराया एक्टिंग डेब्यू

उस दौर की सुपरहिट एक्ट्रेस गीता बाली ने शम्मी कपूर से शादी की थी. कपूर खानदान की इसी बहू ने गुरु दत्त को एक्टिंग का पहला मौका दिया. गुरु दत्त ने गीता बाली की कई फिल्मों में बतौर निर्देशक काम किया. लेकिन गीता बाली ने जब बतौर प्रोड्यूसर फिल्म 'बाज' बनाई तो उन्होंने इस फिल्म में भी गुरु दत्त को निर्देशन की कमान सौंपी. लेकिन इसी के साथ उन्हें बतौर हीरो भी ले लिया. एक्ट्रेस तबस्सुम अपनी एक बातचीत में गुरु दत्त के बारे में जिक्र करते हुए बताती हैं, 'गुरु दत्त हमेशा ही गीता बाली की तारीफ किया करते थे और कहते थे कि गीता बाली ने ही मेरे अंदर यह अहसास जगाया कि मैं एक्टर भी बन सकता हूं, सिर्फ अहसास ही नहीं जगाया बल्कि एक फिल्म में रोल भी दे दिया.'

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16 की उम्र में सीखा डांस

गुरु दत्त को महज 16 साल की उम्र में ही डांस के प्रति लगाव हो गया था. जिसके कारण वह जाने माने डांसर और कोरियोग्राफर पंडित उदय शंकर की नृत्य अकादमी में शामिल हुए, जो सितार वादक पंडित रवि शंकर के बड़े भाई थे. यहीं से गुरु दत्त का कला की दुनिया से अटूट रिश्ता बंध गया.  

 

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टेलीफोन ऑपरेटर से बने असिस्टेंड डायरेक्टर

साल 1943 में गुरु दत्त नौकरी की तलाश में कोलकाता चले गए, जहां उन्होंने लीवर ब्रदर्स कारखाने में टेलीफोन ऑपरेटर का जॉब किया. काम पसंद नहीं आया और नौकरी छोड़ दी. इसके बाद साल 1944 में ने पुणे की प्रभात फिल्म कंपनी में एक सहायक निर्देशक के रूप में तीन साल के अनुबंध के तौर पर नौकरी की. वर्ष 1946 में गुरु दत्त को फिल्म 'हम एक हैं' के लिए बतौर कोरियोग्राफर काम करने का मौका मिला.

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जब कोठे पर जाकर रो पड़ा गुरु दत्त का दिल

राजपाल प्रकाशन से छपी किताब 'गुरु दत्त के साथ एक दशक' में लेखक सत्या सरन ने लिखा है कि 'प्यासा' के बनने के शुरुआती दिनों में यह सोचा गया था कि फिल्म की कहानी कोठे पर आधारित होगी, लेकिन गुरु दत्त कभी कोठे पर नहीं गए थे. जब दत्त साहब एक कोठे पर गए तो वहां का दर्दनाक दृश्य देखकर वो दंग रह गए थे. कोठे पर नाचने वाली एक लड़की तकरीबन सात महीने की गर्भवती थी, फिर भी लोग उसे नचाए जा रहे थे. ऐसा हाल देख गुरु दत्त उठे और अपने दोस्तों से कहा 'चलो यहां से'. जाते हुए उन्होंने नोटों की एक गड्डी वहां रख दी. इस घटना के बाद दत्त ने कहा कि मुझे साहिर के गाने के लिए चकले का सीन मिल गया और वह गाना था, 'जिन्हें नाज है हिन्द पर हो कहां है.'

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ऐसे मिलीं और बिछड़ीं पत्नी गीता

गुरु दत्त की निजी जिंदगी उनकी फिल्मों की तरह सफलता नहीं पा सकी. उन्हें फिल्म 'बाजी' के सेट पर मिलीं गायिका गीता रॉय से प्यार हो गया था. ये दोनों शादी के बंधन में बंध गए थे, लेकिन, फिल्म 'प्यासा' बनने के दौरान गीता और गुरुदत्त के बीच दरार आनी शुरू हो गईं. गुरु दत्त और फिल्म की एक्ट्रेस वहीदा रहमान के बीच बढ़ती नजदीकियां गीता को गवारा नहीं थीं. पत्नी गीता को जब इन दोनों के रिश्ते की भनक लगी तो वे गुरु दत्त को छोड़ कश्मिर चली गईं.

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कभी न जागने के लिए सोए गुरु दत्त

सत्या सरन ने अपनी किताब लिखते समय गुरुदत्त के दोस्त अबरार काफी बातचीत की. जिसमें पता लगा कि वह अबरार से हमेशा मरने के तरीकों पर बात करते थे. अपनी पत्नी गीता से फोन पर हुए झगड़े के बाद 9 अक्तूबर की देर रात अबरार और गुरुदत्त ने एक साथ खाना खाया. 2 बजे रात को अबरार अपने घर चले गए. उसी रात गुरुदत्त ने शराब के नशे में नींद की गोलियां खा लीं और इस तरह ओवरडोज से उनका निधन हो गया.

 

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वहीदा ने सालों बाद कही थी ये बात

वहीदा रहमान पर नसरीन मुन्नी कबीर ने एक किताब लिखी है 'Conversations with Waheeda Rehman'. इसके लॉन्च कार्यक्रम में जब वहीदा रहमान से गुरु दत्त की मौत पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, 'किसी को भी उनके खुदकुशी करने की वजह नहीं पता. कुछ लोग कहते हैं कि कागज के फूल की नाकामयाबी की वजह से वो डिप्रेशन में थे. लेकिन मुझे नहीं लगता कि ये वजह रही होगी.'

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