Dharmendra के जन्मदिन पर जानिए बॉलीवुड में किससे खौफ खाते थे `गरम धरम`
आज बॉलीवुड में हीमैन के नाम से मशहूर धर्मेंद्र (Dharmendra) का जन्मदिन है. इस मौके पर आपको बताएंगे उनसे जुड़ी कुछ अनसुनी बातें...
इस डायरेक्ट से लगता था जय-वीरू को डर
एक बार केबीसी के सैट पर जब जय के सामने वीरू यानी धरम पाजी हॉट सीट पर बैठे तो सवाल पूछने की जिम्मेदारी वीरू ने ले ली, और पहला ही सवाल था कि कौन सा डायरेक्टर था, जिससे हम दोनों ही कांपते थे? थोड़ी सी हिचकिचाहट के बाद अमिताभ बच्चन ने भी जवाब दे दिया. वो नाम था ह्रषिकेश मुखर्जी का. उस दिन दोनों की ही बातों में ह्रषिकेश मुखर्जी के लिए खौफ कम, इज्जत ज्यादा थी. लेकिन ये तय है कि ह्रषिकेश मुखर्जी सैट पर काफी सख्त रहते थे. उनकी सख्ती के आगे न धर्मेन्द्र (Dharmendra) की चलती थी और न अमिताभ बच्चन की. ‘चुपके चुपके’ फिल्म के क्लाइमेक्स सीन की शूटिंग के वक्त जब असरानी सूट पहनकर पहुंचे और धर्मेन्द्र ड्राइवर की ड्रेस में तो दोनों को ही नहीं पता था कि सीन क्या है. तब धर्मेन्द्र (Dharmendra) ने असरानी से पूछा, 'ये सब क्या चल रहा है, तुझे सूट कैसे मिला और मुझे ड्राइवर की ड्रेस, ये ह्रषिकेश मुखर्जी सूट तो अपने बाप को भी नहीं देगा.'
जब ह्रषिकेश मुखर्जी ने तेज आवाज में लगाई धर्मेंद्र को आवाज
दरअसल, ह्रषिकेश मुखर्जी अपने सीन को पहले से नहीं बताते थे. पहले जब असरानी ने उनसे और राही मासूम रजा से सीन के बारे में पूछा तो किसी ने कोई जवाब नहीं दिया. मिडिल क्लास बेस्ड फिल्में बनाने वाले ह्रषि दा की फिल्मों में सूट देखकर सबका चौंकना लाजिमी था. ह्रषि दा इसके लिए तैयार थे. दूर से उन्होंने धर्मेन्द्र (Dharmendra) की बात तो नहीं सुनी, लेकिन समझ गए कि धर्मेन्द्र क्यों परेशान है. बाद में असरानी ने पूरी बात को एक इंटरव्यू में बताया था. उन्होंने कहा था ‘ह्रषि दा ने दूर से ही चिल्लाकर बोला- ए धरम, तुम असरानी से क्या पूछ रहे हो? सीन के बारे में न? अगर तुम्हारे अंदर स्टोरी का कोई सेंस होता तो तुम हीरो बनते क्या?’ धर्मेन्द्र के मुंह से आवाज भी नहीं निकली, वो तो ये सोचकर हैरान थे कि क्या ह्रषि दा ने वाकई में उनकी बाप वाली बात भी सुन ली क्या?
‘गुड्डी में काम करने के लिए ऐसे तैयार हुए थे धर्मेन्द्र
हृषि दा एक तरह से अमिताभ और जया के गॉड फादर ही बन गए थे. अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) को ‘आनंद’ में उस वक्त के सुपर स्टार राजेश खन्ना के साथ एक दमदार रोल दिया तो जया की पहली मूवी ‘गुड्डी’ में धर्मेन्द्र को काम करने के लिए तैयार कर लिया. 1971 में रिलीज हुई इस फिल्म में पहली बार जया बच्चन का एक फुल लेंथ रोल था और वो फिल्म स्टार धर्मेन्द्र की दीवानी थीं, चूंकि धर्मेन्द्र (Dharmendra) इसमें खुद का ही रोल कर रहे थे तो फिल्मी दुनियां के सीन भी दिखाए जाने थे. उसमें कई एक्टर्स गेस्ट रोल में थे, जिनमें राजेश खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, विश्वजीत, दिलीप कुमार, अशोक कुमार, माला सिन्हा, नवीन निश्चल आदि के साथ साथ अमिताभ बच्चन ने भी एक छोटा सी गेस्ट एपीयरेंस दी थी.
ये बहुत कम लोगों को पता होगा कि इस फिल्म के हीरो पहले अमिताभ चुने गए थे, लेकिन कुछ रील शूट करने के बाद हृषिकेश मुखर्जी ने उन्हें फिल्म से हटाकर एक नए लड़के को ले लिया. दरअसल, हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘आनंद’ में काका के साथ सेकंड हीरो के तौर पर थे अमिताभ, लेकिन वो फिल्म सुपरहिट हो गई और अमिताभ (Amitabh Bachchan) को हर कोई जान गया था. वहीं गुड्डी के लिए उन्हें वो हीरो चाहिए था, जिसे कोई न जानता हो. दूसरे वो ये भी नहीं चाहते थे कि धर्मेन्द्र जैसे स्टार के सामने अमिताभ इतना छोटा रोल करें. ऐसे में उन्होंने अमिताभ को गुड्डी के लवर के रोल से हटा दिया और एक गेस्ट रोल दे दिया. बाद में हृषि दा अमिताभ के लिए धर्मेन्द्र के साथ एक बड़ा रोल लेकर आए.
इन तीन फिल्मों से धरम से ज्यादा हुआ अमिताभ और जया को फायदा
हृषिकेश मुखर्जी एक बार फिर दोनों को ‘चुपके चुपके’ मूवी में लेकर आए, जो बंगाली कॉमेडी फिल्म ‘छदमवेशी’ पर आधारित थी. चूंकि धर्मेन्द्र का लीड रोल था, इसलिए सेकंड हीरो के तौर पर उन्होंने अमिताभ बच्चन को ले लिया. जया भी उनके साथ थीं. तभी तो आनंद की तरह ही एक और बड़े स्टार के साथ अमिताभ को काम करने का मौका मिला और उनका चेहरा अब पहचाना जाने लगा. अमिताभ, जया और धर्मेन्द्र (Dharmendra) तीनों एक बार फिर साथ आए, ‘शोले’ में, हेमा के साथ धर्मेन्द्र और जया के साथ अमिताभ वाली फिल्म. दमदार डायलॉग और शानदार डायरेक्शन, इतने सारे पहलू एक साथ थे कि फिल्म पीढ़ियों के लिए यादगार बन गई. अमिताभ और जया को धर्मेन्द्र के साथ लगातार तीन फिल्में करने का काफी फायदा मिला था.
जब धर्मेन्द्र ने खाई राजकपूर की तगड़ी डांट
‘मेरा नाम जोकर’ के परदे पर भले ही धर्मेन्द्र राज कपूर के बॉस हों, लेकिन सैट पर ठीक उलटा था. एक दिन धर्मेन्द्र (Dharmendra) भी राज कपूर के गुस्से का शिकार बन गए. दरअसल कभी शराब के टब में डूबे रहने वाले राज कपूर के सैट पर शराब बैन थी. ऐसे में कोई पीकर आता था तो उनका गुस्सा उस पर उतर जाता था. जब एक दिन उन्होंने सैट के कौने पर पड़ी बेंच पर नशे में धुत धर्मेन्द्र को पड़ा पाया, तो उन्होंने धर्मेन्द्र पर चिल्लाना और उन्हें हिलाना शुरू कर दिया और तभी छोड़ा जब धर्मेन्द्र ने पैरों में गिरकर माफी ना मांग ली. उसके बाद धरमजी उनके सैट पर पीना भूल गए.
हेमा के लिए कब धर्मेन्द्र ने बजाई बांसुरी
हेमा मालिनी (Hema Malini) को तो आप साल में चार बार राधा बनकर मंच पर नाचते हुए देखते आ रहे हैं, कभी किसी शहर में तो कभी किसी देश में, कान्हा से उनका असीम प्रेम ही था, जिसके चलते उन्होंने बीजेपी से मथुरा की सीट मांगी और आज वहां की एमपी भी हैं. लेकिन धर्मेन्द्र को किसी ने कभी कृष्ण के रूप में नहीं देखा होगा. उन्होंने कृष्ण का रोल तब कर लिया था, जबकि हेमा हिंदी फिल्मों में आई भी नहीं थीं और उनकी राधा थीं मीना कुमारी. धर्मेन्द्र (Dharmendra) और मीना कुमारी राधा कृष्ण बने थे फिल्म ‘पूर्णिमा’ में. ये फिल्म 1965 में बनी थी. गाने के बोल थे ‘राधा तोहरे कान्हा ने मुरली बजाई’, जिसको लिखा था गुलशन बाबरा ने और म्यूजिक था कल्याण-आनंद का. इस गाने को गाया था मुकेश और सुमन कल्याणपुर ने. गाना एक स्टेज सीन के तौर पर फिल्माया गया था.
मीना कुमारी से थे धर्मेन्द्र के खास संबंध
मीना कुमारी (Meena Kumari) और धर्मेन्द्र (Dharmendra) ने ‘पूर्णिमा’ मूवी का ये गीत तब शूट किया था, जब तक हेमा मालिनी ने बॉलीवुड में कदम भी नहीं रखा था. हेमा की पहली हिंदी फिल्म ‘सौदागर’ राज कपूर के साथ रिलीज हुई था, इस फिल्म की रिलीज के ठीक तीन साल बाद. जबकि मीना कुमारी तब तक पचास से ज्यादा फिल्में कर चुकी थीं. धर्मेन्द्र की भी तक तब 15 ही फिल्में आईं थीं. दरअसल ये उन दिनों की बात है जब युवा धर्मेन्द्र का सितारा चमकना शुरू हो चुका था, और वो बंदिनी, हकीकत और आई मिलन की बेला जैसी फिल्में कर चुके थे. मीना कुमारी धर्मेन्द्र को पसंद करने लगी थीं और उनके साथ मैं भी लड़की हूं, पूर्णिमा और फूल और पत्थर जैसी फिल्में साइन कर चुकी थीं. मीना कुमारी का हीरो बनने से धर्मेन्द्र का कैरियर एकदम से रॉकेट बन गया था. इन्हीं में से ‘पूर्णिमा’ फिल्म में राधा-कृष्णा का ये गीत फिल्माया गया था. फिल्म में पूर्णिमा की लीड किरदार मीना कुमारी ने और उसके हीरो के रूप में प्रकाश यानी धर्मेन्द्र थे.
जब ‘शोले से हटाया गया था धर्मेंद्र का गाना
चांद सा कोई चेहरा पहलू में न हो तो चांदनी का मजा फिर क्या आता है.... ये बोल हैं, उस गाने के जो ‘शोले’ में था, लेकिन बाद में फिल्म की लम्बाई ज्यादा होने के चलते फिल्म से हटा दिया गया. दरअसल ये गाना एक कव्वाली था, जिसके लिए किशोर कुमार, मन्ना डे, भूपेन्द्र सिंह और खुद गीतकार आनंद बक्षी ने गाया था. इसका म्यूजिक आरडी बर्मन ने तैयार किया था. गाना बाकायदा मस्ती भरे अंदाज में रिकॉर्ड किया गया था. आइडिया ये था कि जेल में ये कव्वाली फिल्माई जाएगी, जिसे धर्मेन्द्र, अमिताभ और कैस्ट्रो मुखर्जी आदि पर फिल्माया जाएगा. ये गाना अगर वाकई में फिल्म में शामिल होता तो कोई इसे सुपरहिट होने से नहीं रोक पाता. धरमजी इसको लेकर काफी एक्साइटेड थे, क्योंकि सबसे मस्ती का रोल और लाइनें उन्हीं के हिस्से में थीं. लेकिन रमेश सिप्पी को लगा कि ये फिल्म की लम्बाई बढ़ा देगा, इसलिए गाने को रिकॉर्ड करने के बावजूद इसे शूट नहीं किया गया.