Saif Ali Khan Film: सिनेमा में गाली-गलौच आज आम हो गई है. फिल्मों और वेब सीरीज (Web Series) में अब ज्यादातर ऐसे विषय आते हैं, जिनमें खुलकर अपशब्दों (Cuss Words) का इस्तेमाल होता है. लेकिन दो दशक पहले यह स्थिति नहीं थी. नई सदी में जब सिनेमा (Cinema) बदल रहा था, तब भी सेंसर बोर्ड (Censor Board) का उस पर नियंत्रण था. अश्लीलता (Vulgarity) और भाषा की मर्यादा के सवाल बड़े थे. मगर समय के साथ स्थिति बदल गई. सवाल उठता है कि सेंसर बोर्ड में इतनी ढिलाई कैसे शुरू हुई. तो इसका जवाब भी स्पष्ट रूप से सेंसर बोर्ड के हवाले से ही हमारे सामने आता है.


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लगा दिया प्रतिबंध
साल 2011 में निर्माता-निर्देशक पहलाज निहलानी (Pahlaj Nihalani) ने सेंसर बोर्ड में चेयरमैन की कुर्सी संभाली थी. उनके केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड यानी सीबीएफसी (CBFC) का अध्यक्ष बनते ही इंडस्ट्री में जबर्दस्त हलचल हुई थी क्योंकि उन्होंने बोर्ड की तरफ से फिल्मों के लिए सख्त गाइडलाइन्स जारी की थी. जिनमें दृश्यों पर तो सख्ती की ही गई, बल्कि सेंसर बोर्ड ने फिल्मों में कुछ शब्दों को प्रतिबंधित तक कर दिया. ऐसे शब्दों की सूची जारी की गई, जिनके बारे में पहले से कह दिया गया कि फिल्मी डायलॉग्स में इस्तेमाल न किए जाएं. फिल्म इंडस्ट्री के कई निर्माता-निर्देशकों ने इस बात का विरोध करते हुए बोर्ड को चिट्ठी तक लिखी.


बेटे लिए बदले नियम
निहलानी की इस बात के लिए जबर्दस्त आलोचना हुई कि वह हेडमास्टर की तरह काम कर रहे हैं. लेकिन निहलानी ने परवाह नहीं और कुछ समय बाद एक इंटरव्यू (Interview) में कहा कि आखिर फिल्मों में गाली-गलौच की भाषा कहां से आई. एक टीवी चैनल (TV Channel) को दिए इंटरव्यू में निहलानी ने अपने से पहले चेयरपर्सन रहीं शर्मिला टैगोर पर निशाना साधा और कहा कि उनके कार्यकाल में डायलॉग्स (Dialouges) में अपशब्दों वाली कई फिल्में पास की गईं. निहलानी ने फिल्म ओमकारा (2006) का नाम लेते हुए कहा कि इस फिल्म को अशब्दों के बावजूद इसलिए सेंसर की मंजूरी दी गई क्योंकि इसमें शर्मीला के बेटे सैफ अली खान ने अभिनय किया था.


बात लंगड़ा त्यागी की
उल्लेखनीय है कि ओमकारा में सैफ अली खान ने लंगड़ा त्यागी नाम का किरदार निभाया था, जो आज भी उनकी सबसे यादगार भूमिकाओं में से है. निहलानी ने आरोप लगाया कि फिल्म देखने वाली सेंसर कमेटी ने शर्मीला टैगोर के दबाव में ओमकरा को मंजूरी दी, जिसने अपशब्दों वाली फिल्मों का ट्रेंड सेट किया और आगे चलकर गैंग्स ऑफ वासेपुर (Gangs Of Wasseypur, 2012) जैसी फिल्में रिलीज हुईं. निहलानी के आरोप के बाद सैफ मां के सपोर्ट में उतरे. सैफ ने कहा कि हमारे पास ऐसा सेंसर बोर्ड अध्यक्ष होना चाहिए, जो सिनेमा के प्रति जुनूनी हो. उदार और समझदार हो. सैफ ने कहा कि निहलानी को अपनी राय बताने का हक है, लेकिन मैं सोच भी नहीं सकता कि मेरी मां अपने बच्चे के लिए नियम तोड़ सकती हैं. वह बहुत निष्पक्ष हैं.