Shashikala: बॉलीवुड की फिल्मों में जिन एक्ट्रेसों ने सचमुच खलनायिकाओं वाले तेवर दिखाए, उनमें शशिकला को आप ऊपर ही रखेंगे. क्रूर और तेज-तर्रार महिला के तमाम किरदार उन्होंने निभाए. सिगरेट, शराब और पिस्तौल उनके हाथों में दिखी. शशिकला के साथ फिल्म अनुपमा (1966) में काम करने वाली शर्मीला टैगोर ने अपने एक इंटरव्यू में, लोगों की शशिकला से नफरत के बारे में बता. उन्होंने कहा कि मैंने सुना है, एक फिल्म की आउटडोर शूटिंग के दौरान लोग हीरोइन को अपने घर के टॉयलेट इस्तेमाल करने देते थे, परंतु शशिकला को इसकी इजाजत नहीं मिलती थी. आप समझ सकते हैं कि उन्होंने बुरी औरत के रोल कितनी खूबसूरती और शिद्दत से निभाए.


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हालात ने ढकेला
शशिकला के पिता कपड़ा कारोबारी थे. सोलापुर, महाराष्ट्र में रहते थे. लेकिन इतनी कमाई नहीं थी कि घर का गुजारा चल सके. तब पांच साल की उम्र में शशिकला शहर-शहर घूमने वाली एक थियेटर कंपनी से जुड़ गईं. जिसमें वह बाल कृष्ण की भूमिका निभातीं और डांस करतीं. जब वह 11 साल की थीं तब फिल्म इंडस्ट्री की महारानी कहलाने वाली नूरजहां की नजर उन पर पड़ी. वह और उनके पति फिल्म बना रहे थे, जीनत (1945). रोल के लिए ऑडिशन में शशिकला सफल नहीं रहीं. परंतु फिल्म की एक कव्वाली में ले लिया गया. यहां से उनका सफर शुरू हुआ. इसके कुछ साल बाद वह अशोक कुमार (Ashok Kumar), करण दीवान और आगा की हीरोइन के रूप में आईं. परंतु देश विभाजन के समय नूरजहां पाकिस्तान चली गईं और शशिकला के सिर पर किसी का हाथ नहीं रहा.


सिगरेट और धुएं के छल्ले
मात्र 19 साल की उम्र में शशिकला ने बिजनेसमैन ओम प्रकाश सहगल से शादी कर ली. लेकिन जल्द ही उनका बिसनेस चौपट हो गया और शशिकला फिल्मों में लौटीं. परंतु सफलता नहीं मिली. आखिरकार 1959 में जब विजय आनंद (Vijay Anand) ने निर्देशक के रूप में फिल्म नौ दो ग्यारह से निर्देशक के रूप में डेब्यू किया तो शशिकला को वैंप का रोल दिया. वह हाथ में सिगरेट लिए धुएं के छल्ले बनाती हुई, हेलन (Helen) के साथ क्या हो दिन रंगीला हो... गाने में दिखीं. एक अन्य गाने, जाने जिगर हाय... में वह हीरो देवानंद (Dev Anand) को लुभाने की कोशिश करती दिखीं. फिल्म नहीं चली. इसके बाद शशिकला ने ताराचंद बड़जात्या की फिल्म आरती (1962) में नेगेटिव रोल स्वीकार किया. वह फिल्म में मीना कुमारी (Meena Kumari) की ननद के रूप में दिखीं.


जम गया रंग
फिल्म आरती में मीना कुमारी के साथ पहले शॉट में शशिकला का डायलॉग थाः तेरे हाथों में जादू है और मेरे हाथों में झाड़ू? पहले ही टेक में सीन ओके हो गया, तो मीनाजी ने शशिकला की ठुड्डी पकड़ ली और कहाः हाय अल्लाह! बहुत अच्छा पहला शॉट दिया तुमने. मीना कुमारी और शशिकला हमउम्र थीं. आरती सिल्वर जुबली हिट रही. ननद के रूप में शशिकला की खलनायकी ने उन्हें लोगों की नजरों में ला दिया और वह पर्दे पर वेंप के रूप में जम गईं. इसके बाद उन्होंने फूल और पत्थर (1962) में धर्मेंद्र-मीना कुमारी के बीच अपनी खलनायकी का रंग जमाया. गुमराह (1963) में वह ब्लैकमेल करने वाली सेक्रेटरी बनीं, तो पैसा या प्यार (1969) में पैसों की लालची ऐसी रईस महिला बनीं, जिसकी बेटी आम आदमी के प्यार में पड़ जाती है.


फिर जमाई नई पारी
जंगली, अनुपमा, सुजाता, आई मिलन की बेला, गुमराह और वक्त जैसी फिल्मों ने उन्हें लोकप्रियता दी. पांच बार उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया. शशिकला अपनी लोकप्रियता के दौर में फिल्मों से दूर होकर अमेरिका चली गईं. उनमें आध्यात्मिक प्यास भी थी. वह अमेरिका से लौट कर करीब दो साल मदर टेरेसा के साथ रह कर बीमार लोगों की सेवा करती रहीं. लेकिन फिर उनका मन फिल्मों में आने का हुआ. वह मुंबई (Mumbai) आ गईं. उन्होंने तीसरी पारी जमाई. 1999 में फिल्म बादशाह (Film Badshah) में वह शाहरुख खान (Shah Rukh Khan) की मां के रूप में दिखीं. शशिकला ने हिंदी के साथ मराठी और गुजराती फिल्मों में भी काम किया. जहां उन्हें वैंप से अलग रोल मिले. वह टीवी सीरियलों में भी आईं. 83 साल की उम्र में उन्होंने मुंबई में अंतिम सांस ली. एक दोपहर को वह सोने गईं, तो फिर नहीं जागीं.