Corona का कहर: क्या अब कभी फिल्में हाउसफुल नहीं होंगी?
करोना वायरस (Coronavirus) के कहर के चलते सब कुछ पूरी तरह से ठप हो गया है.
नई दिल्ली: अब क्या फिल्में हाउसफुल नहीं होंगी? बॉक्स ऑफिस पर धुआंधार कमाई करने वाली फिल्में क्या अब हंड्रेड करोड़ क्लब में शामिल होने के लिए बेताब होती नजर आएंगी? 3-4 हजार स्क्रीन में एक साथ रिलीज होकर बॉक्स ऑफिस कलेक्शन से बाकी फिल्मों को धूल चटाने वाली फिल्मों का दौर क्या अब खत्म हो गया है? यह ढेर सारे सवाल हर किसी के मन में उठ रहे हैं. करोना के कहर के चलते सब कुछ पूरी तरह से ठप हो गया है. जहां हर कोई अपनी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने की कोशिश में जुटा हुआ है. ऐसे में एंटरटेनमेंट काफी पीछे की श्रेणी में पहुंच गया है, लेकिन लोगों को एंटरटेनमेंट का डोज देने वाली फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान कई हजार करोड़ों में हैं. सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि कोरोना ने फिल्म देखने का, एंटरटेनमेंट का तरीका ही पूरी तरह से बदल दिया है.
कई दशकों से वरिष्ठ पत्रकार भारती दुबे का कहना है कि इन दिनों जिस तरह का माहौल बना हुआ है इसमें वर्करों की दिक्कतें और भी बढ़ गया. सारी चीजों को पटरी पर आने में समय लगेगा. सिनेमा देखने वालो में पूरी तरह से बदलाव होने वाला है. कुछ सिनेमाघरों ने WHO की गाइडलाइंस को फॉलो करते हुए अल्टरनेट सीटिंग अरेंजमेंट करने की तैयारी कर ली है. इसका मतलब अब फिल्में हाउसफुल नहीं होंगी. अल्टरनेट सेटिंग की वजह से हाउसफुल शोध नहीं होंगे और कमाई भी कम होगी क्योंकि वायरस से बचना है और काम भी करना है. काम शुरू होने के लिए काम पर जाने के बाद भी पहले तो राशन, खर्चा पानी देना होगा. इंडस्टी को और कंट्रब्यूशन करना पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी काम तुरंत ही शुरू नहीं होगा. अगर शुरू भी होगा तो वर्क कल्चर बदल जाएगा. किस तरह से प्रोडक्शन हाउस हाइजीन मेंटेन करता है सोशल डिस्टेंस मेंटेन करता है. फिल्मों में गाने शूट किस तरह किए जाएंगे यह बड़ा सवाल होगा. बड़े-बड़े डायरेक्टर्स 100-200 डांस के साथ काम करते हैं, फिल्मों में पार्टी दिखाने में क्राउड होता है. हर सेट पर कम से कम 100 लोग होते हैं. इसका इलाज क्या होगा? सबसे महत्वपूर्ण रीजन है. लॉकडाउन खुलने के साथ ही बड़ी फिल्में रिलीज नहीं होंगे. पहले मैन्युफैक्चरिंग यूनिट का काम शुरू होगा. जहां पर वर्कर काम कर सकते हैं. सरकारी गाइडलाइंस कुछ दिनों में पता चल जाएगा. जून-जुलाई में अगर सिनेमा खुलता भी है. तो भी बड़ी फिल्में रिलीज नहीं होंगी. अप्रैल चला गया है और 3 मई तक लॉकडाउन है. ईद भी पर भी फिल्म रिलीज होना मुश्किल है. अब प्रोडक्शन हाउस इवेंट नहीं कर सकते. क्राउड गैदरिंग नहीं बढ़ सकते. सिनेमा व्यूइंड बदलेगा और फिल्म की कहानियां भी बदलेंगी.
वहीं, फिल्म क्रिटिक इंदर मोहन पन्नू जी का मानना है कि इन दिनों बॉलीवुड में इस बात की चर्चा है कि किस कलाकार ने, किस प्रोडक्शन हाउस ने, किस ऑर्गेनाइजेशन ने कितनी आर्थिक मदद की है. यह चर्चा कतई भी नहीं है कि कौन सी फिल्म कब रिलीज होगी. कौन फिल्म सबसे पहले रिलीज होगी. कौन सी फिल्म ईद पर रिलीज होगी. कौन सी फिल्म दिवाली पर होगी, क्योंकि जितना भी पोस्ट प्रोडक्शन का काम था. जितनी भी फिल्म को रिलीज करने की तैयारी थी. सब कुछ सारा का धरा रह गया है. फिलहाल बातें हो रही हैं फिल्म रिलीज की नहीं. बल्कि इस बात की कि आर्थिक पैकेज की आर्थिक सहायता की. वर्करों की मदद की. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आजकल इंडस्ट्री किस तरह सोच रही है.
बॉलीवुड इंडस्ट्री अपने आप में कई लाखों लोगों का पेट भरती है. ऐसे में जब कई सौ करोड़ का बिजनेस कोई फिल्म करती है. फिल्म की टीम प्रॉफिट मार्जिन को लेते हुए कई और प्रोजेक्ट पर पैसा लगाती है. जिससे कई लोगों को काम मिलता है. अब जबकि हाउसफुल फिल्मों का कांसेप्ट धीरे-धीरे इस कोरोना की वजह से लुप्त हो जाएगा. तो नए प्रोजेक्ट के आने में काफी मुश्किल होगी. जिसका असर फिल्म प्रोडक्शन और उसकी कॉस्ट पर भी नजर आएगा. माहौल इस तरह का बन रहा है कि आने वाले कुछ समय में नए प्रोजेक्ट की घोषणाएं भी कम होती दिख रही है.