निर्देशक: राज शांडिल्य
स्टार कास्ट: राजकुमार राव, तृप्ति डिमरी, मल्लिका शेरावत, विजय राज, राकेश बेदी, अर्चना पूरन सिंह, टीकू तलसानिया, अश्विनी कालेस्कर, मस्त अली और मुकेश तिवारी आदि
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में
स्टार रेटिंग: 3.5


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इस मूवी ‘विकी विद्या का वो बाला वीडियो’ की सबसे खास बात है राज शांडिल्य का इसका निर्देशक होना. इसलिए कपिल शर्मा शो और ‘ड्रीम गर्ल’ सीरीज के लिए चर्चित राज की कॉमेडी पंचलाइंस की इस मूवी में भरमार है, फिल्म जब जब पटरी से उतरती दिखती है, ये लाइंस ठहाके लगवाकर फिर उसे वापस ले आती हैं. मूवी एक बार तो देखी जा सकती है, लेकिन उसके बाद नहीं. फिर भी फैमिली के साथ खासतौर पर बच्चों के साथ देखने लायक नहीं है. हां किरदारों और कॉमेडी पंचलाइंस की भरमार वाली इस मूवी को आप एकदम खारिज तो नहीं कर पाएंगे.


‘विकी विद्या का वो बाला वीडियो’ की कहानी
कहानी है उत्तराखंड बनने से पहले 1997 के ऋषिकेश की, जिसमें एक मेंहदी लगाने वाले विकी (राजकुमार राव) और एमबीबीएस डॉक्टर विद्या (तृप्ति डिमरी) के इश्क के बाद शादी एक सामूहिक विवाह समारोह में होती है और फिर गोवा में हनीमून. जहां विकी-विद्या अपनी उस रात का वीडियो यादों में सहेजने के लिए शूट कर एक सीडी में रख देते हैं. लेकिन एक दिन घर में चोरी होती है और चोर टीवी के साथ सीडी प्लेयर और उसमें फंसी सीडी भी ले जाते हैं.


लोकलाज के डर से उस सीडी की तलाश में जब विकी जुटता है तो सामने आता है एक चोर, फिर कुछ ब्लैकमेलर्स और फिर एक ऐसा किंगपिन जिससे एक नहीं बल्कि हजारों सीडी बनने की कहानी भी सामने आती है. लेकिन इस पूरी आफत को कॉमेडी किरदारों और मारक पंचलाइंस के सहारे एक कॉमेडी बना दिया जाता है, हां एडल्ट कॉमेडी, क्योंकि सुहागरात, सैक्स सीडी आदि की चर्चा तो है ही.


इस फिल्म की आएगी याद
मूवी देखते देखते आपको याद आती है 19 साल पहले आई कुणाल खेमू, इमरान हाशमी और स्माइली सूरी की मूवी ‘कलयुग’ की. जिसमें हनीमून की पहली रात एक होटल में कुणाल, स्माइली का कोई वीडियो शूटकर इंटरनेट पर डाल देता है और स्माइली आत्महत्या कर लेती है. फिर कुणाल पोर्न इंडस्ट्री के खिलाफ जंग छेड़ता है.


‘विकी विद्या का वो बाला वीडियो’ रिव्यू
लेकिन ऐसा लग रहा है कि लेखक निर्देशक राज शांडिल्य ने मानो कसम खा ली थी कि ‘कलयुग’ से इस मूवी को बिलकुल उलटा रखना है. फिल्म ‘कलयुग’ की तरह गंभीर किस्म की नहीं बल्कि फुल कॉमेडी मूवी है. इस मूवी की कहानी का पहला सीन भी आत्महत्या से ही शुरू होता है, लेकिन हीरोइन की नहीं बल्कि हीरो की. कलयुग की कहानी कश्मीर से शुरू होकर मुंबई फिर ज्यूरिख पहुंच जाती है, लेकिन उलट इसके राज की मूवी के किरदार भले ही ऋषिकेश से बाहर जाते हैं, लेकिन उनका कैमरा उसी शहर में रहता है और हीरो भी. कलयुग में जहां वीडियो इंटरनेट पर डाली जाती है, वहीं इस मूवी में इंटरनेट अभी भारत में ढंग से शुरू ही नहीं हुआ था. हालांकि मूवी के मुख्य विलेन की बेटी के वीडियो के जरिए इस मूवी में भी क्लाइमेक्स शूट होता है और कलयुग में भी पोर्न क्वीन अमृता सिंह की बेटी का वीडियो इंटरनेट पर डाल दिया गया था.


सो जिन लोगों ने ‘कलयुग’ देखी है, वो उसके फनी संस्करण को देखने जा सकते हैं. फनी लाइंस के अलावा इस मूवी में कलाकारों की भी बहुतायत है, हीरो हीरोइन के अलावा मुकेश तिवारी, मल्लिका शेरावत, विजय राज, राकेश बेदी, अर्चना पूरन सिंह, टीकू तलसानिया, अश्विनी कालेस्कर, मस्त अली आदि तो हैं ही शहनाज गिल, दलेर मेंहदी, पवन सिंह और मनजोत सिंह जैसे कई कलाकारों ने गेस्ट रोल किए हैं या सोंग्स मे दिखे हैं. इसलिए गाने लिखने में ज्यादा समय बर्बाद नहीं किया गया बल्कि चमेली का गाना सजना वे, मृत्युदाता का ना ना ना ना ना रे और सड़क का तुम्हें अपना बनाने की कसम.. जैसे गाने भी दिखेंगे.


 लॉजिक क्या था?
शुरूआत से ही मूवी में ये समझ नहीं आता कि मेंहदी वाले पर एक डॉक्टर कैसे फिदा हो गई, दोनों के परिवार जब इतने कॉमेडियन थे तो मनजोत के साथ विद्या की सगाई वाले सीन की जरूरत क्या थी, फिर जब सब राजी थे तो सामूहिक विवाह समारोह में शादी करने की, वहां सुहागरात मनाने की जरूरत क्या थी, ये भी समझ नहीं आता कि वहां की पुलिस चोर बाजार में जाने से क्यों डरती या कतराती थी, और ये भी नहीं कि ‘स्त्री’ को मूवी में डालने का लॉजिक क्या था? हालांकि वो सीक्वल का इशारा कर स्त्री वाले मामले को पूरा गोल कर गए लेकिन सच ये भी है कि मूवी कॉमेडी ना होती तो ये सारे लॉजिक हजम नहीं होते. हालांकि तृप्ति डिमरी धीरे धीरे अपनी जगह बनाती जा रही हैं. मल्लिका शेरावत ने इस मूवी से एक नया रास्ता पकड़ने की कोशिश की है, कॉमेडी या चरित्र अभिनय की.


कॉमेडियन किरदार और देसज भाषा
हालांकि लगातार इस तरह की मूवी आयुष्मान खुराना और राजकुमार राव कर रहे हैं, जहां कोई मथुरा, जयपुर या अब ऋषिकेश जैसा छोटा शहर होता है और हीरो कोई छोटा काम कर रहा होता है और तमाम देसी कॉमेडियन किरदार और देसज भाषा. सो उन्हीं की तरह ये मूवी भी इन मंझे हुए कलाकारों की शानदार एक्टिंग और अच्छी पंचलाइंस की वजह से एक बार देखने लायक तो बन गई है, लेकिन लगता नहीं कि इसे ‘स्त्री’ सीरीज जैसी सुपर कामयाब फिल्मों की श्रेणी में रखा जा सकता है.    


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