नई दिल्ली: हास्य अभिनेता जगदीप को नई पीढ़ी भले ही 'सूरमा भोपाली' के तौर पर जानती हो, पर 'शोले' के अलावा भी जगदीप ने कई फिल्मों में काम किया है. बल्कि जगदीप बतौर बाल कलाकार फिल्मों से जुड़ गए थे. विभाजन के दौरान पाकिस्तान में अपना घर और सबकुछ छोड़छाड़ कर जब अपनी अम्मी के साथ वे मुंबई आए तो बस छह-सात साल के थे. इतनी गरीबी थी कि मां को एक यतीमखाने में खाना बनाने की नौकरी करनी पड़ी, तब भी वे दोनों दोनों वक्त पूरा खाना नहीं खा पाते थे.


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स्कूल छोड़ कर काम करने लगे फैक्ट्री में
जगदीप को मां को काम करते देखना बुरा लगता था. सड़क पर रह रहे दूसरे बच्चे गुजारे के लिए एक टिन की फैक्ट्री में काम करते थे. जगदीप ने भी फैक्ट्री में काम करना शुरू कर दिया. यही नहीं घर लौट कर मां और बेटा मिल कर पतंग बनाते और उसे बेच कर दो पैसे कमाते.


जगदीप को एक दिन सड़क पर एक आदमी ने कहा कि तुम मेरे साथ चल कर एक काम करो, मैं उसके तीन रुपए दूंगा. इतने रुपए जगदीप ने कभी नहीं कमाए थे. वे उसके साथ गए तो पता चला कि वहां फिल्म की शूटिंग हो रही थी और सीन में कुछ बच्चों की जरूरत थी.


जगदीप उस दिन के बाद फैक्ट्री में काम करने कभी नहीं गए. क्योंकि फिल्म में असिस्टेंट डाइरेक्टर यश चोपड़ा की नजर जगदीप पर पड़ गई. उन्हें फिल्म में ऐसे बच्चे की जरूरत थी जिसे उर्दू बोलनी आती हो. जगदीप की मातृभाषा उर्दू थी. उन्होंने फटाफट बोल दिया. बस यश चोपड़ा ने उसके सिर पर हाथ रख कर कह दिया, तुम जहीन बच्चे हो. तरक्की करोगे. फिल्मों में काम करो.


उस दिन के बाद जगदीप ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. बाल कलाकार से हास्य कलाकार बन गए.


रोते-रोते हंसाने लगे
जब बाल कलाकार थे तो अकसर उन्हें रोने वाले रोल मिलते थे. यश चोपड़ा को उनके काम पर यकीन था. कहते थे जो रुला सकता है वो ही सबसे अच्छा हंसा सकता है. जगदीप अपने समय के मशहूर हास्य अभिनेता बन गए. हालांकि उनका मानना था कि वे ऊपर से हंसते थे पर अंदर से दिल हमेशा भीगा रहता था.


उन्हें जिंदगी भर बस इस बात की खुशी रही कि अपनी अम्मी को वे दो वक्त अच्छा खाना खिला पाए.


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