डायरेक्टर: देवांग भवसार
स्टार कास्ट: विक्रांत मैसी, मौनी रॉय, सुनील ग्रोवर, जिसू सेन गुप्ता, केली दोरजी, छाया कदम आदि
कहां देख सकते हैं: जियो सिनेमा OTT पर
स्टार रेटिंग: 2.5


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Black Out Review: जब इस दौड़ती भागती मूवी में एक के बाद एक किरदार धीरे धीरे लॉन्च होते हैं, तो लगता है कि काफी आनंद आने वाला है. सबसे दिलचस्प था कि हर किरदार को एक दिलचस्प तरीके से गढ़ा गया था, विक्रांत मैसी अपने चिरपरिचित संजीदा मूड के बजाय एक रोमांटिक मस्ती भरे युवा के रोल में थे तो सस्ते गालिब और पियक्कड़ लेकिन गंभीर डॉन के रोल में थे सुनील ग्रोवर, वहीं जिस्सू सेन एक डिटेक्टिव के रोल में तो मौनी रॉय रात में घूमती एक लड़की के रोल में. लेकिन आखिर तक आते आते ये मूवी आपके भेजे का ब्लैक आउट कर देती है.


'ब्लैक आउट' की कहानी
कहानी है पुणे शहर के एक ऐसे क्राइम रिपोर्टर लेनी डिसूजा (विक्रांत मैसी) की जो हर वक्त स्टिंग कैमरा लिए ही घूमता है. चूंकि फिल्म की पूरी कहानी एक रात की ही है, बाकी सब फ्लैश बैक में बीच बीच में आता रहता है, सो उस रात भी लेनी अपने घर एक पुलिस इंस्पेक्टर के स्टिंग ऑपरेशन के बाद लौटता है. बीवी उसे अंडा पाव और कॉन्डम लेने भेज देती है.


अचानक उसका एक्सीडेंट एक वैन से होता है और वैन पलट जाती है, उस वैन में चोरों का गैंग था, ढेर सारी दौलत और हथियार भी थे, लेकिन कोई जिंदा नहीं बचा. लेनी सारा पैसा लेकर भाग जाता है, फिर एक एक्सीडेंट उसकी कार से होता है और एक व्यक्ति मारा जाता है. वहां एक शराबी अजगर (सुनील ग्रोवर) उसे ब्लैकमेल करता है, उसकी कार में जबरन बैठ जाता है, लाश को ठिकाना लगाते वक्त वो दो चोर भी देख लेते हैं, जिन्होंने स्टिंग के बाद दिन में उसका स्टिंग कैमरा भी चुरा लिया था. अब वो भी पैसे मिलने की बात पर उसका साथ देते हैं कि लाश अचानक जिंदा हो जाती है.


'ब्लैक आउट' कास्ट
सब भाग लेते हैं, रास्ते में जब अजगर पीछा करती पुलिस पर गोलियां दागता है, तब उन्हें पता चलता है कि ये तो बहुत बड़ा डॉन था. फिर कहानी में एंट्री होती है एक पूर्व विधायक की, एक डिटेक्टिव (अरविंद), उसकी सहयोगी (मौनी रॉय) और केली दोरजी (सीरियल किलर) की. कहानी में इतने ज्यादा ट्विस्ट टर्न हैं कि बिना दिमाग लगाए फिल्म देखने वालों को ये पसंद भी आ सकती है.


पलट जाती है कहानी
लेकिन ढेर सारी बातें ऐसी होती हैं, जो गले नहीं उतरती, जैसे शहर के मशहूर क्राइम रिपोर्टर को इंस्पेक्टर द्वारा ना पहचाने जाना, क्राइम रिपोर्टर का इतने बड़े डॉन को ना जानना, स्टिंग के बाद दिन भर रिपोर्टर का अपना कैमरा या फीड चेक ना करना, एक इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी का बुलेटप्रूफ जैकेट्स के खरीद की डील करना, एक बेवड़े का एक रिपोर्टर को ब्लैकमेल करना, जो गाड़ी पुलिस पर गोलियां चलाकर भागी है, पुलिस को उसको एकदम से नजरंदाज करना, ढूंढने की कोशिश भी ना करना आदि.


फिर एक बार पूरे शहर में ना सीसीटीवी हैं और ना कोई दूसरी पुलिस की गाड़ी, और जो पुलिस वाले दिन में ड्यूटी पर थे, वही आधी रात को भी हैं और फिर से सुबह ड्यूटी पर वही दिखते हैं. जो रिपोर्टर क्राइम कवर कर रहा है, वही रात को करीब 9 बजे एक राजनैतिक सभा भी कवर कर रहा है. ये थोड़ा अजीब था.



'ब्लैक आउट' रिव्यू
हालांकि फिल्म को क्राइम थ्रिलर कॉमेडी के तौर पर बनाया गया है, इसलिए दिमाग को बिना लगाए भी ये फिल्म देखी जा सकती है, लेकिन कई किरदारों और दौड़ती भागती फिल्म 'मालामाल वीकली' को देखकर ये बखूबी समझा जा सकता है कि दौड़ती भागती कॉमेडी बेहतरीन तरीके से तर्कों के साथ भी कैसे बनाई जाए.  लेकिन जरूरत से ज्यादा ट्विस्ट और टर्न के चक्कर में (जिनमें से आधे हमने बताए भी नहीं हैं) अच्छी खासी मूवी को बर्बाद कर दिया गया है.


वो भी तब जबकि निर्देशक के पास विक्रांत, मौनी, सुनील, केली, जिस्सु जैसे दिग्गज कलाकार मौजूद थे. 'ठीक' और 'ठाक' के रोल में और बेहतर कलाकारों की जरूरत थी, हालांकि डॉन मुगली अन्ना का किरदार अच्छा था. स्क्रीन प्ले पर थोड़ा और काम की जरूरत थी, कई डायलॉग्स फनी थे, लेकिन उनका प्लेसमेंट ऐसा था कि दर्शक को प्रभावित नहीं करते.


'ब्लैक आउट' का म्यूजिक, एडिटिंग और सिनेमेटोग्राफी
मूवी में बैकग्राउंड म्यूजिक पर काफी फोकस किया गया है. फिल्म की एडिटिंग और सिनेमेटोग्राफी अच्छी है. मौनी रॉय के किरदार को थोड़ा बढ़ाया जाता तो बेहतर होता, उनको मौका मिला ही नहीं, सुनील ग्रोवर और विक्रम मेसी को स्क्रीन स्पेस तो काफी मिला है, लेकिन इस मूवी में जरूरत से ज्यादा ट्विस्ट टर्न होने की वजह से वो भी अपने किरदार में पूरे।नहीं उतर पाए.


कहां देखें 'ब्लैक आउट'
ऐसे में चूंकि मूवी OTT प्लेटफॉर्म जियो सिनेमा पर उपलब्ध है, घर बैठे देखी जा सकती है, सो फुरसत में टाइम पास के लिए देखी भी जा सकती है,लेकिन इस मूवी के लिए सिनेमा हॉल तक जाना अक्लमंदी का काम नहीं होता.