Forensic Review: कहानी में हैं ट्विस्ट एंड टर्न, नन्हें बच्चों से शुरू होकर बात जाती है बड़ों तक, विक्रांत मैसी करते हैं इंप्रेस
Forensic 2022: मसूरी में जब एक के बाद एक नन्हीं बच्चियों की हत्याएं होने लगती हैं तो पूरा शहर दहल जाता है. कहीं सुराग नहीं मिलते और फॉरेंसिक विशेषज्ञ को बुलाया जाता है. संदेह के घेरे में बच्चे ही आते हैं और आप सोच में पड़ जाते हैं कि क्या ऐसा भी हो सकता है.
Psychological crime thriller: पिछले साल अमेजन प्राइम पर हॉरर फिल्म छोरी लाने वाले निर्देशक विशाल फूरिया नई फिल्म लाए हैं, फॉरेंसिक. यह क्राइम थ्रिलर है. जो धीरे-धीरे साइकोलॉजिकल क्राइम थ्रिलर में बदलती है. शांत-सैलानियों वाले शहर मसूरी में अचानक तब हलचल मच जाती है, जब एक के बाद एक नन्हीं बच्चियों के कत्ल होने लगते हैं. जन्मदिन पर एक आवाज उन्हें अपने पीछे बुलाती है और कोई कुछ समझ पाए, इससे पहले ही वे नींद के गोद में सो जाती हैं. बच्चियों की मौत की इसी गुत्थी को फॉरेंसिक सुलझाती है.
अपराधी कौन
फिल्म का मूल कनेक्शन फॉरेंसिक जांच से जुड़ा है. इसकी दो वजहें हैं. एक तो हीरो जॉनी (विक्रांत मैसी) फॉरेंसिक एक्सपर्ट है. दूसरा, हत्यारा शातिर है और कोई निशान नहीं छोड़ता. ऐसे में पुलिस के लिए इस मामले को अकेले सुलझाना आसान नहीं होता. मसूरी में सब इंस्पेक्टर मेघा (राधिका आप्टे) इस सीरियल किलिंग की जांच का नेतृत्व कर रही है. कहानी में आपको बार-बार लगता है कि हत्यारे का सुराग मिल गया और वह पुलिस की गिरफ्त में भी आ गया है लेकिन तभी पता चलता है कि अपराधी तो बाहर घूम रहा है. दूसरी बच्चियां खतरे में हैं.
मलयालम की रीमेक
ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर रिलीज इस फिल्म में मामला बच्चों की किलिंग से जुड़ा है, इसलिए फिल्म के बाल-मनोचिकित्सक बनीं डॉ. रंजना गुप्ता (प्राची देसाई) अहम किरदार के रूप में उभरती है. फिल्म का मूल ताना-बाना रोचक ढंग से बुना गया है और दर्शक को बांधे रखने की कोशिश करता है. लेकिन समस्या स्क्रिप्ट में आती है. यह फिल्म 2020 में रिलीज हुई मलयालम फिल्म फॉरेंसिक से प्रेरित है. जिसे अखिल पॉल और अनास खान ने लिखा तथा डायरेक्ट किया था. निश्चित ही हिंदी फिल्म के मुकाबले मलयालम में ज्यादा लेयर्स हैं और यह अधिक रोचक है. मौका मिले तो इसे जरूर देखना चाहिए.
देखें फॉरेंसिक का ट्रेलर
सीरियल किलिंग के सिरे
रीमेक में हिंदी फिल्म को सरल बनाने की कोशिश हुई है. साथ ही इस थ्रिलर में रोमांस और फैमेली ड्रामा उभारने की अतिरिक्त कोशिश नजर आती है. जिससे फिल्म सीधे रास्ते पर न चलते हुए, भटकती है. साथ ही निर्देशक ने दर्शकों को यह समझाने में भी वक्त खर्च किया है कि फॉरेंसिक क्या है और यह साइंस कितनी तरक्की कर चुकी है. इसके अतिरिक्त फिल्म में जब बच्चों के सीरियल किलर होने का मुद्दा उठता है, तो यह बताती है कि सुनने में अजीब लगे लेकिन दुनिया और देश में ऐसे मासूम हत्यारे हुए हैं, जिनके दिल में रहम और प्यार जैसे था ही नहीं. हालांकि निर्देशक ने बच्चियों की सीरियल किलिंग को शुरू से अंत तक पकड़े रखा और इन हत्याओं के पीछे छुपे चेहरे को सामने लाने से पहले कई ट्विस्ट एंड टर्न डाले हैं. बावजूद इसके फिल्म में कसावट कहीं-कहीं कमजोर पड़ जाती है. फूरिया की छोरी में भी यही समस्या थी. वह भी उनकी बनाई मराठी फिल्म लपाछिपी का रीमेक थी. जिसे कई अंतरराष्ट्रीय अवार्ड मिले थे. फॉरेंसिक को खूबसूरती से शूट किया गया है.
सच, जो है
विक्रांत मैसी अपनी भूमिका में जमे हैं और उनका अभिनय अच्छा है, लेकिन राधिका आप्टे लगातार उनके साथ तालमेल बैठाने की कोशिश में नजर आती हैं. इसी तरह प्राची देसाई का रोल महत्वपूर्ण है, मगर उनके स्क्रीन-लुक पर अधिक मेहनत किए जाने की जरूरत थी. निर्देशक ने मूल फिल्म की कहानी में अपनी तरफ से कई बदलाव किए हैं, इससे यह रीमेक बहुत जगहों पर नाटकीय हो जाती है. जबकि ऐसी फिल्मों को सच के करीब होना चाहिए. बावजूद इन बातों के फॉरेसिंक ऐसी थ्रिलर है, जिसे आप समय मिलने पर देख सकते हैं.
निर्देशकः विशाल फूरिया
सितारेः विक्रांत मैसी, राधिका आप्टे, प्राची देसाई, रोहित रॉय
रेटिंग **1/2
प्लेटफॉर्मः जी5
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