`Article 370` Movie Review: पत्नी और प्रधानमंत्री दोनों को खुश करने की जिम्मेदारी थी निर्माता आदित्य धर पर
`Article 370` Movie Review: इस मूवी की खूबसूरती थी कि जो बात संसद में, टीवी डिबेट्स में और सुप्रीम कोर्ट में चर्चा के बावजूद आम आदमी को उतना समझ नहीं आई, उसको आसानी से इस मूवी में समझा दिया गया. ये मूवी ना केवल धारा 370 लगाने की वजह को 1 मिनट के अजय देवगन के सूत्रधार वाले वॉयस ओवर से समझा देती है, बल्कि धारा 370 ना हटने के पीछे क्या क्या वजहें हैं, उनको भी कई दृश्यों और डायलॉग्स के जरिए आम दर्शकों को स्पष्ट कर देती है.
निर्देशक: आदित्य सुहास जम्भाले
स्टार कास्ट: यामी गौतम, प्रियमणि, अरुण गोविल, किरण कर्माकर, राज अर्जुन, राज जुत्सी, दिव्या सेठ शाह, स्कंद संजीव ठाकुर आदि
स्टार रेटिंग: 3
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में
'Article 370' Movie Review: निर्माता आदित्य धर पर वाकई में बड़ी जिम्मेदारी थी. पत्नी आदित्य गौतम को ‘उरी’ के बाद लगातार दूसरी बड़ी फिल्म में कामयाबी दिलानी थी और चूंकि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पीएम मोदी के दूसरी बड़े फैसले पर ये मूवी बनी थी, तो उनकी प्रतिक्रिया की भी चिंता थी. ये चिंता तब और बढ़ गई थी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने रिलीज से पहले ही एक मंच से कह दिया कि, ''मैंने सुना टीवी पर कि एक फिल्म धारा 370 पर आ रही है, अच्छा है, अब लोगों को सही सूचना मिलेगी.'' अब ऐसे में कोई सूचना गलत हुई तो दिक्कत तो ही सकती थी ना.
लेकिन ये इस मूवी की खूबसूरती थी कि जो बात संसद में, टीवी डिबेट्स में और सुप्रीम कोर्ट में चर्चा के बावजूद आम आदमी को उतना समझ नहीं आई, उसको आसानी से इस मूवी में समझा दिया गया. ये मूवी ना केवल धारा 370 लगाने की वजह को 1 मिनट के अजय देवगन के सूत्रधार वाले वॉयस ओवर से समझा देती है, बल्कि धारा 370 ना हटने के पीछे क्या क्या वजहें हैं, उनको भी कई दृश्यों और डायलॉग्स के जरिए आम दर्शकों को स्पष्ट कर देती है. साथ ही ये भी बताती है कि धारा 370 हटाने जैसा नामुमकिन सा लगने वाला काम कैसे संविधान की ही एक दूसरी धारा 367 के जरिए कैसे मुमकिन हुआ.
लेकिन कहानी को उरी की तरह अजीत डोवाल, प्रधानमंत्री और आर्मी कमांडर्स के जरिए बढ़ाने के बजाय निर्देशक ने तीन लड़कियों के जरिए पूरी कहानी को बढ़ाया. शायद 15 दिन बाद आने वाले महिला दिवस का असर था. पहली महिला हैं जूनी हक्सर (यामी गौतम धर), जो अपने ह्विसिल ब्लोअर पापा की हत्या जो आत्महत्या दिखा दी गई, से आहत होकर आईडी (आईबी) में शामिल हो जाती हैं और कश्मीर में बुरहान वानी का एनकाउंटर बैक चैनल्स में फंसे अपने सीनियर की अवहेलना करके भी करवा देती हैं. सो दिल्ली ट्रांसफर हो जाता है.
दूसरी महिला हैं पीएमओ में ज्वॉइंट सेक्रट्री राजेश्वरी स्वामीनाथ, जिनको इतना शक्तिशाली दिखाया गया है, मानो धारा 370 उन्हीं की मेहनत से हटी है और वही एनआईए आदि एजेंसियों को हैंडल करती हैं. एक वक्त में तो उन्हीं के जरिए कश्मीर में आर्मी मूवमेंट भी होता है. तीसरी महिला एक टीवी रिपोर्टर हैं, जो पीएमओ में भी बेरोकटोक घुस जाती हैं, कभी भी राजेश्वरी पर ताने मार देती हैं, लगता ही नहीं निर्देशक को वर्तमान पीएमओ या चैनल्स की कार्यशैली का कोई आइडिया रहा होगा, वो बरखा दत्ता से ज्यादा प्रभावित लगता है.
पूरी मूवी में प्रधानमंत्री बने अरुण गोविल या अमित शाह बने किरण कर्माकर इंटरवल के बाद ही दिखते हैं, जिसमें चूंकि अमित शाह ने ही राज्यसभा में दमदारी से 370 को हटाने की बहस की थी, सो किरण कर्माकर को आखिर में स्क्रीन स्पेस ज्यादा मिल गया है. बाकी सभी कलाकारों में फारुख अब्दुल्ला का रोल करने वाले राज जुत्सी या महबूबा मुफ्ती के किरदार को जरूर बीच बीच में स्क्रीन स्पेस मिला है, नहीं तो यामी के बॉस राज अर्जुन और उसके सहयोगियों यश चौहान और वसीम को ही समय मिला है, नहीं तो मूवी यामी और प्रियमणि के इर्द गिर्द ही धूमती रही है.
फिल्म की कहानी जूनी हक्सर के जरिए बुरहान वानी की हत्या के बाद उन्हें दोबारा दिल्ली से कश्मीर भेजे जाने से शुरू होती है, जब उन्हें एनआई की इंचार्ज बनाकर भेजा जाता है. मकसद था धारा 370 को हटाने से पहले अलगाववादियों के फाइनेंशियल नेटवर्क को खत्म करना, सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक करना, फिर धारा 370 हटाना. ऐसे में प्रियमणि पीएमओ में उसको हटाने का फॉरमूला ढूंढ रही हैं तो साथ में यामी के जरिए कश्मीर में एक्शन ले रही हैं.
फिल्म की खासियत है, सब कुछ पता होने के बावजूद फिल्म को दिलचस्प और बांधे रखने वाली बनाना, दो शॉर्ट फिल्मों को नेशनल अवॉर्ड दिलवाने वाले निर्देशक आदित्य गोवा के हैं और दोस्तों में चक्रमादित्य के नाम से जाने जाते हैं, वो इसमें कामयाब भी रहे हैं, लेकिन फिल्म आसानी से कम से 20 मिनट कम हो सकती थी. यामी और प्रियमणि के अलावा भी कोई बड़ा चेहरा मूवी में होता तो थिएटर्स तक दर्शकों को खींचकर रखने में भी आसानी होती.
ये भी बड़ी बात है कि बिना वजह निर्देशक ने 'राष्ट्रवाद' का माहौल या पीएम का आभामंडल नहीं दिखाया. शायद एक ही बार भारत माता की जय होती है, अमित शाह का इमोशनल होकर ये कहना कि कश्मीर से हम इमोशनली जुड़े हैं और सारा का सारा कश्मीर हमारा है, जरुर असर करते हैं. पीएम मोदी का रुख भी एक डायलॉग ‘संसद चले ना चले देश चल पड़ा है’ से दमदार लगता है.
फिल्म बड़ी खूबसूरती से बताती है कि कैसे धारा 370 की शर्त कि केन्द्र सरकार फैसला नहीं ले सकती, बल्कि कश्मीर का संविधान सभा ही ले सकती थी, जो 1957 में ही भंग हो गई, उसका तोड़ कैसे निकाला गया था. कैसे धारा 367 में उसका तोड़ ढूंढा गया और राष्ट्रपति के हस्ताक्षरों से ये आसानी से हो गया ये इस फिल्म को देखकर आम जनता समझेगी.
लेकिन तमाम रिसर्च पर तब सवाल उठते हैं, जब मूवी से अजीत डोवाल, जम्मू कश्मीर के गवर्नर, आर्मी चीफ, राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ, जम्मू कश्मीर शोध संस्थान, एडवोकेट जनरल जैसे किरदार सिरे से ही गायब कर दिए जाते हैं. ये भी कफी अजीब लगता है कि पीएमओ में ज्वॉइंट सेक्रेट्री के पास ही सारी सरकार की जिम्मेदारी थी, धारा 370 हटाने का फॉर्मूला ढूंढने से लेकर, एनआईए की कमान भी संभालने तक, कश्मीर में अलगाववादियों पर रेड पड़वाने से लेकर आतंकियों के एनकाउंटर करने तक आदि.
एक मामूली आईबी अधिकारी यामी गौतम को भी ऐसे दिखाया गया,जैसे ना वहां आर्मी कमांडर्स हैं, और ना ही उप राज्यपाल, वही अलगाववादियों को गिरफ्तार कर उलटा लटकाकर राज जान रही है, वही लाइब्रेरी से 370 हटाने का फॉरमूला चुरा रही है, वही बुरहान वानी और जाकिर नायक का एनकाउंटर कर रही है और वही कश्मीर में सुरक्षा बलों की तैनाती कर रही है और डायरेक्टर पीएमओ में रिपोर्ट भी कर रही है. इस मूवी को देखते वक्त ज्यादा दिमाग लगाने भी बचना चाहिए.
ऐसे में सुखद ये भी है कि बिना मतलब के मूवी में गाने नहीं ठूंसे गए, लव स्टोरी दिखाने में समय बर्बाद नहीं किया गया. बिना मतलब के किरदार भी नहीं हैं. यामी गौतम हर नई मूवी के साथ पहले से बेहतर दिखती हैं, अपने किरदार में वो यहां भी पूरी तरह घुस गई हैं, राज जुत्सी, प्रियमणि, राज अर्जुन और अमित शाह के रोल में किरण कर्माकर प्रभावित करते हैं.