Heeramandi Review: हीरे की तरह तराशकर भंसाली ने बनाई है 'हीरामंडी', खजाना साबित हुईं मनीषा-अदिति-सोनाक्षी समेत महिला ब्रिगेड
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Heeramandi Review: हीरे की तरह तराशकर भंसाली ने बनाई है 'हीरामंडी', खजाना साबित हुईं मनीषा-अदिति-सोनाक्षी समेत महिला ब्रिगेड

Heeramandi Review: मनीषा कोइराला , सोनाक्षी सिन्हा, ऋचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी , संजीदा शेख , शर्मिन सहगल , ताहा शाह , फरदीन खान , अध्ययन सुमन और शेखर सुमन जैसे सितारों से सजी वेब सीरीज 'हीरामंडी द डायमंड बाजार' रिलीज हो चुकी है. नेटफ्लिक्स की सीरीज को संजय लीला भंसाली ने बनाया है और ये उनका डिजिटल डेब्यू है. पढ़िए 'हीरामंडी' का रिव्यू.

हीरामंडी वेब सीरीज का पोस्टर

वेब सीरीज: हीरामंडी द डायमंड बाजार
कास्ट: मनीषा कोइराला , सोनाक्षी सिन्हा, ऋचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी , संजीदा शेख , शर्मिन सहगल , ताहा शाह , फरदीन खान , अध्ययन सुमन और शेखर सुमन
डायरेक्टर: संजय लीला भंसाली
राइटर: संजय लीला भंसाली मोइन बेग , विभु पुरी और दिव्य निधि
ओटीटी: नेटफ्लिक्स
स्टार्स:

हीरामंडी. 8 एपिसोड की सीरीज भर नहीं बल्कि संजय लीला भंसाली का 18 सालों का ख्वाब है. जिसे उन्होंने हीरे की तरह तराशा है. आखिरकार नेटफ्लिक्स पर 'हीरामंडी' रिलीज हो चुकी है. मनीषा कोइराला, अदिति राव हैदरी, सोनाक्षी सिन्हा, संजीदा शेख, शर्मिन सहगल, ऋचा चड्ढा, ताहा शाह, जैसन शाह, फरदीन खान, अध्ययन सुमन और शेखर सुमन जैसे तमाम सितारे इस सीरीज में हैं. मगर कमान पूरी तरह से महिलाओं के हाथ में है. ऐसी कहानी जो काल्पनिक जरूर है लेकिन होश में ले आती है कि कैसे आजादी की लड़ाई में तवायफों का भी योगदान है. वैसे तो स्वंतत्रता सेनानियों के किस्से तो कई सुने होंगे लेकिन भंसाली की कलम से अनसुने किस्से देख लीजिए. न तो पहले ऐसी कहानी देखी होगी न ही सुनी होगी.

संजय लीला भंसाली अपने आप में संपूर्ण हैं. जब-जब कुछ बनाते हैं तो वो एक मिसाल बन जाती है. वैसे तो भंसाली को 28 साल का अनुभव है मगर ओटीटी पर पहली बार आए हैं. उन्होंने इस बार ओटीटी पर करीब 8 घंटे का स्पेस लिया है. इन 8 घंटों में वह आपको मल्टीस्टार्स का अभिनय, बड़े-बड़े महल, कॉस्ट्यूम के साथ-साथ आजादी का रंग भी दिखाते हैं. चलिए बताते हैं आखिर कैसी है 'हीरामंडी'.

कहानी (Heeramandi Story)
शुरुआती चार एपिसोड करीब घंटाभर के हैं और फिर आखिर के चार एपिसोड पौना-पौना घंटे के हैं. 'हीरामंडी' की कहानी अभी तक आपने तवायफों से जोड़कर ही सुनी होगी. लेकिन ये सिर्फ कोठे की कहानी नहीं बल्कि आजादी की लड़ाई भी है. ये लड़ाई औरतों की आजादी की भी है तो एक मां-बेटी के रिश्ते की भी. एक प्यारी सी प्रेम कहानी भी देखने को मिलेगी तो एक देवदास जैसी दर्दभरी लव स्टोरी भी. एक कहानी उस तवायफ की है जो कोठे से कमाए पैसों से देश को आजाद कराने की जद्दोजहद में लगी है.

लाहौर में हीरामंडी डायमंड बाजार है. जहां मल्लिका जान (मनीषा कोइराला) का राज है. शुरुआती एपिसोड में दिखाया जाता है कि मल्लिका जान कैसे और किसके खून से कद्दावर तवायफ बनीं. बाद में यही जख्म उन्हें अर्श से फर्श पर भी ले आता है. खैर, मल्लिका जान की दो बेटियां हैं. एक बिब्बो जान (अदिति राव हैदरी) जो एक परफेक्ट बेटी के साथ-साथ देश की जंग का छुपकर हिस्सा भी हैं. तो दूसरी आलमजेब (शर्मिन सहगल) जो शायरी करना चाहती हैं. जो मां की तरह कोठे पर नहीं बैठना चाहती हैं. मगर तवायफ की बेटी होना और इश्क कर बैठना ही उसकी सबसे बड़ी भूल होती है. दो बच्चियों के अलावा एक 6 साल की बच्ची लज्जो (ऋचा चड्ढा) को भी मल्लिका ने पाला पोसा था. जो बड़ी होकर एक नवाब को दिल दे बैठती है और बदले में उसे मिलता है धोखा. शाहरुख खान की देवदास की तरह ये लज्जो भी दिल बिल्कुल तार-तार कर देती है. रोना भी आता है और तरस भी. खैर मल्लिका जान की जान को आफत तो तब आती है जब पुराना अतीत फरीदन (सोनाक्षी सिन्हा) की एंट्री होती है. अब एक लड़ाई आजादी की चल रही है, दूसरी आजादी हीरामंडी पर राज की तो तीसरी मल्लिका और फरीदन की अलग. 

'हीरामंडी' का रिव्यू (Heeramandi Review)
संजय लीला भंसाली के डायरेक्शन की बात करें तो वह इस कला में माहिर हैं. अगर एसएस राजामौली एक्शन के बाप हैं तो राजा-रानी और महलों की कहानी में भंसाली. इस बार भंसाली की चुनौती थी समय. जी हां, समय सिनेमा के लिए बड़ा मायने रखता है. कम समय में ज्यादा से ज्यादा बात कहना फिल्म के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है. यही समय ओटीटी में दिल खोलकर मिलता है. मगर यही समय अगर ज्यादा हो जाए तो दर्शकों को उबाऊ भी कर देता है. मतलब समय का भरपूर उपयोग करना ही भंसाली का सबसे बड़ा चैलेंज था. करीब 8 घंटे में भंसाली ने कई परतों को दिखाया है. इसके लिए एक-एक सीन को हीरे की तरह तराशा गया है ताकि विजुअल्स बेहतर से भी बेहतर बनें. आजादी से पहले की कहानी है, मगर विजुअल्स का खास ध्यान रखा है कि उबाऊ न लगे. तवायफों के लिए कॉस्ट्यूम और ज्वैलरी पर भर-भरकर काम किया गया है. हरेक सीन में कपड़े, ज्वैलरी से लेकर महल इतने भव्य बनाए हैं कि भंसाली एक बार फिर इस मामले में बाजी मारते हैं. 

ओटीटी पर होने के बावजूद भंसाली ने एक भी दृश्य को अश्लील या फालतू के गाली-गलौज से भरा नहीं है. चंद शब्दों को छोड़ दें तो साफ सुथरी सी सीरीज उन्होंने बनाई है. हालांकि शुरुआत में अगर 'हीरामंडी' को थोड़ा स्पीड दी गई होती तो ये कहानी सीधे वार करती. मगर डायरेक्टर और राइटर ने जल्दबाजी से नहीं करनी थी. 

फिल्म के लेखन में संजय लीला भंसाली के साथ मोइन बेग, विभु पुरी और दिव्य निधि भी जुटे हैं. कहानी लाजवाब है जिसमें कोई कमी नहीं. मगर इसकी स्क्रिप्ट को हल्का सा शुरुआत में कस दिया गया होता तो ये पहले ही सीन से आखिरी सीन तक बिना ब्रेक पटरी पर दौड़ती. खैर कैमरा वर्क इतना शानदार है कि देवदास से लेकर मुगल-ए-आजम तक की याद आती है. 

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कास्टिंग और एक्टिंग
भंसाली ने इस बार महिला प्रधान फिल्म बनाई है. वैसै तो उनकी हर फिल्म में महिलाओं को अच्छा खासा रोल मिलता रहा है. मगर इस बार पूरी कमान ही औरतों के हाथ में है. जो इन रोल्स में खूब जचती हैं. बस कुछ जगह आप यकीनन रेखा, माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय को मिस जरूर करेंगे. मनीषा कोइराला की ये बेस्ट परफॉर्मेंस कह सकते हैं तो अदिति रॉय हैदरी ने कमाल कर दिया है. उन्होंने जिस मासूमियत से इस रोल को प्ले किया है वह सोच भी नहीं सकते. शर्मिल भी भंसाली की उम्मीदों पर खरा उतरती हैं. सोनाक्षी ने भी करियर में एक डिफरेंट रोल प्ले किया और छक्का जड़ा है. संजीदा शेख हों या ऋचा चड्ढा दोनों ने ही अपने अपने में रोल में बराबर मसाला जोड़ा है. वहीं मेल एक्टर्स की बात करें तो वो इस खेल में प्यादे भर थे.

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