Netaji Subhas Chandra Bose: स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) के परिजन अब उनके नाम पर अक्सर होने वाले ‘गुमनामी बाबा प्रचार’ को लेकर नाराज हैं. दस्तावेजों और किताबों के बाद अब यह बात फिल्मों के माध्यम से भी सामने आने लगी है और उन्होंने इसके विरुद्ध अदालत में जाने का मन बना लिया है. नेताजी के परिजनों ने सुभाष चंद्र बोस को गुमनामी बाबा बताने वाली एक बांग्ला फिल्म ‘संन्यासी देशोनायक’ के विरुद्ध कलकत्ता हाईकोर्ट में जाने की तैयारी शुरू कर दी है. वे अदालत से फिल्म की रिलीज रोकने का आदेश पाने का प्रयास करेंगे. यह फिल्म नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन के आखिरी दिनों की पड़ताल करने का दावा करती है. फिल्म करीब तीन साल से बन कर तैयार है, मगर अब इसे रिलीज करने की तैयारी की जा रही है.


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ताकि बना रहे नाम का सम्मान
फिल्म ट्रेड वेबसाइट फिल्म इनफरमेशन के अनुसार बोस के परिवारजनों ने कहा कि वे कुछ अच्छे वकीलों के संपर्क में हैं, जो नेताजी के गुमनामी बाबा होने की अवधारणा को अदालत में चुनौती दे सकें. उल्लेखनीय है कि कई बार ऐसी चर्चा देश में होती रही है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस देश आजाद होने के बाद 1960 के दशक में भारत लौटे थे और यूपी के फैजाबाद में अंतिम रूप से अपना ठिकाना बनाने से पहले वह अलग-अलग जगहों पर रहे. 1965 में गुमनामी बाबा ने फैजाबाद में ही अंतिम सांस ली. नेताजी का परिजनों का मानना है कि नेताजी को फिल्मों में इस तरह से दिखाया जाना इस महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का अपमान है. रिश्ते में नेताजी के पड़पोते लगने वाले चंद्रा बोस ने कोलकाता में कहा कि महान देशभक्त नेताजी के बारे में गलत बातें फैलाए जाने को रोकने का समय आ गया है. हम उनके नाम का सम्मान बनाए रखने के लिए अदालत में याचिका दायर करेंगे. ताकि यह फिल्म रिलीज होने से रोकी जाए. उल्लेखनीय है कि 2019 में नेताजी के परिवार के 32 सदस्यों ने फिल्म गुमनामी बाबा की रिलीज पर नाखुशी जताई थी, जिसमें कहा गया था कि 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस गायब हो गए थे और जापान में हुए विमान हादसे में उनकी मृत्यु नहीं हुई थी. उन्होंने दावा किया था कि यह फिल्म इतिहास को तोड़-मरोड़ रही है.



निर्देशक का दावा
दूसरी तरफ संन्यासी देशोनायक के निर्देशक अमलानकुसुम घोष का कहना है कि यह फिल्म जस्टिस मनोज कुमार मुखर्जी से लिए मेरे इंटरव्यू पर आधारित है. जस्टिस मुखर्जी सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश थे, जिन्हें सरकार ने 1999 में नेताजी की जांच की जिम्मेदारी दी थी और उन्होंने 2005 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. उन्होंने कहा कि मैं बोस परिवार से अनुरोध करता हूं कि वह आईएनए के इतिहास पर प्रतुल गुप्ता की किताब की पांडुलिपि को जारी करें, जिससे देश के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में आईएनए के योगदान का सही-सही इतिहास पता चले. चंद्रा बोस कहा है कि नेताजी की मौत से जुड़ी सारी फाइलें 2016-17 में डीक्लासिफाई हो चुकी हैं, जिनमें सभी 11 इनक्वायरी कमिशन की रिपोर्ट सामने है. इन ग्यारह में से 10 रिपोर्टों में कहा गया है कि नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त, 1948 को विमान हादसे में हुई थी.



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