Bhopal Disaster 1984: भोपाल... तीन दिसंबर, 1984 की काली रात को आज 40 साल बाद भी याद कर लोगों की रूह कांप उठती है. यूनियन कार्बाइड संयंत्र से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) का रिसाव भारतीय इतिहास की सबसे भयानक औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक बन गया. उस रात, जब लोग गहरी नींद में थे, शहर में मौत ने अपने पैर पसार दिए. डकैतों द्वारा मिर्च जलाने की अफवाह से शुरू हुआ यह भयावह मंजर हजारों जिंदगियों को लील गया और लाखों को घायल कर गया.


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अफवाहों से मौत की सच्चाई तक


भोपाल में यूनियन कार्बाइड के एक पूर्व वैज्ञानिक के लिए तीन दिसंबर का दिन एक सामान्य कार्य दिवस की तरह शुरू हुआ था. उन्होंने सुबह 8 बजे अपने घर से निकलकर फैक्ट्री जाने के लिए बस का इंतजार किया. लेकिन उस वक्त सूचना के सीमित साधनों की वजह से उन्हें यह नहीं पता था कि रात के अंधेरे में उनकी फैक्ट्री से निकली जहरीली गैस ने पूरे शहर में कहर बरपाया है.


खबरें जंगल की आग की तरह फैल रही थीं


वैज्ञानिक ने बताया, "जब हम बस का इंतजार कर रहे थे, एक राहगीर ने घबराते हुए बताया कि गैस लीक हो गई है और इससे कई लोगों की मौत हो चुकी है." उस समय पान और चाय की दुकानों से खबरें जंगल की आग की तरह फैल रही थीं. लेकिन स्पष्ट जानकारी का अभाव था.


डकैतों की मिर्च जलाने की अफवाह


रात करीब 2:30 बजे, वरिष्ठ प्रेस फोटोग्राफर गोपाल जैन के घर एक महिला रिश्तेदार आई. उसकी लाल और सूजी हुई आंखें देखकर जैन चौंक गए. महिला ने कहा, "डकैतों ने लाल मिर्च जलाकर पुराने भोपाल पर हमला किया है. पूरा इलाका धुएं में डूबा हुआ है." जैन ने जब अपने घर से बाहर झांककर देखा तो पाया कि लोग पुराने भोपाल से नए भोपाल की ओर भाग रहे हैं. उन्हें सच्चाई का एहसास अगली सुबह हुआ, जब हमीदिया अस्पताल में चारों तरफ लाशें बिखरी हुई थीं.


हमीदिया अस्पताल में दर्दनाक दृश्य


जैन ने बताया, "सुबह जब मैं अस्पताल पहुंचा, तो स्थिति भयावह थी. हर तरफ अफरा-तफरी मची थी और शवों का ढेर लगा था. लोग अपने रिश्तेदारों को ढूंढ रहे थे. वहां मुझे पता चला कि यह डकैतों का हमला नहीं, बल्कि यूनियन कार्बाइड संयंत्र से गैस रिसाव का परिणाम था."


फैक्ट्री के बाहर छुपा खौफ


फैक्ट्री के वैज्ञानिक ने बताया कि संयंत्र के गेट पर पुलिस तैनात थी और किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं दी जा रही थी. उन्होंने सुना कि सरकारी अस्पताल में हालात बेकाबू हो चुके हैं. "हमें कंपनी ने सूचित किया कि कारखाना बंद रहेगा और हमें घर लौट जाना चाहिए. गुस्साए लोगों से बचने के लिए हमें अपने नाम-पट्टिका (आईडी) हटाने को कहा गया," वैज्ञानिक ने याद किया.


त्रासदी का भयावह आंकड़ा


इस त्रासदी में तत्कालीन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 5,474 लोगों की जान गई, जबकि पांच लाख से अधिक लोग गैस के जहरीले प्रभाव से प्रभावित हुए. शहर में उस समय कोई इंटरनेट या मोबाइल नहीं था, जिससे स्थिति की गंभीरता का तुरंत अंदाजा लगाया जा सके.


आज भी कायम है दर्द


इस घटना को चार दशक बीत गए, लेकिन इसका जख्म आज भी हरा है. हजारों लोग गैस के प्रभाव से बीमारियों का शिकार हो गए, कई परिवार तबाह हो गए, और पीढ़ियों तक इसका असर बना रहा. भोपाल गैस त्रासदी ने न केवल एक औद्योगिक दुर्घटना की भयावहता को उजागर किया, बल्कि यह भी दिखाया कि किसी तकनीकी चूक से कितनी बड़ी आपदा हो सकती है. आज भी भोपाल के लोग उस रात को याद कर सिहर उठते हैं. डकैतों की मिर्च जलाने की अफवाह से शुरू हुआ यह त्रासदी भले ही इतिहास का हिस्सा बन चुकी है, लेकिन इसका दर्द अनंत है.


(एजेंसी इनपुट के साथ)