Delhi Elections: दिल्ली चुनाव में AAP-कांग्रेस में नहीं होगा गठबंधन, किसको होगा नुकसान और किसे फायदा?
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Delhi Elections: दिल्ली चुनाव में AAP-कांग्रेस में नहीं होगा गठबंधन, किसको होगा नुकसान और किसे फायदा?

Delhi Assembly Elections 2025: हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में इंडिया गठबंधन को मिली हार के बाद अरविंद केजरीवाल ने एक बड़ा झटका दिया है. उन्होंने कहा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में उनकी आम आदमी पार्टी अकेले मैदान में उतरेगी.

Delhi Elections: दिल्ली चुनाव में AAP-कांग्रेस में नहीं होगा गठबंधन, किसको होगा नुकसान और किसे फायदा?

AAP-Congress No Alliance News: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के गठबंधन को लेकर लगते कयासों पर पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पूर्णविराम लगा दिया. प्रदेश के मौजूदा सियासी हालातों पर चिंता जताते हुए आप के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल ने रविवार को अटकलबाजियों को खारिज किया और पार्टी के अकेले चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा कर दी.

इंडिया गठबंधन और कांग्रेस पार्टी दोनों को अब दिल्ली में झटका

केजरीवाल के बयान से आप की राजनीतिक स्थिति एकदम साफ होने के चलते इंडिया गठबंधन और कांग्रेस दोनों को हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में मिली हार के बाद दिल्ली में एक बड़ा झटका लगा है. क्योंकि, राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन के घटक कांग्रेस और आप ने इस साल की शुरुआत में लोकसभा का चुनाव दिल्ली में मिलकर लड़ा था. हालांकि, उन्हें सभी सातों सीटों पर भाजपा के मुकाबले हार का सामना करना पड़ा था. 

हरियाणा की तरह दिल्ली में हो सकता है दोनों पार्टियों को नुकसान

इससे पहले हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी आप और कांग्रेस के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद सीट बंटवारा नहीं हो पाया था और दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे थे. चुनावी नतीजे में आप बुरी तरह फेल हो गई थी, लेकिन कांग्रेस भी सत्ता के करीब आकर फिसल गई थी. यानी दिल्ली के पड़ोसी राज्य में इंडिया गठबंधन के दोनों ही दलों के लिए अकेले-अकेले लड़ना नुकसानदेह साबित हुआ था. आइए, जानते हैं कि दिल्ली चुनाव में AAP-कांग्रेस में गठबंधन नहीं होने से किसको नुकसान और किसे फायदा हो सकता है?

आप और कांग्रेस दोनों को अलग-अलग लड़ने से फायदे की उम्मीद

महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को मिली हार के बाद अरविंद केजरीवाल के इस फैसले ने एक नया झटका दिया है. हालांकि, दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन मौजूदा सियासी हालात से बेहतर होने की उम्मीद की जा रही है. क्योंकि फिलहाल वह जीरो पर आउट है. कांग्रेस की ओर से भी एक दिन पहले ही अकेले दिल्ली चुनाव लड़ने का फैसला किया जा चुका है. दोनों पार्टी के कार्यकर्ता इस फैसले को लेकर दुविधा में बताए जा रहे हैं. 

दिल्ली चुनाव में कांग्रेस को क्या और कितना होगा सियासी नुकसान?

दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा कि कांग्रेस सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. मुख्यमंत्री पद को लेकर चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस विधायक दल द्वारा फैसला लिया जाएगा. अब केजरीवाल ने भी ऐसा ही ऐलान कर दिया है. हालांकि लोकसभा चुनाव के नतीजे का आकलन करें तो आप के मुकाबले कांग्रेस को ज्यादा नुकसान होने की आशंका है. लोकसभा चुनाव में दिल्ली में कांग्रेस को 18.91 प्रतिशत, भाजपा को 54.35 प्रतिशत और आम आदमी पार्टी को 24.17 प्रतिशत वोट मिले थे. अकेले-अकेले आंकड़ों में कांग्रेस कमजोर दिख रही है.

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 और 2020 में कांग्रेस खाली हाथ

लोकसभा चुनाव के पहले हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 का परिणाम देखें तो आम आदमी पार्टी ने कुल 70 में से 62 सीटों पर प्रचंड जीत हासिल की थी.  लगातार दूसरे चुनाव में दिल्ली की जनता ने आप पर भरोसा जताया था. भाजपा को तब महज 8 सीटें मिलीं और कांग्रेस की झोली खाली रह गई थी. इससे पहले विधानसभा चुनाव 2015 में भी आप ने 70 में से 67 सीटें जीतकर सबो चौंका दिया था. उस दौरान भाजपा को केवल तीन सीट पर जीत मिली थी. कांग्रेस के हाथ तब भी खाली था. 

दिल्ली चुनाव में आप, भाजपा और कांग्रेस का त्रिकोणीय मुकाबला!

चुनावी राजनीति में आप के आने के बाद से दिल्ली विधानसभा चुनाव में हमेशा भाजपा, कांग्रेस और आप के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है. हालांकि, आप विधानसभा चुनाव के बाद स्थानीय निकायों के चुनाव पर भी विपक्षी दलों पर हावी दिखी. हालांकि, मौजूदा सियासी परिस्थिति में भ्रष्टाचार के आरोप में जमानत पर जेल से बाहर आए आप के शीर्ष नेताओं का समूह कई दिग्ग्जों के पार्टी छोड़ने से भी उहापोह में है. लेकिन केजरीवाल ने लगातार सियासी गोटियां सेट करने की कवायद तेज कर दी है.

चुनावी नुकसान की आशंका को कम करने में जुटी आम आदमी पार्टी

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए आप ने सबसे पहले उम्मीदवारों के नाम की सूची जारी कर दी. 11 उम्मीदवारों की इस लिस्ट में 6 ऐसे नाम हैं, जो कांग्रेस या भाजपा छोड़कर आप में आए हैं. इन सभी छह नेताओं को खुद अरविंद केजरीवाल ने आप में शामिल कराया था. इनमें दो ऐसे नेता भी हैं जो भाजपा से विधायक रह चुके हैं. हालांकि, दिल्ली में आक्रामक राजनीति की शुरुआत करने के बावजूद आप ने राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन का हिस्सा बने रहने की बात कही. जबकि, दिल्ली में दोनों एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारेंगे.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को क्यों है फायदा होने की उम्मीद

दिल्ली में अगले साल 2025 के फरवरी महीने में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. हालिया, हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को भारी बहुमत मिलने से भाजपा का मनोबल बढ़ा हुआ है. हाल ही में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के कई स्थानीय दिग्गज भाजपा में शामिल हुए हैं. भाजपा भ्रष्टाचार, यमुना की सफाई, मुफ्त की रेवड़ी, वादों का पूरा नहीं होने जैसे कई मुद्दों पर आप सरकार को घेर रही है. कांग्रेस और आप की आपसी लड़ाई में भाजपा अपने विरोधी वोटों के बंटने से फायदे में रह सकती है.

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अगर दिल्ली चुनाव को कांग्रेस त्रिकोणीय नहीं बना पाई तो...

वहीं, अगर दिल्ली चुनाव को कांग्रेस त्रिकोणीय नहीं बना पाई और आप का भाजपा से सीधे मुकाबला हुआ तो भी भाजपा फायदे में रह सकती है. क्योंकि दिल्ली में विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भाजपा का वोट शेयर लगातार बढ़ा है. दूसरी ओर, आप का वोट शेयर लगभग सेम है और कांग्रेस का तीन चुनाव से वोट शेयर से लगातार घटा है. आप का 2013 में 29 फीसदी, 2015 में 54 फीसदी और 2020 में 53. 57 फीसदी वोट शेयर रहा है. भाजपा का 2013 में 34 फीसदी, 2015 में 32 फीसदी और 2020 में 38.51 फीसदी वोट शेयर रहा है. 

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वोट शेयर का डेटा आकलन करें तो साफ दिखती है तस्वीर 

दूसरी ओर, कांग्रेस का दिल्ली में हुए 2013 के विधानसभा चुनाव में 25 फीसदी वोट शेयर था. 2015 में यह घटकर 10 फीसदी पर आ गया. वहीं, विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस का वोट शेयर 4.26 फीसदी पर आ गया था. इन वोट शेयर का आकलन करें तो डेटा से साफ समझ में आता है कि मुकाबला भाजपा और आप के बीच ही है. साथ ही मौजूदा चुनावी मुद्दे और रणनीति में भाजपा लगातार हमलावर रुख अख्तियार कर चुकी है. आप भी लगातार जनसंपर्क में जुटी है, जबकि कांग्रेस अभी तक हालिया सदमे से बाहर नहीं निकली है.

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