Big challenges for BJP in Haryana Elections: हरियाणा असेंबली के चुनाव में बीजेपी जहां हैट्रिक लगाने की कोशिश में है, वहीं कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए बेकरार है. जबकि जननायक जनता पार्टी, इनेलो और आम आदमी पार्टी मुकाबले को बहुकोणीय बनाने में लगी हैं. बीजेपी को फिर से सत्ता में वापस लाने के लिए खुद पीएम मोदी ने कमान संभाल ली है. उन्होंने शनिवार को कुरुक्षेत्र में रैली कर लोगों को कांग्रेस के झूठे वादों से सावधान रहने की अपील की और बीजेपी को वोट देने का आह्वान किया. 


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इन 3 मुद्दों से कैसे पार पाएगी बीजेपी?


राजनीतिक एक्सपर्टों के मुताबिक सभी विपक्षी पार्टियों के अलग- अलग चुनाव लड़ने से भले ही बीजेपी को राहत मिली हो लेकिन इसके बावजूद तीन ऐसी बड़ी चुनौतियां हैं, जिनसे बीजेपी को हर हाल में पार पाना होगा. अगर वो ऐसा नहीं कर पाती है तो उसकी जीत की हैट्रिक का सपना अधूरा रह जाएगा.  चकनाचूर भी हो सकता है. उसकी ये 3 बड़ी चुनौतियां पहलवान, किसान और जवान हैं. ये तीन ऐसे मुद्दे हैं, जिस पर बीजेपी लोकसभा चुनाव में नुकसान झेल चुकी है और अब असेंबली चुनाव में उसे इनसे जूझना पड़ रहा है. 


इनमें सबसे पहली चुनौती 'पहलवान' के बारे में बात करते हैं. महिला पहलवानों के यौन शोषण का आरोप लगाकर विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया, साक्षी मलिक ने पिछले साल लंबा आंदोलन किया था. तीनों खिलाड़ी अपने कुछ साथियों के साथ कई दिनों तक जंतर- मंतर पर भी बैठे और कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. उनके दबाव में सरकार ने न केवल बृजभूषण को कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद से हटा दिया बल्कि दोबारा चुनाव लड़ने से भी रोक दिया. लोकसभा चुनाव में भी बृजभूषण का टिकट काट दिया. 


क्या चुनाव में काम करेगा 'पहलवान' का मुद्दा?


इतने से भी तीनों खिलाड़ी संतुष्ट नहीं हुए. इस पर सरकार ने विवशता जाहिर कर दी और कहा कि मामले में केस दर्ज किया जा चुका है और जेल भेजने या न भेजने का फैसला कोर्ट ही कर सकती है. मोदी सरकार जहां खिलाड़ियों की खिलाफत करने से बचती रही और पूरी तरह डिफेंसिव दिखी, वहीं दीपेंद्र हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेसी नेता खुलकर तीनों खिलाड़ियों के पक्ष में रहे. चूंकि तीनों खिलाड़ी हरियाणा की दबंग जाट बिरादरी से संबंध रखते हैं, इसलिए आंदोलन के दौरान उन्हें अपनी बिरादरी के नेताओं से समर्थन भी मिला. 


हरियाणा में जाट समुदाय 10 से 15 फीसदी कहा जाता है. बीजेपी की चिंता है कि पहलवानों के कथित शोषण के मुद्दे पर अगर कांग्रेस जाटों को अपने पीछे एकजुट कर लेती है तो इससे उसकी हैट्रिक की संभावना खतरे में पड़ जाएगी. वह इस चुनौती की भरपाई बबिता फोगाट, ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु जैसे पार्टी से जुड़े जाट नेताओं को आगे करके कर रही है. हालांकि अपनी मुहिम में वह कितनी कामयाब हो पाती है, यह रिजल्ट वाले दिन पता चलेगा. 


नाराज किसानों को मनाना बड़ी चुनौती


हरियाणा चुनाव में बीजेपी के लिए दूसरी बड़ी चुनौती 'किसान' हैं. असल में एमएसपी समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर पंजाब के किसान पिछले काफी अर्से से पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर बैठकर आंदोलन कर रहे हैं. इस आंदोलन का हरियाणा की कुछ किसान यूनियनें भी समर्थन कर रही हैं. उनकी मांग एमएसपी वाली फसलों की संख्या बढ़ाने और उनके सरकारी दाम में बढ़ोतरी की है. यह मुद्दा सरकार के लिए उलझन भरा है, इसलिए मोदी और सैनी सरकार इस मुद्दे पर एकदम से कोई कमिटमेंट नहीं कर पा रही है. ऐसे में वह नाराज किसानों को किस तरह मना पाती है, इससे उसकी रणनीतिक का ज्ञान होगा. 


युवाओं को कैसे करेगी संतुष्ट?


बीजेपी के लिए राज्य में तीसरी बड़ी चुनौती 'जवान' हैं. जवान यानी अग्निवीर का मुद्दा. पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थान में बड़ी संख्या में युवा हर साल सेना में भर्ती की तैयारी करते रहे हैं लेकिन जब से सरकार ने अग्निवीर स्कीम लॉन्च की है. तब से हरियाणा समेत इन राज्यों के युवाओं में रोष रहा है. हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी युवाओं के इस रोष का स्वाद चख चुकी है. अब उसे असेंबली चुनाव में भी युवाओं के इस करंट से डर लग रहा है. अगर वह युवाओं को अग्निवीर के मुद्दे पर बेहतर तरीके से समझा ले जाती है तो वह अच्छे वोट हासिल कर सकती है. ऐसा नहीं होता है तो उसे बड़ा नुकसान भी हो सकता है. 


हरियाणा में 5 अक्टूबर को होगी वोटिंग 


बताते चलें कि हरियाणा असेंबली में कुल 90 सीटें हैं. इन सीटों के लिए 5 अक्टूबर को वोटिंग और 8 अक्टूबर को काउंटिंग होगी. जिस पार्टी को 46 सीट मिल जाएगी, उसकी सरकार बन जाएगी. वर्ष 2019 में हुए इलेक्शन में बीजेपी को 40 और बीजेपी को 31 सीटें मिली थीं. अजय चौटाला की पार्टी जेजेपी ने 10 सीटें हासिल की थी और 9 सीटों पर निर्दलीय जीते थे. बाद में बीजेपी ने जेजेपी के साथ मिलकर राज्य में दूसरी बार गठबंधन सरकार बना ली थी.