BJP Politics: राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से 'चुनावी मॉनसून' अब लौट रहा है. वोटों की मूसलाधार बारिश से भीगी भाजपा के लिए कुछ दिनों तक कई पूर्वानुमान जारी हुए. ये पूर्वानुमान तीनों राज्यों में सीएम पद की रेस में आगे चल रहे उम्मीदवारों के लिए हो रहे थे. लेकिन यहां किसी भी चुनावी पंडित का अनुमान सही साबित नहीं हुआ. भाजपा ने जब राज्यों के सीएम का ऐलान करना शुरू किया तो तमाम दिग्गजो की सियासत धरी की धरी रह गई. कुछ की उम्मीदों को गहरा ठेस भी पहुंचा होगा. छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय, मध्यप्रदेश में मोहन यादव और राजस्थान में भजनलाल शर्मा सियासी जानकारों के हिसाब से कहीं से भी सीएम पद के लिए फिट नहीं बैठ रहे थे. लेकिन भाजपा ने सीएम का खांचा ही इन नेताओं के लिए बनाया था. अब हम आते हैं इस लेख के शीर्षक पर. इन नेताओं की जाति भले ही एक नहीं है.. लेकिन इनकी तासीर एक है. तीनों ही आरएसएस से जुड़े हुए हैं और हिन्दुत्व इनकी रोम-रोम में बसता है.


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भाजपा का मास्टरस्ट्रोक


तीनों राज्यों में सीएम के ऐलान से एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि भाजपा किसी भी तरह से लोकसभा चुनाव में पिछड़ना नहीं चाहती है. भाजपा की तैयारी बयां कर रही है कि इस बार का लोकसभा चुनाव, विपक्ष के लिए बेहद मुश्किल होने वाला है. क्योंकि तीन राज्यों के चुनाव में जीत हांसिल करने के बाद भाजपा को यह पता लग गया है कि जनता का क्या मूड है. वहीं, घोर मंथन के बाद हुए सीएम के ऐलान ने साबित कर दिया है कि लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की स्ट्रेटजी बहुत ही अलग रहने वाली है. भाजपा हिन्दुत्व के साथ अपना झंडा बुलंद तो करेगी ही, साथ ही जाति की राजनीति में भी विपक्ष को चोट पहुंचाएगी.


आरएसएस से पुराना नाता


राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने ब्राह्मण, यादव और आदिवासी सीएम घोषित कर बड़ा मैसेज दिया है कि वह जाति की राजनीति में विश्वास नहीं रखती. लेकिन राजनीति में अब तक यह देखने को नहीं मिला है कि जो सीएम बना है उसके पीछे उसका समुदाय न जाए. भाजपा भले ही यह कहती रहे कि वह जाति की राजनीति से दूर है लेकिन राजनीति में जाति की एंट्री हो ही जाती है. यह ऐंगल छोड़ भी दिया जाए तो भाजपा ने जिन तीन चेहरों को सीएम का ताज पहनाया है, वे एक ही पाठशाला के छात्र रहे हैं. जिसका नाम आरएसएस है. आरएसएस से जुड़ाव होने का मतलब है कि आपका हिन्दुत्व के प्रति झुकाव जरूर होगा.


हिन्दुत्व का एजेंडा...


समझने की बात यह है कि तीनों राज्यों के सीएम की जाति तो अलग है लेकिन उनकी मानसिकता हिन्दुत्व वाली ही है. पहले बात करते हैं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की. तीन बार के विधायक मोहन यादव ओबीसी नेता हैं. मध्यप्रदेश का उच्च शिक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने 'रामचरितमानस' को कॉलेज स्टूडेंट्स के लिए एक वैकल्पिक विषय बनाने की घोषणा की थी. आरएसएस के करीबी माने जाने वाले मोहन यादव को मुखर हिंदुत्व नेता के रूप में भी जाना जाता है. यहां मोहन यादव के साथ भाजपा का हिन्दुत्व एजेंडा और ओबीसी वोट को साधने की जुगत, दोनों को ही बल मिलता दिख रहा है. लोकसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो मध्यप्रदेश की आबादी में ओबीसी की 48 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है.


छत्तीसगढ़ में भाजपा ने चौंकाया


अब बात करते हैं छत्तीसगढ़ की जहां के नए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय होंगे. विष्‍णुदेव साय के सियासी करियर की शुरुआत सरपंच से शुरू हुई. वे 1990 से लेकर 1998 तक मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे. वो चार बार सांसद भी रह चुके हैं. विष्णुदेव साय का आरएसएस से गहरा नाता रहा है. उनके परिवार के बडे़-बूढ़े भी आरएसएस के सक्रिय सदस्य रहे हैं. इससे कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि भाजपा ने विष्णुदेव को मुख्यमंत्री बनाकर राज्य की 32 फीसद आदिवासी जनसंख्या में जड़ मजबूत करने के साथ हिन्दुत्व का एजेंडा साधने की भरसक कोशिश की है. विष्णुदेव के लिए अमित शाह ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था, "विष्णुदेव जी हमारे अनुभवी कार्यकर्ता हैं. नेता हैं, सांसद रहे, विधायक रहे, प्रदेश अध्यक्ष रहे. एक अनुभवी नेता को भारतीय जनता पार्टी आपके सामने लाई है. आप इनको विधायक बना दो. उनको बड़ा आदमी बनाने का काम हम करेंगे."


आखिरी चोट राजस्थान में


आखिर में बचता है राजस्थान.. यहां भी भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष के खिलाफ मास्टरस्ट्रोक खेला है. भाजपा के इतिहास के पन्नों को खंगालेंगे तो आपको यह जरूर मिलेगा की इस पार्टी को सवर्णों की पार्टी भी कहा जाता है. लेकिन अब यह भी कहा जाने लगा था कि भाजपा में ब्राह्मण हाशिये पर हैं. राजस्थान की कमान भजनलाल को सौंपकर भाजपा ने यह जाहिर कर दिया है कि सवर्ण उनके लिए गैर नहीं हैं. इसके साथ ही भजनलाल शर्मा भी आरएसएस के करीबी बताए जाते हैं. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भजनलाल को सीएम बनाकर पार्टी ने ब्राह्मणों को खुश करने के साथ-साथ हिन्दुत्व का भी पूरा ख्याल रखा है. भाजपा की इस रणनीति ने बड़े-बड़े सियासी धुरंधरों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अब विपक्ष के पास क्या शेष विकल्प बचा है.