Bihar By Election Results: बिहार की चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए 13 नवंबर को हुए मतदान में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने मुकाबले को त्रिकोणीय कर दिया. सूत्रों के मुताबिक, गया की बेलागंज सीट पर राजद के माय समीकरण और कैमूर की रामगढ़ सीट पर जदयू के लव-कुश समीकरण को उन्होंने काफी डेंट पहुंचाया है.
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Bihar Assembly By-election 2024: बिहार में गया के बेलागंज और इमामगंज, कैमूर के रामगढ़ और भोजपुर के तरारी सभी चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए 13 नवंबर को हुए मतदान के बाद मुकाबले को त्रिकोणीय माना जा रहा है. जानकारी के मुताबिक, राजनीतिक रणनीतिकार और सलाहकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने पहली बार चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही माहौल को सरगर्म कर दिया है.
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल मैच
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सेमीफाइनल की तरह माने जा रहे इस उपचुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और विपक्षी राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन (इंडिया गठबंधन) दोनों ने जातिगत गणित को ध्यान में रखते हुए इन चार सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार उतारे हैं. वहीं, अगले साल अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने के ऐलान करने वाले प्रशांत किशोर ने दावा किया है कि उनकी पार्टी उपचुनावों में ही बिहार की प्रमुख पार्टियों को धूल चटा देगी.
तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज विधानसभा सीटों पर उपचुनाव
बिहार में तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज विधानसभा सीटें लोकसभा चुनाव 2024 में अलग-अलग सीटों से विधायकों के सांसद निर्वाचित होने के कारण खाली हुई थीं. तरारी सीट भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के विधायक सुदामा प्रसाद के भोजपुर से सांसद चुने जाने और रामगढ़ के राजद विधायक सुधाकर सिंह के बक्सर लोकसभा सीट से जीतने के कारण खाली हुई थी.
इसी तरह, इमामगंज के विधायक और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा-सेक्युलर के प्रमुख जीतन राम मांझी के एनडीए उम्मीदवार के रूप में गया (सुरक्षित) सीट से संसदीय चुनाव में निर्वाचित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री बन चुके हैं. बेलागंज सीट राजद विधायक सुरेंद्र प्रसाद यादव आम चुनाव में जहानाबाद सीट जीतने के बाद खाली हुई थी.
तरारी विधानसभा उपचुनाव में क्या है मौजूदा सियासी समीकरण
तरारी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने चार बार विधायक रह चुके बाहुबली नरेंद्र कुमार पांडेय उर्फ सुनील कुमार पांडेय के बेटे विशाल प्रशांत को अपना उम्मीदवार बनाया था. पांडेय पिछली बार 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू के टिकट पर इस सीट से विधायक चुने गए थे, लेकिन 2015 में उन्हें मौका नहीं मिला तो उन्होंने अपनी पत्नी गीता पांडेय को लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर मैदान में उतारा, लेकिन वह चुनाव हार गई थीं. पिछले 2020 के विधानसभा चुनाव में पांडेय ने खुद इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था और करीब 63 हजार वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे थे.
तरारी में सबसे पहले पीके ने उतारा उम्मीदवार, फिर किया बदलाव
तब भाकपा-माले ने तरारी सीट जीती थी, जबकि भाजपा तीसरे स्थान पर रही थी. सुनील पांडेय के निर्वाचन क्षेत्र में प्रभाव को देखते हुए भाजपा ने इस बार उनके बेटे विशाल प्रशांत को भाकपा-माले के उम्मीदवार राजू यादव के खिलाफ मैदान में उतारा है. हालांकि, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी इस सीट से उम्मीदवार घोषित करने वाली पहली राजनीतिक पार्टी थी. इसने भारतीय सेना के सेवानिवृत्त अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल श्रीकृष्ण सिंह को मैदान में उतारा था. उनके बिहार के वोटर नहीं होने के कारण बाद में किरण सिंह को पार्टी उम्मीदवार बनाया गया था.
भाजपा, सीपीआई-एमएल और जन सुराज पार्टी का त्रिकोणीय मुकाबला
तरारी सीट पर भाजपा, सीपीआई-एमएल और जन सुराज पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हुआ है. हालांकि, जातिगत आंकड़े भाजपा और विपक्षी उम्मीदवारों के बीच कड़ी टक्कर का संकेत देते हैं, लेकिन प्रशांत किशोर की पार्टी के उम्मीदवार ने यहां के मतदाताओं के लिए चुनावी संभावनाओं को एक नया आयाम दिया है. तरारी में करीब 1.5 लाख उच्च जाति के मतदाता हैं, जबकि मुस्लिमों की संख्या 25,000 है और कुशवाहा (ओबीसी) के पास 15,000 वोट हैं. इस सीट पर यादवों के पास 30,000 और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के करीब 50,000 मतदाता हैं.
रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में दांव पर है राजद और जगदानंद की प्रतिष्ठा
इसी तरह, 1990 से राजद का गढ़ रहे रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल ने सुधाकर सिंह के भाई और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के छोटे बेटे अजीत कुमार सिंह को महागठबंधन का उम्मीदवार बनाया. भाजपा ने अशोक कुमार सिंह और जन सुराज पार्टी ने सुशील सिंह कुशवाहा को पार्टी उम्मीदवार बनाया था. रामगढ़ राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह का गढ़ रहा है और वे कई बार यहां से विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं.
भाजपा, राजद और प्रशांत किशोर के उम्मीदवार के बीच सीधा मुकाबला
राजद नेता तेजस्वी यादव और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने अजीत सिंह के पक्ष में यहां प्रचार किया था. जबकि बिहार भाजपा के शीर्ष नेता और प्रशांत किशोर भी अपने-अपने पार्टी उम्मीदवारों के लिए जमकर प्रचार कर रहे थे. राजद और भाजपा उम्मीदवारों के बीच वोटों के बंटवारे की उम्मीद में प्रशांत किशोर ने कुशवाहा समुदाय से उम्मीदवार उतारा, जिसकी वहां बड़ी मौजूदगी है. बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार सतीश कुमार उर्फ पिंटू यादव ने भी विधानसभा क्षेत्र में लगभग 20,000 यादव वोटों के बीच विभाजन करने के लिए मैदान में कदम रखा था, लेकिन मुकाबला भाजपा, राजद और प्रशांत किशोर के उम्मीदवार के बीच रहा.
इमामगंज में दो मांझी उम्मीदवारों के बीच वोट बंटा तो पीके को फायदा
इमामगंज सीट पर एनडीए उम्मीदवार हम-एस प्रमुख जीतन राम मांझी की बहू और बिहार के मंत्री संतोष कुमार सुमन की पत्नी दीपा संतोष मांझी, राजद उम्मीदवार रौशन कुमार मांझी और जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार और क्षेत्र के जाने-माने शिशु रोग विशेषज्ञ जितेंद्र पासवान के बीच मुकाबला त्रिकोणीय होता दिखा. इमामगंज एक आरक्षित सीट है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, अगर वोट दो मांझी उम्मीदवारों के बीच बंट गया है तो यह एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है. वहीं, जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार को इस सीट पर आश्चर्यजनक जीत मिल सकती है.
बेलागंज में जदयू और राजद के बाहुबली उम्मीदवारों की बीच जनसुराज
वहीं, गया की ही दूसरी विधानसभा सीट बेलागंज में, राजद और विश्वनाथ कुमार यादव और जदयू की उम्मीदवार मनोरमा देवी दोनों ही दिग्गज हैं. विश्वनाथ बाहुबली और इस सीट से आठ बार जीत चुके सुरेंद्र प्रसाद यादव के बेटे हैं और मनोरमा देवी दूसरे बाहुबली दिवंगत बिंदी यादव की पत्नी और रॉकी यादव की मां हैं, जो कथित तौर पर मई 2016 में एक 18 वर्षीय व्यक्ति की हत्याकांड से सनसनीखेज गया रोड रेज की घटना का मुख्य आरोपी है.
बेलागंज सीट पर मुस्लिम और ईबीसी मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद प्रमुख लालू प्रसाद दोनों ने ही बेलागंज में अपने-अपने पार्टी उम्मीदवारों के लिए अन्य वरिष्ठ पार्टी नेताओं के साथ मिलकर सीट जीतने के लिए प्रचार किया, लेकिन विधानसभा क्षेत्र के कई मतदाताओं ने कहा कि जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार और 2005 और 2010 में भी चुनाव लड़ चुके मोहम्मद अमजद ने चुपचाप मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया. इस सीट पर मुस्लिम और ईबीसी मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है.
प्रशांत किशोर ने चारों सीटों पर जोरदार प्रचार के साथ किया जीत का दावा
प्रशांत किशोर ने इन चारों सीटों पर जोरदार प्रचार करने के दौरान दावा किया कि उन्होंने इस बार मतदाताओं को एक विकल्प उपलब्ध कराया. इन चारों सीटों के उपचुनाव के 23 नवंबर को आने वाले नतीजों पर नए राजनीतिक गठबंधन और रणनीति की संभावना काफी हद तक निर्भर करेगी. ये नतीजे 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भी मंच तैयार करेंगे. इन चार सीटों में से दो सीटें बेलागंज और रामगढ़ राष्ट्रीय जनता दल के पास हैं. एक सीट सीपीआई-एमएल (तरारी) के पास है, जबकि एक सीट इमामगंज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सहयोगी हम के पास है.
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आगामी चुनावों से पहले विधानसभा में अंकगणित बदल सकते हैं ये नतीजे
बिहार की इन चार विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव के नतीजे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले विधानसभा में अंकगणित बदल सकते हैं. वर्तमान में, 78 सीटों के साथ भाजपा विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है. उसके बाद 77 सीटों के साथ राजद दूसरे नंबर पर है. अगर राजद रामगढ़ और बेलागंज में अपनी दोनों सीटें बरकरार रखने में सफल हो जाती है, तो वह 79 सीटों पर पहुंच सकती है, जो भाजपा से एक अधिक होगी, लेकिन अगर भाजपा एक या दो सीटें जीतती है, तो वह अपनी बढ़त को बराबर या बरकरार रख सकती है. हालांकि, जदयू के लिए यह मनोवैज्ञानिक लाभ के अलावा कुछ नहीं होगा.
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एक साल से भी कम कार्यकाल के बावजूद उपचुनाव के नतीजों का बड़ा प्रभाव
बिहार के सामाजिक विश्लेषक प्रोफेसर एनके चौधरी ने कहा कि उपचुनाव के नतीजों के व्यापक प्रभाव हो सकते हैं और राजनीतिक मंथन की एक नई लहर शुरू हो सकती है. उन्होंने कहा, "विजेताओं के पास एक साल का कार्यकाल भी नहीं होगा, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे राज्य चुनावों से पहले लोगों के मूड का अंदाजा लग जाएगा. जन सुराज के लिए यह महत्वपूर्ण होगा." उन्होंने कहा कि लोग उन्हें किस तरह से लेते हैं, यह भविष्य की दिशा तय करेगा. अगर लोग जन सुराज के लिए थोड़ी भी स्वीकृति दिखाते हैं, तो यह राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण होगा, जो 1990 से लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द घूमती रही है.