Kaisarganj Lok Sabha Seat: दिसंबर में जब भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद के चुनाव का परिणाम आया तो दिल्ली स्थित अशोका रोड के बंगला नंबर 21 पर धूम धड़ाका मच गया. अध्यक्ष तो संजय सिंह निर्वाचित हुए लेकिन दबदबा बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने दिखाया था. यह सरकारी बंगला किसी और का नहीं बल्कि बृजभूषण शरण सिंह का है. वहां आतिशबाजी हुई और इस आवास के आसपास बृजभूषण के समर्थकों की गाड़ियां सांय-सांय निकलती हुई दिखाई दे रही थीं. इसी दिन बृजभूषण के बड़े बेटे बीजेपी विधायक प्रतीक भूषण की एक तस्वीर वायरल हुई जिसमें वे एक पोस्टर पकड़े खड़े हुए थे, इसमें लिखा था दबदबा तो है.. दबदबा तो रहेगा. यह तस्वीर इसी अशोका रोड स्थित बृजभूषण के आवास के सामने की थी. इसके बाद संजय सिंह को साथ लिए फूलों से लदे बृजभूषण विजयी मुद्रा में नजर आए और उनकी भाव भंगिमा कुछ ऐसी थी मानों वे किसी को भी चुनौती दे रहे हैं.


पहलवानों का प्रदर्शन.. बृजभूषण के बयान... पूरी क्रोनोलॉजी समझ लीजिए...  


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यह पूरा मामला उस पृष्ठभूमि में हुआ जब जंतर मंतर पर पहलवानों का धरना चर्चा में रहा. बृजभूषण पर कई आरोप लगे. बीजेपी ने चुप्पी साधे रखी लेकिन वे लगातार बयानबाजी कर रहे थे. यहां तक की गोंडा में स्थानीय पत्रकारों ने टिकट पर उनसे सवाल पूछे तो उन्होंने यह भी कह दिया कि किसकी हिम्मत है टिकट काटने की. उन्होंने तभी कहा था कि दबदबा तो है.. दबदबा तो रहेगा. हम नहीं तो हमारे परिवार का दबदबा रहेगा. फिर उनके इसी कथन को उनके समर्थकों ने नारा बना लिया और यहां तक कि उनके काफिले की गाड़ियों में भी दबदबे वाला पोस्टर लग गया और नारा लगता रहा. 


बीजेपी की नजर बृजभूषण पर भी.. कैसरगंज पर भी..


लेकिन इन सब घटनाओं पर बीजेपी आलाकमान की नजर थी. जब लोकसभा चुनाव का बिगुल बजा और पहली लिस्ट में बीजेपी ने कई बयानवीर सांसदों का टिकट काटा तभी राजनीतिक एक्सपर्ट्स भविष्यवाणी कर चुके थे कि कैसरगंज से बीजेपी अब किसी दूसरे चेहरे को उतारेगी. आलाकमान के मन को बृजभूषण भांप नहीं पाए और बयान पर बयान दिए जा रहे थे. फिर उनको जब जेपी नड्डा ने तलब किया तब बयान कुछ कम हुए. उधर दूसरी तरफ पहलवानों के धरने और आरोपों के बाद सरकार ने कुश्ती संघ के चुनाव को निरस्त कर दिया. इन सबके बीच बृजभूषण का मामला कोर्ट में पहुंच गया. 


दोनों तरफ से निकला बीच का रास्ता 


दिल्ली स्थित एक कोर्ट ने बृजभूषण को तलब कर लिया और उधर बीजेपी के बड़े नेताओं ने भी बृजभूषण पर बयान ना देना ही उचित समझा. यहां तक कि पिछले दिनों सीएम योगी की गोंडा में रैली हुई तो वहां बृजभूषण नहीं दिखे, यह अलग बात है कि उनके बेटे प्रतीक भूषण योगी के साथ दिखे. इधर बृजभूषण कैसरगंज में चुनाव प्रचार में लग गए और उधर बीजेपी कैसरगंज की नब्ज टटोलने में लग गई. अंततः बीजेपी को बृजभूषण के कद का कोई नेता वहां नहीं दिखा. इस असमंजस ने बीजेपी ने बीच का रास्ता निकाला और उनका टिकट काटकर उनके बेटे करणभूषण को उम्मीदवार बना दिया.


लेकिन बृजभूषण के लिए यह झटका जरूर.. 
यह बात भले ही सही है कि बृजभूषण अपने बेटे को टिकट दिलाए में कामयाब हुए, लेकिन उनका टिकट कट जाना उनके लिए झटके से कम नहीं है. एक तरह से बीजेपी ने उन्हें नाप दिया है. अब सवाल है कि वे क्या करेंगे? कुछ राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि उनकी चुनावी राजनीति का अंत हो चुका है. तो कुछ कयास लगा रहे हैं कि पांच साल बाद वे फिर से वापसी कर सकते हैं. झटका इसलिए क्योंकि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनको टिकट नहीं मिलेगा. अपने तीस साल की राजनीतिक यात्रा में उन्होंने काफी उतार चढ़ावा देखे लेकिन वे डटे रहे.


तीन दशक से ज्यादा की ताबड़तोड़ राजनीति.. 
अयोध्या से सटे नवाबगंज को बृजभूषण ने अपनी राजनीति का केंद्र बिंदु बनाया. यहां उनका सबसे बड़ा कॉलेज नंदिनी नगर मौजूद है. वैसे तो नवाबगंज कहने को गोंडा जिले में है लेकिन यह अयोध्या के पास. नंदिनी नगर महाविद्यालय अयोध्या से महज सात आठ किलोमीटर पर है. नवाबगंज में मौजूद नंदिनी नगर देशभर में चर्चित है. इसी नंदिनी नगर कैपंस में बृजभूषण राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कुश्ती चैंपियनशिप करवा डालते थे. नंदिनी नगर कॉलेज के अलावा बृजभूषण शरण सिंह के स्कूल-कॉलेजों की संख्या तकरीबन अस्सी के आसपास है, जो गोंडा, बलरामपुर, बहराइच और श्रावस्ती में बने हुए हैं. 


इन अभी जिलों में बृजभूषण का दबदबा लंबे समय से है. कहा जाता है कि यहां के ग्राम पंचायतों के सरपंचों, जिला पंचायत सदस्यों, अध्यक्षों यहां तक कि विधायकों तक बृजभूषण की सीधी पहुंच है. वे किसी भी समय कभी भी सीधा किसी को फोन कर सकते हैं. इतना ही नहीं ये सब लोग भी किसी भी काम के लिए बृजभूषण तक पहुंचते हैं और बृजभूषण उनके काम को कराने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. बृजभूषण के विरोधियों का तो ये भी तर्क है कि इन इलाकों में बृजभूषण की जानकारी के बिना कोई बड़ा चुनाव नहीं जीत सकता. इसमें सरपंच से लेकर विधायक भी शामिल हैं.


कई जिलों में है प्रभाव... 
उनके प्रभाव का एक उदाहरण ये भी है कि 2009 में जब वे बीजेपी छोड़ समाजवादी पार्टी से कैसरगंज सीट से चुनाव लड़ा तो भी सांसद बन गए. फिर अगले चुनाव यानि कि 2014 में वापस बीजेपी में आए और फिर से लगातार दो बार चुनाव जीते. बृजभूषण राम मंदिर आंदोलन के प्रोडक्ट तो रहे हैं. उस दौर में वे अयोध्या के साकेत कॉलेज में छात्रनेता थे और बाबरी विध्वंस के दिन युवा बृजभूषण अयोध्या में आडवाणी के इर्द गिर्द ही खड़े रहे और अपने साथियों की टोली को निर्देश देते रहे. बृजभूषण उन गिने-चुने लोगों में शामिल रहे जिन पर बाबरी विंध्वंस का केस चला.


वही करेंगे जो करते आए हैं.. 


यह बात तो सही है कि उनको या उनके परिवार को कैसरगंज से हराना टेढ़ी खीर है. ऐसे में बृजभूषण तो अब खुद संसद में नहीं बैठेंगे लेकिन वे जो कर रहे हैं उसमें कुछ ख़ास बदलाव होगा, इसकी उम्मीद कोई नहीं कर रहा है. वे आज भी उसी अंदाज में अयोध्या से करीब 15 किलोमीटर पर गोंडा के अपने विश्नोहरपुर गांव में समर्थकों के बीच बैठते हैं और लोगों की बात सुनते हैं. इस गांव को हाईटेक बनाने में बृजभूषण ने कोई कसर नहीं छोड़ी, छोटा सा हेलीपैड.. कई स्कूल, यहां तक कि महाविद्यालय भी. यहां पिछले तीस साल से बृजभूषण सुबह-सुबह हरी घास पर कुर्सी-मेज पर अपने समर्थकों के बीच ऐसे बैठते हैं जैसे पुराने समय में राजा-महाराजा बैठा करते थे. 


दबदबा दोनों युवराज के भरोसे..
वे पूरे लोकसभा क्षेत्र के लोगों की समस्याओं के बारे में सुनते हैं. कुछ लोग प्रशासनिक समस्या लेकर आते हैं. वे खुद दौरे करते हैं और क्षेत्र में लोगों के पास जाते हैं. मौजूदा समय में बृजभूषण शरण सिंह के स्कूल-कॉलेजों की संख्या तकरीबन अस्सी के आसपास है, जो गोंडा, बलरामपुर, बहराइच और श्रावस्ती में बने हुए हैं. लेकिन इन सब में गोंडा के नवाबगंज में मौजूद नंदिनी नगर देशभर में चर्चित है. इसी नंदिनी नगर कैपंस में बृजभूषण राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कुश्ती चैंपियनशिप करवा डालते थे. अब उनका ये दबदबा उनके दोनों युवराज के भरोसे है. बड़े बेटे प्रतीक भूषण गोंडा सदर से बीजेपी विधायक हैं, तो वहीं अब छोटे बेटे भी चुनावी मैदान में उतर चुके हैं.