Pakistan Iran Conflict News: भारतीय उपमहाद्वीप और खाड़ी देशों पर नया खतरा मंडराने लगा है. लाल सागर में कारोबारी जहाज निशाना बन रहे हैं. ईरान और पाकिस्तान ने एक-दूसरे पर हमला बोला है. बदलती परिस्थितियों ने भारत को सोचने पर मजबूर कर दिया है. ब्रिटिश राज में, खाड़ी की सुरक्षा और राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने में उपमहाद्वीप की अहम भूमिका हुआ करती थी. बंटवारे के बाद, पाकिस्तान का उसमें थोड़ा-बहुत रोल हो गया. लेकिन आज पाकिस्तान कमजोर है और वह खाड़ी में लगातार बढ़ते संघर्ष का हिस्सा बन रहा है. खाड़ी और उपमहाद्वीप की जियोपॉलिटिक्‍स लंबे समय से जुड़ी रही है. भारत, पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान न चाहें तो भी उन्हें अशांत मिडल ईस्‍ट के भंवर से जूझना ही पड़ेगा.


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19वीं सदी में मध्य एशिया पर प्रभुत्व के लिए रूसी और ब्रितानी साम्राज्य के बीच होड़ लगी थी. उस होड़ को नाम मिला 'द ग्रेट गेम'. आज की परिस्थितियां इशारा करती हैं कि मिडल ईस्‍ट में एक नया 'ग्रेट गेम' खेला जा रहा है. ईरान और पाकिस्तान का एक-दूसरे पर हमला करना तो इस 'ग्रेट गेम' की झांकी भर है. असली खेल अभी बाकी है!


मिडल ईस्‍ट में नया 'ग्रेट गेम'


19वीं सदी के 'ग्रेट गेम' में ब्रिटेन को डर था कि एक के बाद एक इलाके कब्‍जाता रूस कहीं भारत का रुख न करे. वहीं रूस को डर था कि ब्रिटेन सेंट्रल एशिया में अपना साम्राज्य बढ़ाएगा. दोनों साम्राज्य एक-दूसरे की चाल नाकाम करने में लगे थे. इसके लिए छल-कपट से लेकर कूटनीतिक दांव पेंचों और क्षेत्रीय युद्धों का भी सहारा लिया गया. अब स्थितियां काफी अलग हैं. भारतीय उपमहाद्वीप के लिहाज से सुरक्षा से जुड़ी पांच अहम चिंताएं उभर रही हैं.


  1. ईरान और पाकिस्तान में फैले बलूच अल्पसंख्यक अब दोनों देशों के निशाने पर हैं. उन पर हो रहे हमले पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर नाजुक स्थिति की ओर इशारा करते हैं. बलूची समूह पाक-ईरान बॉर्डर पर शरण लेते हैं. 

  2. तमाम असंतुष्ट समूह अरब, इजरायल और ईरान की क्षेत्रीय राजनीति में उलझे हैं. बलूच धरती की अनियंत्रित जगहें स्‍मगलिंग, नशीले पदार्थों की तस्करी और तीसरे पक्ष द्वारा समर्थित सीमा पार राजनीतिक उग्रवाद के लिए उपजाऊ जमीन मुहैया कराती हैं. एक तरफ ईरान का अपने अरब पड़ोसियों से संघर्ष बढ़ता जा रहा है, दूसरी तरफ इजरायल से भी झगड़ा है.

  3. खाड़ी के मुंह पर मौजूद बलूचिस्तान की लोकेशन उसे इस 'ग्रेट गेम' का हिस्सा बनाती है. बलूचिस्तान में पाकिस्तान की मुश्किलें न कम होने के पीछे ग्वादर में चीन की मौजूदगी भी बड़ी वजह है. पाकिस्‍तान में अमेरिकी राजदूत डेविड ब्‍लोम ने पिछले सितंबर में ग्‍वादर का दौरा किया था. इसके बाद अमेरिका और चीन की लड़ाई में बलूचिस्तान के महत्व को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया. 

  4. अफगानिस्तान और ईरान को एक-दूसरे से पहले भी समस्या रही है. तालिबान के राज में यह तल्‍खी और बढ़ गई है. पाकिस्तान को डील करने में भी तालिबान ने तेजी दिखाई है. मिडल ईस्‍ट के मौजूदा संकट में तालिबान अपने लिए मौका देख रहा होगा. नए दोस्त बनाने और अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए अगर वह खुद को खाड़ी में धकेल दे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए.

  5. दक्षिण एशिया को खाड़ी से जोड़ने वाली बलूच सीमा की नाजुक स्थिति, बलूचिस्तान में चीन की मौजूदगी और खाड़ी में बीजिंग का बढ़ता दखल भारत के लिए बड़ी चिंता की बातें हैं. मिडल ईस्‍ट के संघर्षों में भारत अमूमन तटस्थ ही रहा है लेकिन अब ऐसा कर पाना मुश्किल हो चला है क्योंकि मिडल ईस्‍ट में भारत की आर्थिक और सामरिक भागीदारी बढ़ रही है.


सुरक्षा के लिहाज से नया खतरा


अरब सागर में जहाजों पर हमले से भारत की व्यापारिक लाइफलाइन को खतरा पैदा हुआ है. भारत ने अपने हितों की रक्षा के लिए 10 जंगी जहाज तैनात किए हैं. भारत की मिडल ईस्‍ट पॉलिसी में कुछ नए एलिमेंट शामिल हुए हैं. इनमें आतंकवाद को लेकर स्पष्ट रुख, इजरायल के साथ मजबूत रिश्ते, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ बढ़ती निष्ठा आदि शामिल है. हालिया घटनाक्रम ने भारत को मिडल ईस्‍ट में सुरक्षा को लेकर अपनी राय बदलने पर मजबूर किया है.


मिडल ईस्‍ट में जो परिस्थितियां बनी हैं, भारत उसके प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता. इसीलिए दिल्‍ली अभी 'वेट एंड वॉच' मोड में है. फॉरेन पॉलिसी एक्सपर्ट सी. राजा मोहन ने द इंडियन एक्‍सप्रेस में छपे लेख में कहा है कि इतना तो तय है कि देर-सवेर भारत को भी इस 'ग्रेट गेम' में उतरना पड़ेगा.