बृजभूषण के बेटे को टिकट देना मजबूरी या जरूरी, कैसरगंज में परिवार से आगे क्यों नहीं बढ़ पाई बीजेपी?
Kaisarganj News: आखिरकार कैसरगंज सीट को लेकर बीजेपी की तरफ से आधिकारिक पटाक्षेप हो गया है. मौजूदा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के छोटे बेटे और यूपी कुश्ती संघ के अध्यक्ष करणभूषण को टिकट दे दिया गया है. लेकिन ये समझना जरूरी है कि आखिर बीजेपी क्यों बृजभूषण के परिवार से आगे नहीं बढ़ पाई.
Brijbhushan Sharan Singh: आखिरकार वही हुआ जिसका अंदेशा राजनीतिक पंडित पिछले कई दिनों से लगा रहे थे. उत्तर प्रदेश की कैसरगंज लोकसभा सीट से बृजभूषण शरण सिंह का टिकट उनके परिवार के ही सदस्य को दिया गया है. बीजेपी ने आधिकारिक ऐलान भी कर दिया है. हालांकि इससे पहले ही बृजभूषण के परिवार की तरफ से इसकी पुष्टि हो गई है कि कैसरगंज से करणभूषण ही प्रत्याशी होंगे. इसका मतलब यह हुआ कि बीजेपी बृजभूषण के साये से बाहर नहीं निकल पाई. इसके कारणों के तह में जाएंगे. करणभूषण इस समय यूपी कुश्ती संघ की अध्यक्ष हैं और वे यूपी कुश्ती संघ के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं. 34 साल के करणभूषण डबल ट्रैप शूटिंग के नेशनल खिलाड़ी हैं और ऑस्ट्रेलिया से बिजनेस मैनेजमेंट पढ़ चुके हैं.
असल में कैसरगंज वैसे तो कहने को बहराइच जिले की एक विधानसभा का नाम है. लेकिन कैसरगंज लोकसभा सीट का पूरा ताना-बाना गोंडा जिले में ही है. इस लोकसभा सीट में पांच विधानसभाएं हैं. गोंडा की तीन और बहराइच की दो विधानभाएं शामिल हैं. गोंडा की तरबगंज, नवाबगंज और करनैलगंज जबकि बहराइच की कैसरगंज और पयागपुर विधानसभा इसमें शामिल है. बृजभूषण और उनका परिवार खुद नवाबगंज से आते हैं, यहीं पर उनका पैतृक निवास विश्नोहरपुर गांव में है.
दबदबा सिर्फ कैसरगंज तक ही सीमित नहीं!
बृजभूषण शरण सिंह का दबदबा सिर्फ इन पांच विधानसभाओं और कैसरगंज लोकसभा सीट तक ही सीमित नहीं है. गोंडा लोकसभा सीट से भी वे सांसद रह चुके हैं. उनके बड़े बेटे प्रतीक भूषण गोंडा सदर विधानसभा से विधायक हैं. इधर गोंडा से सटे अयोध्या में ही बृजभूषण ने राजनीति का ककहरा सीखा है. राम मंदिर आंदोलन में सबसे बड़े स्थानीय नेता के रूप में उभरे बृजभूषण ने उसी समय अपना नाम आस-पास के जिलों में चर्चा में ला दिया था. तभी से लेकर अब तक करीब तीन दशक के बाद भी क्षेत्र में उनका बोलबाला बना हुआ है.
इस सीट पर मुश्किल हो सकती थी
पिछले कुछ समय से जब बृजभूषण गलत कारणों से चर्चा में रहे तो यही चर्चा रही कि अगर बीजेपी ने उनका टिकट काटा तो वे समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ सकते हैं. ऐसा एक बार हुआ भी है जब 2009 में बृजभूषण सपा से लड़े और जीत गए. यहां तक कि इसी आस में सपा ने इस बार टिकट का भी ऐलान कैसरगंज से नहीं किया था. अगर ऐसा होता तो बीजेपी के लिए इस सीट पर मुश्किल खड़ी हो सकती थी. सिर्फ कैसरगंज सीट पर ही नहीं बल्कि आसपास की सीट भी बीजेपी के लिए दिक्कत पैदा कर सकती थी. यह एक बड़ा कारण था कि बीजेपी को उनके बेटे को टिकट देना पड़ गया है.
करणभूषण बेदाग़ छवि के..
उधर करणभूषण सिंह इस समय यूपी कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं और बेदाग़ छवि के माने जाते हैं. आसपास के इलाकों में उनके परिवार का दबदबा बरकरार है. वे खुद पिछले काफी समय से अपने पिता और भाई के साथ रैलियों और सभाओं में देखे जाते रहे हैं. ऐसे में बीजेपी ने उन पर दांव लगा दिया है. अब देखना होगा कि कैसरगंज सीट से उनके सामने इंडिया गठबंधन किसको चुनाव मैदान में उतार सकती है.
बड़े कद का कोई नेता ही नहीं..
बीजेपी के लिए बृजभूषण पर ही निर्भर रहने का एक और बड़ा कारण यह भी है कि कैसरगंज सीट पर बड़े कद का कोई नेता ही नहीं मौजूद है जो बृजभूषण की टक्कर ले सकता है. जिन दो नामों की चर्चा चल रही थी उनमें तरबगंज विधानसभा के विधायक प्रेम नारायण पांडेय और दूसरे करनैलगंज विधानसभा सीट से विधायक अजय सिंह का नाम शामिल है. ये दोनों बीजेपी के विधायक हैं और बृजभूषण के ही खास माने जाते हैं. ऐसे में इन दोनों ने बहुत इच्छा नहीं जताई थी. ऐसे में बीजेपी ने बृजभूषण के बेटे को टिकट दे दिया.