One Nation One Election: 'वन नेशन वन इलेक्शन' यानि कि एक देश एक चुनाव... पिछले दिनों खूब चर्चा में रहा है. यह एक ऐसा मुद्दा है जिसपर देशभर की पार्टियां सहमत और असहमत होती नजर आईं हैं. फ़िलहाल इस पर एक राय नहीं बन सकी है. इसी कड़ी में अब टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने झटका दिया है. उन्होंने इस पर असहमति जताते हुए गुरुवार को उच्च स्तरीय समिति को पत्र लिखकर कहा कि यह भारत के संवैधानिक बुनियादी ढांचे के खिलाफ होगा. समिति के सचिव को लिखे पत्र में ममता ने कहा कि 1952 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक साथ पहली बार आम चुनाव कराए गए थे. उन्होंने कहा कि कुछ वर्षों तक इस तरह से चला लेकिन बाद में यह प्रक्रिया टूट गई. मुझे खेद है कि मैं आपके द्वारा तैयार 'एक देश, एक चुनाव' की अवधारणा से सहमत नहीं हूं. हम आपके प्रारूप और प्रस्ताव से असहमत हैं.


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'मैं एक राष्ट्र का अर्थ समझती हूं'


इतना ही नहीं ममता ने सवाल किया और कहा कि मैं ऐतिहासिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिपेक्ष्य में एक राष्ट्र का अर्थ समझती हूं, लेकिन मैं इस मामले में इस शब्द के सटीक संवैधानिक व संरचनात्मक निहितार्थ को नहीं समझ पा रही हूं. क्या भारतीय संविधान 'एक देश, एक सरकार' की अवधारणा का पालन करता है? मुझे डर है, ऐसा नहीं होगा. उन्होंने कहा कि जब तक यह अवधारणा कहां से आई इसकी 'बुनियादी पहेली' का समाधान नहीं हो जाता तब तक इस मुद्दे पर किसी ठोस राय पर पहुंचना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में हाल-फिलहाल में विधानसभा चुनाव नहीं होने वाले इसलिए सिर्फ और सिर्फ एक पहल के नाम पर उन्हें समयपूर्व आम चुनाव के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए, जो उस जनता के चुनावी विश्वास का मूल उल्लंघन होगा, जिन्होंने पांच वर्षों के लिए अपने विधानसभा प्रतिनिधियों को चुनाव है. 


ममता ने गिनाए कई कारण
अपने पत्र में ममता ने यह भी कहा कि केंद्र या राज्य सरकार कई कारणों से अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती हैं जैसे अविश्वास प्रस्ताव पर गठबंधन का टूटना. उन्होंने कहा कि पिछले 50 वर्षों के दौरान लोकसभा में कई बार समय से पहले सरकार को टूटते हुए देखा है. उन्होंने कहा कि इस तरह की स्थिति में नए सिरे से चुनाव ही एकमात्र विकल्प है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा कि शासन की 'वेस्टमिंस्टर' प्रणाली में संघ और राज्य चुनाव एक साथ न होना एक बुनियादी विशेषता है, जिसे बदला नहीं जाना चाहिए. संक्षेप में कहें तो एक साथ चुनाव नहीं होना भारतीय संवैधानिक व्यवस्था की मूल संरचना का हिस्सा है.


टीएमसी का स्टैंड ममता ने क्लियर कर दिया
ममता का यह स्टैंड तब सामने आया है जब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर अपनी-अपनी राय रखने के लिए एक पत्र लिखा था. पिछले साल सितंबर में गठित समिति की दो बैठकें हो चुकी हैं. समिति ने इस मुद्दे पर जनता से विचार मांगे हैं और राजनीतिक दलों को भी पत्र लिखकर एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर उनके विचार करने की मांग की है. फिलहाल अब ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर अपना और अपनी पार्टी का स्टैंड क्लियर कर दिया है.


पीएम की योजना पर लगेगा ब्रेक?
अब सवाल यह है कि ममता के इस स्टैंड का प्रभाव क्या हो सकता है. वैसे तो लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने के मसले पर लंबे समय से बहस चल रही है. लेकिन हाल के दिनों में प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस विचार का समर्थन कर इसे आगे बढ़ाया है. लेकिन तमाम राजनीतिक पार्टियां इस पर सहमत नजर नहीं आई हैं. उनका मानना है कि ऐसे में भारत में संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है. क्योंकि कई राज्यों में सरकारें बीच में ही अस्थिर हो जाती हैं, इससे केंद्र सरकार को बढ़त मिल जाती है. इसके अलावा भी इसके विरोध में कई तर्क दिए जाते रहे हैं. अब देखना होगा कि ममता समेत अन्य पार्टियों के स्टैंड से कितना फर्क पड़ने वाला है.