Pakistan Election Results: पाकिस्तान में इमरान ने लूटी महफिल, शरीफ ने किया जीत का एलान; भारत के लिए क्या है मतलब
Pakistan Election News: पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में आम चुनाव के नतीजे के बाद पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (PML-N) के प्रमुख नवाज शरीफ (Nawaz Sharif) ने चौथी बार प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद जताई जा रही है. हालांकि, काउंटिंग के दौरान पूर्व पीएम और पीटीआई नेता इमरान खान (Imran Khan) ने महफिल लूटी है.
Pakistan General Election 2024 Results: पाकिस्तान में नेशनल असेंबली के लिए हुए आम चुनाव के नतीजे के बाद नए प्रधानमंत्री पर सबकी निगाहें हैं. ऐसा लगता है कि जेल में बंद इमरान खान की पार्टी पीटीआई के समर्थन वाले निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव में ताकतवर पाकिस्तानी सेना (Pakistan Army) और उसके नए बने शागिर्द नवाज शरीफ को करारा झटका दिया है. क्योंकि उन्होंने शुक्रवार देर शाम तक नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) पर लगातार बढ़त बनाए रखी थी.
बिना बहुमत के ही नवाज शरीफ ने दिया फतह का भाषण, सेना के भरोसे उम्मीद
फिर भी, नवाज शरीफ ने यह स्वीकार करते हुए अपनी जीत की घोषणा कर दी है कि उनके पास फिलहाल बहुमत नहीं है. फतह को लेकर उनके भाषण के बाद समर्थकों और प्रशंसकों के बीच नवाज शरीफ के चौथी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने की उम्मीदें बढ़ गई हैं. वहीं, दूसरे लोगों के बीच चिंता बढ़ गई है कि अब पाकिस्तानी सेना कई निर्दलीय उम्मीदवारों को शरीफ का समर्थन करने के लिए उकसाएगी. आइए, जानते हैं कि शरीफ ने क्यों जीत की घोषणा की और भारत के लिए इसका क्या मतलब है?
भारत के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश पाकिस्तान की बड़ी जरूरत
आम चुनाव में धांधली के आरोपों को लेकर पूरे पाकिस्तान में कई विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. इससे देश भर में अराजकता फैल गई है. इस बीच, पाकिस्तान के लिए हर लिहाज से यह बेहद अहम और वक्त की नजाकत है कि वह पड़ोसी देश भारत के साथ अपने रिश्ते सुधारें. दक्षिण एशिया की राजनीति के जानकारों के मुताबिक, पाकिस्तान में सेना द्वारा एकजुट किसी भी गठबंधन सरकार के नेता के रूप में नवाज शरीफ या उनके भाई शहबाज़ शरीफ की वापसी भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी पिछली दोस्ती और उनकी कथित जरूरतों को देखते हुए भारत के साथ संबंधों में नरमी का वादा करने वाली है.
पीएम मोदी के साथ नवाज शरीफ की पुरानी दोस्ती और मजबूत तालमेल
पाकिस्तान में नवाज शरीफ जब प्रधानमंत्री के पद पर थे तब उनका पीएम मोदी के साथ मजबूत तालमेल बना हुआ था. साल 2020 में यह तब फिर से स्पष्ट हुआ जब पीएम मोदी ने शरीफ की मां के निधन पर शोक जाहिर करने के लिए 'मियां साहब' को पत्र लिखा और 2015 में रायविंड में शरीफ के घर जाने पर उनके साथ हुई बातचीत को याद किया. पीएम मोदी ने अपनी इस यात्रा के बमुश्किल एक हफ्ते बाद ही पठानकोट आतंकी हमले के बाद पैदा हुई कड़वाहट को शरीफ के बारे में अपनी राय को धूमिल नहीं होने दिया.
अटल बिहारी वाजपेयी और पीएम मोदी ने पाकिस्तान को दिए दोस्ती के मौके
यह इस बात का संकेत है कि भारतीय प्रधानमंत्री मानते हैं कि नवाज शरीफ का दिल सही जगह पर है. इमरान खान के पीएम मोदी के खिलाफ असंयमित बयानों ने माहौल खराब कर दिया था, लेकिन पीएम मोदी और नवाज शरीफ एक-दूसरे के प्रति सभ्य बने रहे हैं. शांति सिद्धांत के समर्थकों की दलील है कि साल 1999 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर बस यात्रा की थी और साल 2015 में प्रधानमंत्री मोदी नवाज शरीफ के आवास पर रुके थे. इसलिए मौजूदा हालात में भारत से रिश्ते बेहतर करने वाले शरीफ को पाकिस्तानी सेना का समर्थन प्राप्त होगा.
पाकिस्तान से रिश्ते सुधारना या बेहतर करना फिलहाल भारत की प्राथमिकता में नहीं
दूसरी ओर, आर्थिक और राजनीतिक अव्यवस्था से जूझ रहे देश पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए पड़ोसी धर्म के अलावा भारत के पास दूसरा कोई आकर्षण नहीं है. दोनों देशों की अर्थव्यव्यवस्था और सैन्य शक्ति के बीच तेजी से बढ़ते अंतर के बीच शांति आउटरीच की योजना बनाने के लिए भी फिलहाल भारत के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है. फिर भी मौजूदा स्थिति में, शायद भारत के लिए सेना के साथ शांत और विवेकपूर्ण बातचीत करना अधिक सार्थक होगा. भारत में यह लगभग तय माना जा रहा है कि मई, 2024 में पीएम मोदी की सरकार मौजूदा स्वरूप में वापस आ जाएगी.
भारत की ओर से शांति की हर कोशिश और पहल को पाकिस्तान ने लगाया है पलीता
इसके बाद मोदी सरकार को किसी स्तर पर एहसास होगा कि पाकिस्तान की शून्य भागीदारी की नीति अपना काम कर चुकी है. क्योंकि साल 2015 में नवाज शरीफ के साथ उफा, पेरिस और रायविंड में पीएम मोदी की तीन बैठकें व्यापक द्विपक्षीय वार्ता के नए नाम के तहत समग्र वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए प्रेरित हुई थीं, लेकिन उसके महज कुछ हफ्तों बाद ही पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले के कारण इसे रोक दिया गया. इसके बाद इमरान खान और शहबाज शरीफ की गुहार और चिरौरी से भी भारत सरकार नहीं पिघली.
पीएम मोदी और सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान की यात्रा कर निभाई अपनी बड़ी जिम्मेदारी
भारत सरकार को याद है कि वह उस वार्ता प्रक्रिया में इस आश्वासन के बाद ही शामिल हुई थी कि शांति पहल को तत्कालीन सेना प्रमुख राहील शरीफ का पूरा समर्थन प्राप्त था. उस साल की शुरुआत में नवाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना के बीच विवाद गहरा गया था. क्योंकि नवाज शरीफ उफा संयुक्त बयान में जम्मू-कश्मीर मुद्दे का जिक्र करने में नाकाम रहे थे.
तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पाकिस्तान यात्रा के दौरान इस्लामाबाद में व्यापक द्विपक्षीय वार्ता शुरू होने से पहले यह मुद्दा तब सुलझ गया जब बैंकॉक में एनएसए की बैठक के बाद जारी एक संयुक्त बयान में पाकिस्तान का "मुख्य मुद्दा" फिर से सामने आया. इन घटनाओं के कारण पीएम मोदी को नवाज शरीफ के जन्मदिन पर उनके पैतृक घर का नाटकीय दौरा करना पड़ा था.
पीएम बनने पर शरीफ को भारत से बेहतर रिश्ते के लिए उठाने होंगे चार खास कदम
नवाज शरीफ को अब आतंकवाद पर एक अधिक विकसित भारतीय रुख को ध्यान में रखना होगा जो राज्य और गैर-राज्य किरदारों के बीच किसी भी अंतर के प्रति कम सहिष्णु है. दूसरे, अगर वह वास्तव में सोचते हैं कि उनकी वापसी एक नई शुरुआत को चिह्नित कर सकती है, तो उन्हें सबसे पहले पाकिस्तान को पोप की तुलना में अधिक कैथोलिक व्यवहार करने से रोकना होगा.
यानी पूर्व शर्त के रूप में भारत सरकार से जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 पर अपने फैसले को वापस लेने की मांग पर जोर नहीं देना होगा. क्योंकि पाकिस्तान के लिए यह अच्छा हो या बुरा, यह मुद्दा अब सुलझ गया है. भारत ने दिखाया है कि वह जम्मू-कश्मीर के आंतरिक मामलों को चलाने में पाकिस्तान के किसी भी हरकत को बर्दाश्त नहीं करेगा.
सीमा पार आतंकवाद को पहले सुलझाने की प्राथमिकता, फिर व्यापार और विदेश नीति
तीसरा, नवाज शरीफ को यह स्वीकार करना होगा कि पाकिस्तान ने अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाकर और भारत के साथ व्यापार बंद करके अच्छा नहीं किया. अगर शरीफ दोनों को संबोधित कर सुलझा सकते हैं, तो भारत निश्चित रूप से सकारात्मक प्रतिक्रिया देने के लिए प्रेरित होगा. चौथा, और शायद इससे भी अहम बात, पीएम बनते ही शरीफ को सीमा पार आतंकवाद की जांच करने की जरूरत के बारे में कुछ सकारात्मक बातें करके शुरुआत करनी चाहिए. क्योंकि पाकिस्तान के लिए स्पष्ट रूप से इसकी उपयोगिता खत्म हो चुकी दिखती है. इसके बाद नवाज शरीफ को आतंकियों पर कुछ ठोस कार्रवाई करनी चाहिए.