Who Are The Muhtasibs: अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति और ज्यादा दयनीय हो गई है. इसकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि तालिबान ने एक नया 'नैतिकता' कानून पारित किया है 'सदाचार का प्रचार और बुराई की रोकथाम' की आड़ में अफगानिस्तान के लोगों, खासकर महिलाओं पर शरिया या इस्लामी कानून की अपनी व्याख्या लागू करता है. आइए, जानते हैं कि ये काला कानून क्या है? साथ ही कानून अमल में लाने के लिए तैनात मुहतासी कौन हैं?


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नए फरमान में महिलाओं के रोजाना के कामकाज पर भी पाबंदी


इस कट्टर कानून के तहत महिलाओं को सार्वजनिक रूप से अपने शरीर या चेहरे का कोई भी हिस्सा दिखाने पर प्रतिबंध लगाया गया है. इस नए फरमान का महिलाओं के रोजाना के जीवन, संगीत, खेल, यात्रा, स्वास्थ्य और यौन गतिविधियों पर भी असर पड़ता है. फरयाब प्रांत के सूचना और संस्कृति विभाग के एक बयान के मुताबिक, तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा ने नागरिक और सैन्य अधिकारियों से कहा कि "उन्हें समाज में सदाचार को बढ़ावा देने के कानून को लागू करना चाहिए."


तालिबान का नया, क्रूर और कट्टर कानून क्या है?


आधिकारिक राजपत्र में कहा गया है कि महिलाओं को "प्रलोभन या डर से" अपने पूरे शरीर और चेहरे को ढंकना चाहिए. एक महिला की आवाज़, गाना या ज़ोर से पढ़ने को अवरा या अंतरंग माना जाता है. उसे नहीं सुना जाना चाहिए. इसमें कहा गया है, "जब भी कोई वयस्क महिला जरूरत पड़ने पर घर से बाहर निकलती है, तो उसे अपनी आवाज़, चेहरा और शरीर को ढकना पड़ता है."


पुरुषों के दाढ़ी, बाल, टाई, खेल, यात्रा की योजना तक पर पाबंदी


कानून के मुताबिक, ड्राइवरों को उन महिलाओं को कहीं भी ले जाने से मना किया जाता है जिनके साथ कोई संबंधी पुरुष अभिभावक नहीं है. इसमें कहा गया है कि किसी भी उल्लंघन के लिए सजी दी जाएगी. इसमें रिश्ते के बाहर पुरुषों और महिलाओं को एक-दूसरे को देखने की भी इजाजत नहीं है. इसके मुताबिक, पुरुषों को अपनी दाढ़ी बढ़ानी चाहिए. उन्हें नेकटाई नहीं पहननी चाहिए या पश्चिमी शैली के बाल नहीं कटवाने चाहिए. 


सभी खेल और मनोरंजन के तरीके, यहां तक कि मार्बल या अखरोट के साथ खेले जाने वाले बच्चों के पारंपरिक खेल भी जुए के रूप में प्रतिबंधित हैं. प्रार्थना के समय से बचने के लिए यात्रा की योजना बनाए जाने को भी गुनाह के रूप में रखा गया है. 


कौन है मुहतासिब? जिनको मिला है कार्रवाई का अधिकार


संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 'मुहतसिब' या नैतिक पुलिस को किसी भी व्यक्ति को महज संदेह के आधार पर शारीरिक रूप से दंडित करने या तथाकथित नैतिक अपराधों के लिए तीन दिन की जेल भेजने की ताकत है. उन्हें किसी सबूत या उचित प्रक्रिया के पालन की कोई जरूरत नहीं है. 


मोबाइल या लैपटॉप तक में तस्वीरों की जांच करेंगे मुहतासिब


मुहतसिब लोगों को इस्लामी प्रतीकों का सम्मान करने के लिए मजबूर कर सकते हैं. यह सुनिश्चित करने के लिए वह लोगों के मबाइल फोन और लैपटॉप की जांच कर सकते हैं कि उनमें जीवित प्राणियों की कोई तस्वीर तो नहीं है. नए कानून के मुताबिक, मुहतासिबों को यह सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं की आवाज या संगीत घरों या समारोहों से बाहर न निकले. 


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी कड़े प्रतिबंध लगाता कानून


यह तालिबानी कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी कड़े प्रतिबंध लगाता है. इसमें शरिया की उनकी समझ के अलग समझी जाने वाली सामग्री के प्रकाशन पर प्रतिबंध भी शामिल है. इसके अलावा यह कानून LGBTQ+ लोगों को अपराधी बनाता है. उन्हें सताता है और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों को प्रतिबंधित करता है. इसमें "गैर-इस्लामिक" समारोहों को मना करना और "काफिरों" के साथ जुड़ने या उनकी मदद करने पर रोक लगाना शामिल है.


जब अफगानिस्तान में महिलाओं को मिले थे अधिकार 


अफगानिस्तान में पहले से ही कई "नैतिकता" कानून लागू हैं. हालांकि, इनमें से कुछ स्थानीय प्रशासन द्वारा बेतरतीब ढंग से लागू किए गए हैं. लेकिन 20वीं सदी की शुरुआत में अफगानिस्तान में ऐसा नहीं था. अमेरिका में महिलाओं को अधिकार मिलने से एक साल पहले अफगान महिलाओं को 1919 में ही वोट देने का अधिकार दिया गया था. 1920 के दशक की शुरुआत में शाही परिवार के नेतृत्व में पोशाक और शिक्षा के अवसरों में बदलाव के साथ देश को आधुनिक बनाने की होड़ देखी गई, जिसने रूढ़िवादी ताकतों से प्रतिक्रिया को पैदा किया.


अफगानिस्तान में तालिबान की दखल से पहले महिलाएं आजाद 


अफगानिस्तान में खासकर, उच्च वर्ग की महिलाओं और ग्रामीण क्षेत्रों की कुछ महिलाओं ने 1960 से 1980 के दशक तक अपने अधिकारों और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी का आनंद लिया. महिलाएं मंत्री और न्यायाधीश, डॉक्टर और राजनयिक, गायिका और मनोरंजन का काम करने वाली बन गईं. हालांकि, 1996 से 2001 तक तालिबान के पहले कब्जे के दौरान महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति खराब हो गई. 


दो दशकों के दौरान तालिबान की कट्टरता में कोई बदलाव नहीं


तालिबान ने इस दौरान ही अफगानिस्तान में शरिया कानून लागू किया था. तालिबान के सत्ता में वापस आने से पहले दो दशकों के दौरान, युवा महिलाओं की एक नई पीढ़ी पढ़ाई और काम करने की अपेक्षाकृत आजादी के माहौल में बड़ी हुई थी. तब उनकी समस्याएं देखकर पूरी दुनिया सन्न रह गई थी. अब कई लोगों को उम्मीद थी कि फिर से दो दशकों के बाद अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद शायद तालिबान ने भी अपना रुख बदल दिया है, मगर उन्हें निराशा हुई है.


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तालिबानी कानून पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का क्या है रिएक्शन?


अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन की प्रमुख रोजा ओटुनबायेवा ने कानून को “अफगानिस्तान के भविष्य के लिए एक दुखद दृष्टिकोण” कहा है. अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों ने कहा, "ये नया कानून भी 1990 के दशक में तालिबान के कठोर शासन की तरह ही हैं और यह इस बात का और सबूत देते हैं कि जैसा OHCHR ने जिक्र किया है, तालिबान समूह ने सत्ता में वापसी के बाद से अपने दृष्टिकोण में कोई बदलाव नहीं किया है." 


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अफगानिस्तान में बदस्तूर जारी है मानवाधिकारों का उल्लंघन


अफगानिस्तान के अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार की जिम्मेदारियों का पूरी तरह पालन करने और चल रहे उल्लंघनों की जवाबदेही के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय लगातार अपील कर रहा है. इसमें कुछ सदस्य लैंगिक रंगभेद को कानून के दायरे में करने की मांग भी कर रहे हैं. विशेषज्ञों ने सभी अंतरराष्ट्रीय ताकतों और विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से अफगानिस्तान पर एक मजबूत, सैद्धांतिक और समन्वित रणनीति बनाने करने का सुझाव दिया, जिसमें महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता सहित मानवाधिकारों को केंद्र में रखा जाए. 


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