Tata Semiconductor Plant: कहने को तो ये छोटा है चिप है, लेकिन इस छोटे से चिप ने पूरी दुनिया को अपने कब्जे में कर रखा है. एआई के इस जमाने में ये छोटा सा चिप हर देश को अपनी ओर खींच रहा है. सेमीकंडक्टर चिप, इलेक्ट्रॉनिक प्रॉडक्ट्स का दिल माना जाता है. स्मार्टफोन्स से लेकर कार, डेटा सेंटर्स, कम्प्यूटर्स, लैपटॉप, टैबलेट, स्मार्ट डेवाइसेज, इलेक्ट्रिकल व्हीक्ल्स, हाउसहोल्ड अप्लायंसेज, लाइफ सेविंग फार्मास्यूटिकल डेवाइसेज, एग्री टेक डिवाइस, एटीएम जैसे तमाम प्रोडक्ट्स की इसके बिना कल्पना नहीं की जा सकती है. अब समझिए अगर किसी देश के पास इस चिप की ताकत हो तो वो दुनियाभर के कैसे अपनी धौंस दिखाएगा. चीन की ऐसी ही धौंस को अब भारत की टाटा समूह कड़ी टक्कर देने जा रही है. टाटा के इस कदम से चीन के पसीने छूट रहे हैं.  


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टाटा का 27000 करोड़ का प्लान, चीन क्यों परेशान 


टाटा समूह ने सेमीकंडक्टर के दिशा में बड़ा कदम उठाया है. टाटा संस लिमिटेड के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने असम के मोरीगांव जिले के जागीरोड में 27000 करोड़ रुपए के सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग और टेस्टिंग प्लांट की शुरुआत की है, जिसका भूमिपूजन हो गया है.  टाटा की इस कंपनी में स्वदेशी रूप से विकसित टेक्नोलॉजी का उपयोग करके प्रतिदिन 4.83 करोड़ चिप की मैन्यूफैक्चरिंग होगी. टाटा की इस परियोजना को 29 फरवरी, 2024 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी थी.


कहां बन रहा है टाटा का सेमीकंडक्टर प्लांट  


टाटा का सेमीकंडक्टर प्लांट, जो चीन की बेचैनी बढ़ा रहा है, उसे चीन से सटे बॉर्डर एरिया में ही तैयार किया जा रहा है. जिस चीन को अपने सेमीकंडक्टर हब होने का गुमान था, उसी चीन के बार्डर एरिया में टाटा चिपसेट प्लांट लगाने जा रही है. जाहिर है कि टाटा के इस प्लान ने चीन की सिट्टीपिट्टी गुम कर दी है. चीन दुनिया का बड़ा सेमीकंडक्टर बनाने वाला देश हैं, जिसे कार, मोबाइल समेत हर इलेक्ट्रॉनिक सामान में इस्तेमाल किया जाता है। इसी सेमीकंडक्टर प्लांट को लगाने के लिए टाटा समूह ने चीन के बार्डर स्टेट असम सरकार के साथ 60 साल के लिए एक लीज एग्रीमेंट साइन की है। इसे असम के मोरीगांव जिले में लगाया जाएगा। इसके लिए टाटा समहू की तरफ से 27,000 करोड़ रुपये का बड़ा निवेश किया जा रहा है। टाटा के इस प्लांट में हर दिन लगभग 4.83 करोड़ चिप का निर्माण होगा.  चिप निर्माण की ओर टाटा के इस कदम से भारत सेमीकंडक्टर के लिए खुद को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में तेजी से बढ़ेगा. जिस तेजी से भारत चिप निर्माण बढ़ रहा है, चीन की बेचैनी उतनी ही बढ़ रही है. 


चीन का दबदबा होगा खत्म  


चिप मैन्युफैक्चरिंग पर चीन, कोरिया और ताइवान का दबदबा है.  इस चिप की ताकत के बदौलत चीन दुनियाभर को अपनी धौंस दिखाता है. चिप को फ्यूचर का ऑयल कहा जाता है. अमेरिका समेत दुनियाभर के देशों के लिए चीन चिप का सबसे बड़ा सोर्स मार्केट है. सेमीकंडक्टर की कुल सेल में चीन का एक तिहाई योगदान है. अमेरिकी कंपनियों का 60 से 70 फीसदी रेवेन्यू चीन से ही आता है. चिप और सेमीकंडक्टर के लिए इंडस्ट्रीज की निर्भरता चीन पर है. चीन भी इस निर्भरता का पूरा फायदा उठाता है. मनमाने नियमों और पाबंदियों की वजह से वो कंपनियों और देशों को परेशान करता रहा है. चीन पर सेमीकंडक्टर को लेकर निर्भरता के चलते कोविड के दौरान कंपनियों को बड़ा नुकसान हुआ था. मौजूदा वक्त में दुनियाभर के देश सेमीकंडक्टर के लिए चीन का दरवाजा खटखटाते हैं. अमेरिका तनाव के बावजूद सेमीकंडक्टर के लिए चीन पर निर्भर है. वो चाह कर भी उससे अलग नहीं हो पा रहा है. लेकिन भारत के इस चिप मेंकिंग सेक्टर में उतरने से चीन को अपनी बादशाहत खतरे में नजर आने लगी है. भारत के इस सेक्टर में आने से चीन को नुकसान हो सकता है, उसकी अर्थव्यवस्था को और गहरा झटका लगेगा. 


भारत के लिए क्यों जरूरी है ये छोटी सी चिप 


भारत खुद को चिप निर्माण के लिए आत्मनिर्भर बनाना चाहता है. सेमीकंडक्टर के बढ़ते डिमांड को देखते हुए अनुमान लगाया गया है कि भारत में साल 2026 तक यह मार्केट 63 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा. चिप की जरूरतों को देखते हुए भारत चीन और ताइवान जैसे देशों पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है. सेमीकंडक्टर के मैदान में उतरने के बाद भारत सिर्फ अपनी जरूरत का नहीं बल्कि निर्यात के लिए सक्षम बन सकेगा, जो देश की अर्थव्यवस्था को बूस्ट करेगा. 


क्या होता है सेमीकंडक्टर चिप , क्यों है खास 


सेमीकंडक्टर किसी भी इलेक्टॉनिक डिवाइस का ब्रेन है. चिप सिलकॉन से बनती है. चिप इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में ऑटोमिटिक निर्देशों का पालन करती है और फिर उसे पूरा करने का काम करती है. उदाहरण से समझे तो मान लेते हैं कि आपने अपने टीवी रिमोट में कोई कमांड दिया. और उस कमांड का असर आपके टीवी पर दिखने लगता है, इसके पीछे सेमीकंडक्टर ही होता है.