Nehru vs Savarkar Jail: भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव रह चुके सीटी रवि ने नेहरू पर एक गंभीर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि अगर नेहरू सच में स्वतंत्रता सेनानी थे तो उन्हें अंग्रेज जेलों में वीआईपी ट्रीटमेंट क्यों देते थे? वीर सावरकर की तरह उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की सेलुलर जेल क्यों नहीं भेजा गया? राष्ट्रवादियों की तरह उनके साथ कठोर व्यवहार क्यों नहीं किया गया? उन्होंने कांग्रेसियों से सवाल पूछते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, 'वास्तव में नेहरू कैसे थे?' इसके बाद डिबेट शुरू हो गई. कई लोगों ने तर्क रखे हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के रवैये में अंतर की वजह क्या थी. कई लोगों ने सोशल मीडिया पर रवि को जवाब दिया कि नेहरू हमेशा राजनीतिक कैदी रहे, उन पर हत्या का आरोप कभी नहीं लगा. दूसरी तरफ सावरकर को नासिक के ब्रिटिश डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट एएमटी जैक्सन की हत्या में पिस्टल उपलब्ध कराने के आरोप में 1911 में काला पानी की सजा हुई थी. वैसे नेहरू vs सावरकर की यह डिबेट नई नहीं है. कई लेखकों ने किताबों और लेखों में इस बात का अंतर स्पष्ट किया है. 



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सावरकर से सख्ती क्यों?


काला पानी में 50 साल की सजा होने के बावजूद विनायक दामोदर सावरकर 10 साल बाद अंडमान की जेल से भारत भेज दिए गए थे. सावरकर के समर्थन में अक्सर यह दलील दी जाती है कि महात्मा गांधी और पंडित नेहरू जैसे लोग जेल में आराम से किताबें लिखा करते थे जबकि सावरकर कष्ट उठाते थे. सावरकर ने आत्मकथा में खुद लिखा है कि जब उन्हें पता चल गया कि 50 साल उन्हें काला पानी यानी पोर्ट ब्लेयर जेल में रहना है तो उन्होंने लिखने की सोची. शुरू में कैदियों को कागज़ या कलम रखने की छूट नहीं थी. सावरकर कई बार कागज का टुकड़ा शरीर में छुपा लेते थे. वह दीवार पर पत्थर की नोक से लिखा करते थे. हालांकि वहां हर साल जेल की दीवारों पर चूने की पुताई होती थी. सावरकर ने काला पानी की सजा में सैकड़ों किताबें पढ़ी थीं. सावरकर ने खुद लिखा है कि 1920 में काला पानी से उन्हें भारत में रत्नागिरी जेल भेजा गया. जिस तरह नेहरू-गांधी ने अपनी आत्मकथा अंग्रेज़ों की जेल में पुरानी स्मृतियों के आधार पर लिखी हैं, उसी तरह सावरकर ने भी अपनी आत्मकथा रत्नागिरी जेल और बाद में घर पर नजरबंदी के दौरान लिखी. 


1920 में कई राजनीतिक बंदी रिहा किए जाने लगे थे लेकिन अंग्रेजी कानून की नजर में एक 'अपराधी' होने के कारण सावरकर को रिहाई नहीं मिली. यही वजह थी कि उन्होंने यह मांग की थी कि जब तक सजा की अवधि पूरी नहीं होती, उन्हें भारत से दूर अंडमान में ही किसान की तरह बसने का मौका दिया जाए. 


नेहरू से अंग्रेजों की नरमी क्यों?


यहां समझना जरूरी है कि कांग्रेस से जुड़े लोग नेहरू, गांधी, पटेल, आजाद ये नरम दल के लोग थे यानी अहिंसक तरीके से अंग्रेजों के सामने अपनी बात रखते थे. 1942 में जब मुंबई अधिवेशन के दौरान नेहरू ने 'भारत छोड़ो' का प्रस्ताव रखा तो नेताओं को जेल में डाल दिया गया. नेहरू कुल 9 जेलों में रहे थे. आखिर में वह अहमदनगर किला जेल में सबसे ज्यादा 1942 से 1945 तक 963 दिन रहे. तब तक जेलों में कैदियों के लिए लिखने-पढ़ने की ज्यादा सुविधाएं दी जाने लगी थीं जो 1910 के आसपास कम या बिल्कुल नहीं थीं. यही वजह है कि नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया जैसी किताब जेल में लिखी. 


9 बार जेल में क्यों डाले गए नेहरू


नेहरू खानदानी रईस थे. गांधी के प्रभाव में आजादी के आंदोलन में आए थे. 1922 में पहली बार जेल गए थे. लखनऊ की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में पहली सजा उन्होंने काटी थी. सबसे कम 12 दिनों के लिए जेल में डाले गए थे. नेहरू पहली बार जब गिरफ्तार हुए थे तो वजह यह थी कि इलाहाबाद में उन्होंने प्रिंस ऑफ वेल्स के दौरे का बहिष्कार किया था. सड़कें और गलियां खाली हो गई थीं. इस पर उन्हें छह महीने की सजा और 100 रुपये जुर्माना लगा था. 


दूसरी बार मई 1922 में इलाहाबाद जेल में डाला गया क्योंकि वह विदेशी कपड़ों के बहिष्कार की मुहिम चला रहे थे. उन्हें 18 महीने का सश्रम कारावास हुआ था. तीसरी बार 1923 में 12 दिन के लिए, चौथी बार 1930 में 181 दिनों के लिए नैनी जेल में बंद रहे. उस समय गांधी डांडी यात्रा कर रहे थे और नेहरू सविनय अवज्ञा आंदोलन को धार दे रहे थे. उसी साल फिर से उन्हें किसानों को एकजुट करने के लिए गिरफ्तार किया गया. 100 दिन तक नैनी जेल में बंद रहे. वह किसानों को प्रेरित कर रहे थे कि अंग्रेजों को टैक्स न दें. उन्होंने जेल से इंदिरा को कई चिट्ठियां लिखी थीं. छठी बार 1932 से 1933 तक नैनी, बरेली और देहरादून जेल में रखे गए. उस समय लगान देना बंद करने के लिए नेहरू अभियान चलाए हुए थे. सातवीं बार 1934 से 1935 तक नेहरू अलीपुर सेंट्रल जेल, देहरादून, नैनी और अल्मोड़ा जेल में कुल 558 दिन रहे. उन पर राजद्रोह का भी केस चला. 8वीं बार 399 दिनों की जेल हुई. इस बार उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सत्याग्रह शुरू करने का ऐलान किया था. गोरखपुर में भाषण दिए और चार साल का सश्रम कारावास मिला. 9वीं बार सबसे ज्यादा वक्त वह जेल में रहे. वह अहमदनगर, बरेली फिर अल्मोड़ा जेल में रहे.


इस तरह से देखें तो नेहरू को जेल आंदोलन, भाषण या विरोध के लिए मिली थी जबकि सावरकर पर अंग्रेजों ने गंभीर आरोप लगाए थे. सावरकर पर ब्रिटिश राजा के खिलाफ साजिश रचने का भी आरोप लगा था. एक लाइन में समझें तो नेहरू पॉलिटिकल प्रिजनर थे जबकि सावरकर रिवोल्यूशनरी कैदी के रूप में जेल में बंद रहे. सावरकर कुल 15 साल जबकि नेहरू 9 साल जेल में रहे थे.