Single Dose Of Medicine: क्या आप जानते हैं कि दुनिया की सबसे महंगी दवा कौन सी है. Zolgensma इंजेक्शन इस समय दुनिया की सबसे महंगी दवा है. यह दवा एक बार फिर चर्चा में है. असल में यह एक प्रकार की जीन थेरेपी है जिसका उपयोग स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA) से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए किया जाता है. यह बीमारी बच्चों के मांसपेशियों को कमजोर करती है और अगर इसका इलाज नहीं किया जाता है तो यह घातक हो सकती है. Zolgensma इंजेक्शन का उपयोग करके SMA का इलाज करने के लिए, बच्चे को एक बार इंजेक्शन लगाया जाता है. इंजेक्शन बच्चे के शरीर में एक नए जीन को डालता है जो SMA के कारण होने वाले नुकसान को ठीक कर सकता है. Zolgensma इंजेक्शन अभी भी भारत में स्वीकृत नहीं है, लेकिन डॉक्टर की सलाह और सरकार की मंजूरी के बाद इसे आयात किया जा सकता है. भारत में इसकी एक डोज की कीमत 17 करोड़ रुपये है.


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स्विस कंपनी नोवार्तिस द्वारा विकसित
दरअसल, हाल ही में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने SMA से पीड़ित 15 साल के एक बच्चे के इलाज के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद मांगी है. उन्होंने कहा कि यह बच्चा गरीब परिवार से है और उसके माता-पिता इंजेक्शन की कीमत नहीं चुका सकते हैं. इसके बाद यह दवा फिर से चर्चा में आ गई. रिपोर्ट्स के मुताबिक यह दवा स्विस कंपनी नोवार्तिस द्वारा विकसित की गई है. एसएमए एक घातक, न्यूरोमस्कुलर और प्रोग्रेसिव आनुवंशिक बीमारी है जो ब्रेन की नर्व सेल्स और रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचाती है. अमेरिका में अनुमानित रूप से 10,000 से 25,000 बच्चे और वयस्क एसएमए से पीड़ित हैं. Zolgensma की कीमत बहुत अधिक है, इसलिए बहुत कम मरीज इसे खरीद पाते हैं. 


बहुत ही असरदार और जीवनदायिनी
दुनिया में एसएमए के इलाज के लिए केवल तीन दवाओं को मंजूरी मिली है. इन्हें बायोजेन, नोवार्तिस और रॉश द्वारा बनाया गया है. नोवार्तिस की वेबसाइट के अनुसार बताया गया है कि इस दवा को 45 देशों में मंजूरी मिली है और अब तक दुनियाभर में 2,500 मरीजों का इलाज किया जा चुका है. कंपनी का दावा किया है उसने 36 देशों में करीब 300 बच्चों को मुफ्त में जीन थेरेपी दी है. यह इसलिए काफी महंगी है क्योंकि ये बहुत ही असरदार है और एक तरह से जीवनदायिनी है.


न्यूरॉन्स प्रभावित हो जाते हैं
वहीं अगर इस बीमारी के बात करें तो स्पाइनल मस्कुलर एस्ट्रॉफी काफी दुर्लभ बीमारी है. भारत में अब तक इस बीमारी के बहुत कम मामले आए हैं. बीमारी में बच्चों को चलने-फिरने, उठने-बैठने और खाने-पीने में तकलीफ होने लगती है. सही इलाज नहीं मिल पाने से अधिकांश मामलों में बच्चे की जान चली जाती है. इसका कारण यह है कि इस बीमारी में न्यूरॉन्स प्रभावित हो जाते हैं, जिससे शरीर और दिमाग के बीच के तालमेल पर असर पड़ता है. यह बीमारी ब्रेन को नुकसान पहुंचाने के साथ ही सेल्स को नष्ट करना शुरू कर देती है.