मां का एचआईवी, बच्चे की जिंदगी पर संकट! रिसर्च में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
मां का प्यार और पूरी दुनिया में सबसे अनमोल होता है. लेकिन जब मां एचआईवी पॉजिटिव होती है, तो न सिर्फ उसकी बल्कि उसके बच्चे की जिंदगी भी खतरे में आ जाती है.
मां का प्यार और पूरी दुनिया में सबसे अनमोल होता है. लेकिन जब मां एचआईवी पॉजिटिव होती है, तो न सिर्फ उसकी बल्कि उसके बच्चे की जिंदगी भी खतरे में आ जाती है. एक अध्ययन में पाया गया है कि एचआईवी से संक्रमित महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चों (खासकर लड़कों) का बचपन में ही मौत का खतरा बढ़ जाता है. ये बच्चे इम्यून सिस्टम से जुड़ी समस्याओं के प्रति ज्यादा सेंसिटिव होते हैं.
ब्रिटेन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रेग्नेंसी के दौरान मां के खून में मौजूद एचआईवी वायरस के संपर्क, कमजोर इम्यूनिटी और अन्य संक्रमणों के कारण ऐसा होता है. अध्ययन में जिम्बाब्वे की 726 गर्भवती महिलाओं को शामिल किया गया, जिनमें से कुछ एचआईवी से ग्रस्त थीं. शोधकर्ताओं ने एचआईवी के संपर्क में आए और नहीं आए शिशुओं के ब्लड टेस्ट की तुलना की.
बच्चों में अलग से हो रहा इम्यून सिस्टम का विकास
अध्ययन में पाया गया कि एचआईवी के संपर्क में आए बच्चों (खासकर लड़कों) में इम्यून सिस्टम का विकास अलग तरह से हुआ था. इस ग्रुप में मृत्यु दर उन शिशुओं की तुलना में 41% अधिक थी जो एचआईवी के संपर्क में नहीं आए थे. लिवरपूल यूनिवर्सिटी में बाल रोग संक्रामक रोगों के क्लिनिकल लेक्चरर डॉ. सेरी इवांस ने कहा कि कुल मिलाकर, ये निष्कर्ष बताते हैं कि प्रेग्नेंसी में एचआईवी से ग्रस्त महिलाओं में असंतुलित इम्यून सिस्टम का माहौल (जिसमें सूजन, कमजोर इम्यूनिटी और अन्य संक्रमण शामिल हैं) उनके बच्चों में इम्यून सिस्टम के विकास को कैसे प्रभावित करता है. यहां तक कि उन शिशुओं में भी (जो जीवित रहे और एचीवी से फ्री रहे) शोधकर्ताओं ने विकास में कमी पाई.
क्या है चिंता की बात?
शोधकर्ताओं के अनुसार, चिंता की बात यह है कि मां को दी जाने वाली एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) और विशेष रूप से स्तनपान कराने के बावजूद ऐसा पाया गया, जैसा कि शोधकर्ताओं ने नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित शोधपत्र में बताया है. शोधकर्ताओं ने बताया कि एचआईवी से ग्रस्त महिलाओं में खून में सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) द्वारा मापी गई शारीरिक सूजन के अलावा, साइटोमेगलोविरस (सीएमवी) (एचआईवी रोग की प्रगति में एक को-फैक्टर) से संक्रमण भी शिशु मृत्यु दर से स्वतंत्र रूप से जुड़ा हुआ पाया गया, साथ ही साथ बच्चे की इम्यून सिस्टम के विकास को भी प्रभावित करता है.
उपाय क्या?
इवांस ने कहा कि सीआरपी द्वारा बताए गए सूजन को मापना सस्ता और आसान है, जो डिलवरी से पहले की देखभाल के दौरान तुरंत जांच के लिए अवसर प्रदान करता है. इससे उन गर्भवती महिलाओं की पहचान की जा सकती है जिन्हें शिशु मृत्यु दर का खतरा सबसे अधिक है और अधिक खतरे वाली प्रेग्नेंसी के लिए ज्यादा मदद प्रदान की जा सकती है.