Air pollution in Delhi: 'आंखों में जल रहा है, क्यों बूझता नहीं धुआं' गुलजार द्वारा लिखी गई और जगजीत सिंह द्वारा गाई गई गजल की ये पंक्तियां आज के दिल्ली के हालात में एकदम सही बैठती है. इस गजल में जलती हुई आंखें शायद कविता हों, लेकिन प्रदूषण से भरे दिल्ली के वातावरण में ये पंक्तियां एक पीड़ित नागरिकता की गुहार बन जाती हैं. महीन कणों से भरी हवा हमारे शरीर को कैसे नुकसान पहुंचा रही है, जिसके कारण खुजलीदार आंखें, सिरदर्द और गले में जलन जैसी समस्या हो रही है.


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सूक्ष्म प्रदूषक (जिनमें महीन कण शामिल होते हैं) सांस के दौरान दिल, फेफड़ों और यहां तक ​​कि दिमाग के सेल्स में भी घुस जाते हैं, जिससे लोगों को स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं, खासकर कमजोर लोगों जैसे बुजुर्गों और बच्चों को. ऐसे में डॉक्टर सलाह देते हैं कि लोग N95 या N99 रेस्पिरेटर मास्क का उपयोग करें ताकि ये हवा में मौजूद कणों को छान सकें और प्रदूषण के चरम चरम पर बाहरी गतिविधियों को प्रतिबंधित कर सकें.


वायु प्रदूषण से होने वाली समस्याएं
दिल्ली के नारायणा अस्पताल में पल्मोनोलॉजी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. सत्य रंजन साहू बताते हैं कि गले में जलन, आंखों की समस्याएं, चक्कर आना, सिरदर्द, कमजोरी और अस्थमा का बढ़ना जैसे लक्षण सीधे तौर पर वायु प्रदूषण से जुड़ा हो सकता है, खासकर जब वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) बढ़ा हुआ हो. उन्होंने कहा कि बाहरी समय को कम प्रदूषण वाले घंटों तक सीमित रखना चाहिए और जब AQI ज्यादा हो तो घर के अंदर व्यायाम एक अच्छा विकल्प हो सकता है.


बच्चों, बुजुर्गों और बीमारी लोगों के लिए सलाह
AIIMS के सामुदायिक चिकित्सा के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. हर्षल आर साल्वे ने कहा कि बाहरी गतिविधियों के लिए दोपहर अपेक्षाकृत अच्छा समय है. हर समय, अच्छी तरह से फिटेड N95 और N99 मास्क का उपयोग बुजुर्गों, बच्चों और अस्थमा, सीओपीडी और दिल की बीमारी से पीड़ित लोगों द्वारा किया जाना चाहिए. यदि प्रदूषण से संबंधित कोई लक्षण दिखाई देते हैं तो डॉक्टर से परामर्श करना अनिवार्य है.


घर में लगाएं ये पौधे
हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए घर के अंदर में एलोवेरा, स्पाइडर प्लांट, आइवी आदि जैसे वायु शुद्ध करने वाले पौधे रखें. कई डॉक्टर अधिक जोखिम वाले व्यक्तियों, बच्चों और बुजुर्गों को भी इन्फ्लुएंजा और न्यूमोकोकल निमोनिया के लिए टीका लगवाने की सलाह देते हैं क्योंकि प्रदूषण के मौसम और सर्दियों के महीनों में इन संक्रमणों के बढ़ने की प्रवृत्ति होती है.