बच्चों के पालन-पोषण का सफर खुशियों, परेशानियों और सीखने के कई सारे मौकों से भरा होता है. यदि आपको पता चलता है कि आपके बच्चे को टाइप 1 डायबिटीज है तो यह खबर आपको एक अलग तरह के बदलाव की ओर लेकर जाती है. टाइप 1 डायबिटीज में इम्युन सिस्टम का प्रभाव पैनक्रियाज (अग्नाशय) के इंसुलिन बनाने की क्षमता पर पड़ता है. इस स्थिति में ब्लड शुगर के लेवल पर लगातार नजर रखने की जरूरत होती है.


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हालांकि, इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि टाइप 1 डायबिटीज के साथ भी आपका बच्चा एक अच्छी, सेहतमंद जिंदगी जी पाए. इसमें मुख्य रूप से समस्या को कंट्रोल करने के लिए उन पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है जिसका प्रभाव आपके बच्चे के पूरे स्वास्थ्य पर पड़ता है, जैसे रोजाना व्यायाम करने को महत्व देना भी एक महत्‍वपूर्ण पहलू है.


गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल में एंडोक्राइनोलॉजी एंड डायबिटीज विभाग के डायरेक्टर डॉ. राजेश राजपूत का कहना है कि टाइप 1 डाबबिटीज से पीड़ित बच्चे की डेली रूटीन में फिजिकल एक्टिविटी को शामिल करना उनकी सेहत तथा तंदुरुस्ती के लिए बेहद जरूरी है. माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्‍चे को रोजाना 30 मिनट तक एक्‍सरसाइज करायें, इससे ना केवल उनके बच्चे का ब्लड शुगर कंट्रोल रखने में मदद मिलेगी, बल्कि इंसुलिन के प्रति सेंसिटिविटी में भी सुधार होगा. साथ ही वे एक सेहतमंद जिंदगी भी जी पाएंगे. डायबिटीज के कंट्रोल को आसान बनाने वाली अत्‍याधुनिक तकनीकों को अपनाने से भी डायबिटीज का सफर परेशानी रहित बन सकता है. जैसे, माता-पिता ग्लूकोज पर लगातार निगरानी रखने वाले डिवाइस (सीजीएम) का इस्तेमाल कर रात-दिन उनके ग्लूकोज लेवल की जांच कर सकते हैं. इससे उन्हें रियल-टाइम डेटा मिल जाता है कि कैसे बच्‍चे के खान-पान, फिजिकल एक्टिविटी और इंसुलिन लेने से ब्लड शुगर के लेवल में बदलाव हो रहा है.


डायबिटीज केयर एबॅट में डॉ. प्रशांत सुब्रमण्यिन का कहना है कि किसी के लिए डायबिटीज में देखभाल करना मुश्किल हो सकता है-खासकर बच्चों के मामले में माता-पिता अपने बच्चों की सेहत की देखभाल में अहम भूमिका निभाते हैं. बच्चों को इसमें सक्षम बनाने और डायबिटीज के कंट्रोल की जटिलता को कम करने में टेक्‍नोलॉजी से प्रेरित होकर बनाई गई सीजीएम डिवाइस उपयोगी साबित हुए हैं. इसमें ज्यादा परेशानी नहीं होती और बच्चे के ग्लूकोज के लेवल को बिना किसी दर्द के जांचा जा सकता है. इसके साथ ही स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने से डिजिटल कनेक्शन तैयार हो जाता है और माता-पिता भी आसानी से मॉनिटरिंग रख पाते हैं. साथ ही डेटा तथा ब्लड शुगर में अचानक हुई बढ़ोतरी या कमी को विजुअल ग्राफ की जानकारी से रियल-टाइम में अप-टू-डेट रहा जा सकता है. ये एक उपयोगी टूल है, जो माता- पिता को ग्लूकोज के बढ़े हुए लेवल की स्थिति में इंसुलिन की सटीक डोज देने में सशक्‍त कर सकते हैं. वहीं, उनकी चिंता दूर होती है और आत्मविश्वास भी काफी बढ़ जाता है.


आजकल की गैजेट वाली दुनिया में, फिजिकल एक्टिविटी को अपने बच्चे की जिंदगी में शामिल करना काफी मुश्किल है. शुक्र है ऐसे में कुछ गेम प्लान हैं जिनके चार आसान स्टेप्स को अपनाने से आप अपने बच्चे को बड़ी ही आसानी से सेहतमंद और एक्टिव दोनों ही रख सकते हैं:


1. ब्लड शुगर की नियमित जांच करें
अपने रनिंग शूज पहनने से पहले अपने ग्लूकोज का लेवल जांचें. लगातर ध्यान रखने से इंसुलिन की अगली डोज कब लेना है उसकी सटीक जानकारी रहती है. इसे आप लगातार निगरानी करने वाली डिवाइस जैसे फ्री स्टाइल लिब्रे की मदद से भी कर सकते हैं. इस तरह के डिवाइस, मोबाइल फोन ऐप से भी जुड़े होते हैं, जिससे आप रीडिंग्स देख सकते हैं. इससे आप तनाव या लाइफस्टाइल से जुड़ी किसी भी आदत का प्रभाव अपने बच्चे पर देख सकते हैं. ऐसा करने से वे सेहत को ध्यान में रखकर निर्णय ले पाएंगे और ज्यादातर रेंज (70-180 मिलीग्राम/डीएल) में भी रहेंगे.


2. एक्टिव बने रहने के लिए मजेदार एक्टिविटी करें
बच्चों को एक्टिव बनाए रखने के लिए ऐसी एक्सरसाइज के बारे में पता लगाना जरूरी है, जिसमें उनकी रुचि हो. उनको किसी प्रकार के टीम गेम में शामिल कर एक डेली रूटीन बनाने से मदद मिल सकती है. दोस्तों या परिवार के लोगों के साथ साइकिल चलाना, डांसिंग, क्रिकेट खेलना या खो-खो या कबड्डी जैसी फिजिकल एक्टिविटी को अपनाया जा सकता है. बच्चे को ऐसा महसूस ना होने दें कि वे अकेले हैं और उन्हें अपनी बीमारी की वजह से एक्सरसाइज करने की जरूरत है, बल्कि इसे परिवार के साथ मिलकर किया जाने वाला काम बना दें. यह एक-दूसरे से जुड़ने और शरीर को स्वस्थ रखने का भी एक मजेदार तरीका है. किसी भी प्रकार की एक्टिविटी करने के साथ-साथ पर्याप्त नींद लेने पर भी ध्यान दें, क्योंकि टाइप 1 से पीड़ित बच्चों के लिए आराम बेहद जरूरी है.


3. स्नैक्स हमेशा तैयार रखें
एक्सरसाइज के लिए तैयार होने के लिए लोगों को लगभग 15 ग्राम कार्बोहाइड्रेट (जैसे ग्रेनोला बार के रूप में) लेने के लिए कहा जाता है, यदि उनका ब्लड ग्लूकोज का लेवल 100 मिलीग्राम/डीएल से कम है- खासकर जब आपका बच्चा 30 मिनट या उससे अधिक देर तक खेलने-कूदने के बारे में सोच रहा है. हालांकि, कई बार वर्कआउट के पहले लिए जाने वाले स्नैक शुगर के लेवल को गिरने से रोकने के लिए पर्याप्त नहीं होते हैं. जब एक्सरसाइज ना कर रहे हों तो भी अपने पास स्नैक का डिब्बा रखना समझदारी का काम है, खासकर जब आपको पता ना हो कि कब आपको एकदम से एक्टिव होना पड़ जाए.


4. डायबिटीज से जुड़ी बातों को लिखते रहने की आदत डालें
ये करना हमेशा संभव नहीं है- और ऐसा होना ठीक भी है. महत्वपूर्ण बात यह है कि हर किसी के अनुभव से सीख लेना, जैसे ये समझना कि आपके बच्चे के शुगर का लेवल अलग-अलग प्रकार की खाने-पीने की चीजों और एक्टिविटी में किस प्रकार की प्रतिक्रिया करता है. खासकर, जब आपके बच्चे ने अभी-अभी एक्सरसाइज करना शुरू किया हो. आपको लगातार निगरानी रखनी चाहिए. उनके ग्लूकोज के लेवल, उनके फूड और उनकी एक्सराइज की जानकारी समय के साथ लिखें. इससे आप यह चुन पाएंगे कि कौन-सा गेम प्लान काम कर रहा है और कौन-सा नहीं, चाहे स्नैक लेने का समय बदलने की जरूरत महसूस हो या फिर सुबह-शाम की सैर का समय बदलने की बात हो. अपने बच्चे की डेली रूटीन में किसी भी प्रकार का बदलाव करने या आपके मन में कोई सवाल होने की स्थिति में हमेशा ही किसी डॉक्टर से सलाह लें.


याद रखें, डायबिटीज से पीड़ित बच्चों को अपनी बीमारी की वजह से दायरों में नहीं बांधा जा सकता. इन सभी टिप्स की मदद से आप आसानी से उनकी जिंदगी में फिजिकल एक्टिविटी को शामिल कर सकते हैं, वहीं उनके ब्लड शुगर के लेवल को भी कंट्रोल रख सकते हैं. आपके बच्‍चे के साथ पूरा परिवार मिलकर इन एक्टिविटी को साथ में कर सकता है.