Fake medicines: कई राज्यों में मौजूद है नकली दवा बनाने वाली फैक्ट्री, कैसे करें असली दवाई की पहचान?
भारत में नकली दवाओं का कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा है. भारत की केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने अपनी जांच में नकली दवाएं पकड़ी हैं.
भारत में नकली दवाओं का कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा है. भारत की केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने अपनी जांच में नकली दवाएं पकड़ी हैं. हर महीने की जाने वाली रैंडम जांच में बाजार से अलग-अलग दवाओं के 1167 सैंपल चेक किए गए. इनमें से 58 दवाएं जांच में फेल हो गई. वहीं, दो दवाएं पूरी तरह नकली पाई गई. ये दवाएं उत्तराखंड, गुजरात, यूपी, हरियाणा, तेलंगाना पश्चिम बंगाल, मेघालय, सिक्किम, हिमाचल में बनी फैक्ट्रियों में बन रही हैं. जनवरी में भी देश में हुई रैंडम जांच में 5 प्रतिशत दवाएं फेल हो गई थी.
परेशानी की बात ये है कि इनमें ज्यादातर दवाएं वो हैं, जो बहुत इस्तेमाल की जाती हैं. भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाली एंटीबायोटिक दवा भी क्वालिटी जांच में फेल हो गई है। इसके अलावा, बुखार के इलाज की पैरासिटामोल, ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने की दवा, दमा व सांस की बीमारी के इलाज की दवा, लिवर की बेहतरी के लिए ली जाने वाली दवा और स्किन इंफेक्शन के इलाज की दवाइयां शामिल हैं. इन सभी दवाओं की क्वालिटी खराब होने का मतलब ये है कि मरीज को ऐसी दवा ने बिल्कुल फायदा नहीं पहुंचाया या जितना असर करना चाहिए था, उस हिसाब से असर नहीं हुआ.
दवाओं में डिजोल्यूशन की समस्या
नोएडा स्थित यथार्थ अस्पताल में फिजीशियन डॉ. प्रखर गर्ग ने बताया कि ज्यादातर दवाओं में डिजोल्यूशन की समस्या है. यानी वो सही तरीके से घुलती नहीं है. इसके अलावा किसी किसी दवा पर लिखी जानकारी सही नहीं है तो किसी दवा में जो तत्व होने चाहिए उनकी मात्रा ही ठीक नहीं है. लिस्ट के हिसाब से एंटीबायोटिक दवा Ofloxacin का एक पॉपुलर ब्रांड जिसे औरंगाबाद की एक दवा निर्माता कंपनी बनाती है वो सही तरीके से घुलती नहीं है.
डॉ. प्रखर ने आगे बताया कि स्किन इंफेक्शन के इलाज में प्रयोग किया जाने वाला हाइड्रोजन पेरोक्साइड टॉपिकल सॉल्यूशन नकली पाया गया. इसे मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित एक पॉपुलर ब्रांड की कंपनी नाम की कंपनी बना रही है. Zole-F ये दवा स्किन इंफेक्शन के इलाज के लिए बनाई जाती है. इसे हिमाचल के सोलन में मौजूद सन फार्मा नाम की बड़ी फार्मा कंपनी बनाती है. इस दवा में कॉन्सन्ट्रेशन और शुद्धता की समस्या मिली.
दवा की क्वालिटी से समझौता
नोएडा स्थित केमिस्ट एसोसिएशन रवि विज ने बताया कि नकली दवाएं या सब स्टैंडर्ड दवाएं आमतौर पर वो होती हैं जिनमें या तो दवा निर्माता कंपनी ने ही कहीं क्वालिटी से समझौता किया या फिर वो पूरी तरह किसी गैरकानूनी फैक्ट्री में अवैध तरीके से बन रही है और दवा पर लेबल किसी नामी फार्मा कंपनी का है.
क्यूआर कोड से पहचानें असली दवा
सवाल बड़ा ये है कि आम आदमी क्या कर सकता है. आजकल कई दवाओं पर क्यूआर कोड बना आने लगा है. इसकी मदद से आपको पता चलेगा कि दवा असली है या नकली. हालांकि अभी हर दवा पर क्यूआर कोड नहीं आ सका है.
नकली दवाओं पर दावे अलग-अलग
सरकार की छापेमारी के बावजूद गली-मोहल्ले में मुनाफाखोरी की जानलेवा फैक्ट्रियां खुलती जा रही हैं. हालांकि सरकार का दावा है कि भारत में बिकने वाली कुल दवाओं में से 0.3 प्रतिशत ही नकली होती हैं. लेकिन अलग-अलग एजेंसियों के दावे अलग-अलग हैं. नकली दवाओं का बाजार भारत की फार्मा इंडस्ट्री की छवि बिगाड़ रहा है. इतना ही नहीं, मरीजों की जान और देश की साख दोनों दांव पर लगी हैं.