GBS Treatment Cost: महाराष्ट्र के पुणे में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) का खौफ बढ़ रहा है, ये रेयर न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जिसके मरीजों की तादाद 100 के पार जा चुकी है, वहीं राज्य के सोलापुर जिले में जीबीएस के पीड़ित एक शख्स की मौत भी हो गई है. बताया जा रहा है कि मृतक पुणे आया था, लेकिन उसकी मौत सोलापुर में हुई.  इस बीमारी में बॉडी के हिस्से अचानक सुन्न पड़ जाते हैं और मसल्स में कमजोरी आने लगती है, यानी आपकी बॉडी भी वीक हो जाती है. ऐसे में आपके मन में सवाल आता होगा कि कि इस डिसऑर्डर को ठीक करने में कितना खर्च आता होगा, क्या ये इतना ज्यादा तो नहीं कि आपकी जेब ही ट्रीटमेंट की इजाजत न दे पाए.


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इलाज के खर्च को लेकर एम्स फिक्रमंद
हेल्थकेयर के बढ़ते खर्च को लेकर एम्स अस्पताल, दिल्ली के डॉक्टर्स ने चिंता जताई है. उन्होंने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) को चिट्ठी लिखकर लो कॉस्ट ऑप्शंस की पहचान और वैलिडेशन के लिए एक टास्क फोर्स सेट अप करने का गुजारिश की है है. हॉस्पिटल के एक सीनियर डॉक्टर ने कहा, "हमने न्यूरोलॉजी में किफायती स्वास्थ्य सेवा को बढ़ावा देने के लिए एक टास्क फोर्स का प्रस्ताव रखा है. अगर ये कामयाब रहा, तो इसी तरह का रिसर्च दूसरे डिपार्टमेंट्स के लिए भी किया जा सकता है."


जीबीएस के इलाज के लिए कितना खर्च?
टीओआई के मुताबिक कई डॉक्टर्स पहले से ही सस्ते विकल्पों का इस्तेमाल कर रहे हैं. मिसाल के तौर पर के लिए, पेरिफेरल नर्वस सिस्टम के एक एक्यूट इंफ्लेमेट्री डिसऑर्डर, गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (Guillain-Barre-Syndrome) यानी जीबीएस (GBS) के लिए सिंगल साइकल इम्यून थेरेपी का खर्च 3 लाख से लेकर 8 लाख रूपये तक आता है. लेकिन कई डॉक्टर्स गरीबों का इलाज स्टेरॉयड से कर रहे हैं जिसकी लागत 5,000 रुपये से भी कम है और जो समान रूप से असरदार हैं. डॉक्टरों का कहना है कि मल्टीपल स्केलेरोसिस (Multiple Sclerosis) और इस्केमिक स्ट्रोक (Ischemic Stroke) जैसी बीमारियों के लिए भी सस्ते विकल्प मौजूद हैं।



किफायती इलाज की जरूरत
AIIMS में न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. कामेश्वर प्रसाद (Dr. Kameshwar Prasad) ने टीओआई से कहा, "हमारे एक रेसिडेंट, डॉ. भावना कौल (Dr. Bhavna Kaul) ने हाल ही में जीबीएस के लिए सस्ते विकल्पों के इस्तेमाल का आकलन करने के लिए पूरे भारत के डॉक्टर्स का एक सर्वे किया. हमें ये जानकर ताज्जुब हुआ कि ज्यादातर डॉक्टर्स और न्यूरोलॉजिस्ट उन्हें लिख रहे थे,  क्योंकि इस केस में स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट, इम्युनोग्लोबुलिन, किफायती नहीं था. उन्होंने ये भी दावा किया कि मरीजों का रिस्पॉन्स संतोषजनक था."


"सरकार करे सपोर्ट"
डॉ. प्रसाद ने कहा, "सस्ते इलाज की इफेक्टिवनेस के एनीकडॉटल एक्सपीरिएंस एवेलेबल हैं, लेकिन इसे वैलिडेट करने के लिए बहुत कम रिसर्च किया गया है. दवा कंपनियां दिलचस्पी नहीं लेती हैं, शायद इसलिए क्योंकि ऐसे ट्रीटमेंट का पेटेंट नहीं कराया जा सकता है. लेकिन, मेरा मानना है कि सरकार को हेल्थ केयर की लागत को कम करने के लिए रिसर्च को सपोर्ट करना चाहिए."