Double Obstruction in Food Pipe: किसी भी इंसान के फूड पाइप में रुकावट पैदा हो जाए तो उसके लिए खाना-पीना मुश्किल हो जाता है, हालांकि मौजूदा दौर में एंडोस्कोपी तकनीक ने इतनी तरक्की कर ली है कि डॉक्टर काफी मुश्किल मेडिकल कंडीशन का भी इलाज कर पा रहे.  ऐसा ही कुछ हुआ एक क्रोनिक लिवर डिजीज के मरीज के साथ जिसको नई जिंदगी मिल गई है.


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एंडोस्कोपी से खुल गया फूड पाइप
मशहूर  गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी डॉ. अनिल अरोड़ा (Dr. Anil Arora) ने बताया कि उन्होंने एंडोस्कोपिक प्रोसीजर के जरिए क्रोनिक लिवर डिजीज के पेशेंट के फूड पाइप में दोहरी रुकावट को दूर कर दिया.  हिमाचल प्रदेश के शिमला में रहने वाला 45 साल का पेशेंट जो सिरोसिस से पीड़ित था, उसका लिवर सिकुड़ जाता था, जिससे काफी परेशानी होती थी. इसके कारण लार्ज टॉर्टस ब्लड वेसेल का विकास होता है जिसे ओसोफेगल वारसी भी कहते हैं, ये फूड पाइप और ओसोफेगस के जंक्शन में होता है जिसके कारण मुंह से खून निकलने लगता है.


निगलने में होती थी दिक्कत
सिरोसिस के अलावा पेशेंट को खाद्य पाइप को प्रभावित करने वाली दो अन्य बड़ी बीमारियां थीं: अकालेशिया कार्डिया (Achalasia cardia)  और निचले फूड पाइप का एक बड़ा निचला आउट पॉचिंग जिसे ओसोफेगल डायवर्टिकुलम (Oesophageal diverticulum) कहा जाता है. अकालेशिया कार्डिया एक डिसऑर्डर है जो एक तंग निचले ग्रासनली स्फिंक्टर के कारण भोजन को ठीक से निगलने में रुकावट डालता है, जो निगलने के दौरान रिलैक्स करने में नाकाम रहता है जिसके बाद भोजन छाती में फंस जाता है और वो बार-बार उल्टी, पेट फूलना और निमोनिया का कारण बन जाता है. निचले ओसोफेगस और उसके आउट पॉचिंग दोनों में भोजन के ठहराव के कारण ओसोफेगल डायवर्टिकुला (Esophageal diverticula) कहा जाता है


इसके अलावा, पेशेंट को ओसोफेगल वैरिक्स था, जो सिरोसिस में एक कॉमन कंडीशन है, जहां फूड पाइप में बढ़ी हुई नसें जिंदगी के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं क्योंकि इसमें ब्लीडिंग होती है. वैरिसिस के लिए मैडिकल ट्रीटमेंट  कराने के बावजूद, रोगी की जटिल स्थिति ने बड़ी चुनौतियां पेश कीं।


डॉक्टर ने क्या कहा?
सर गंगा राम अस्पताल के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी डिपार्टमेंट के कंसल्टेंट डॉ. शिवम खरे (Dr. Shivam Khare) ने इस तरह के मामले के इलाज की कठिनाइयों के बारे में बताया. “इलाज के लिए दो मुख्य विकल्प थे: सर्जरी, जो ऐसे मामलों में बेहद जोखिम भरी है, या एंडोस्कोपी. हालांकि, गैस्ट्रोओसोफेजियल जंक्शन पर सूजी हुई फैली हुई नसों की उपस्थिति ने एंडोस्कोपिक उपचार को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया. ये मामला विशेष रूप से जटिल था क्योंकि हमें अकालेशिया कार्डिया और डायवर्टिकुलम दोनों का इलाज करने की जरूरत थी, साथ ही यह सुनिश्चित करना था कि हम प्रमुख फैली हुई नसों से ब्लीडिंग से बचें खासकर गैस्ट्रोओसोफागस जंक्शन पर, ”



मेडिकल टीम ने रेडियोलॉजिस्ट डॉ. अरुण गुप्ता, डॉ. अजीत यादव और डॉ. राघव सेठ के सहयोग से एक सावधानीपूर्वक उपचार योजना तैयार की. उन्होंने पहले ब्लीडिंग के जोखिम को कम करने के लिए वैरिसिस को एम्बोलाइज़ किया और फिर एंडोस्कोपिक इवैल्यूएशन के साथ आगे बढ़े, कंफर्म होने पर कि वैरिसिस समाप्त हो गया था. अगला कदम एक कंबाइंड पेरोरल एंडोस्कोपिक मायोटॉमी (पीओएम) प्रोसीजर थी, जिसने एक साथ अकालेशिया कार्डिया और डायवर्टिकुलम दोनों का समाधान किया.


डॉ. अनिल अरोड़ा ने बताया कि पीओईएम प्रोसीजर एक मिनमली इनवेसिव एंडोस्कोपिक ट्रीटमेंट है जिसमें चार प्रमुख चरण शामिल हैं: म्यूकोसल एंट्री, एक सबम्यूकोसल टनल का निर्माण, डायवर्टिकुलम की मायोटॉमी (ओसोफेगल की मांसपेशी को काटना), और निचले ग्रासनली स्फिंक्टर की मायोटॉमी ( एलईएस) अकालेशिया कार्डिया के लिए. प्रक्रिया के दौरान, किसी भी सामने आए वैरिसिस को जमाने और फुलगुरेट करने के लिए खास ध्यान रखा गया, जिससे उपचार के दौरान ब्लीडिंग को रोका जा सके.


डॉ. अनिल अरोड़ा ने बताया, “ये कामयाब इलाज न सिर्फ अपनी जटिलता के लिए बल्कि हमारे द्वारा अपनाए गए नए नजरिए के लिए भी एक उल्लेखनीय उपलब्धि है. पेशेंट जो पहले निगलने से जूझ रहा था, अब नॉर्मल डाइठ का सेवन करने में सक्षम है और हमारे इन्नोवेटिव ट्रीटमेंट के एक हफ्ते के भीतर जीवन में एक नया आयाम है.

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.