देश का एक बड़ा हिस्सा टाइप-2 मधुमेह से पीड़ित है और इसमें उन लोगों की संख्या ज्यादा है, जो यह जानते भी नहीं हैं कि उन्हें डायबिटीज है. टाइप-2 डायबिटीज शरीर में अत्यधिक ब्लड शुगर के कारण होती है, जिसके गंभीर मामले में इंसुलिन इंजेक्शन लेने की सलाह दी जाती है. मगर फिर भी ब्लड शुगर कंट्रोल कर पाना मुश्किल हो जाता है. लेकिन, आने वाले समय में डायबिटीज के इलाज का यह तरीका बदल सकता है और इसका श्रेय भारतीय रिसर्च को जाएगा.


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रिसर्च: डायबिटीज को ठीक करने का क्या है नया तरीका?
लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के इंडोक्राइनोलॉजी विभाग के डॉ. रोहित सिन्हा के निर्देशन में हुई रिसर्च में पैंक्रियाज में बनने वाले ग्लूकॉगन हॉर्मोन को कम करके डायबिटीज के इलाज का नया तरीका खोजा गया है. यह रिसर्च चूहों पर की गई थी, जिसे अंतर्राष्ट्रीय जर्नल मॉलिक्यूलर मेटाबॉलिज्म में प्रकाशित किया जा चुका है. इस शोध में चूहों के पैंक्रियाज में मौजूद एमटीओआरसी-वन प्रोटीन की क्रिया को रोककर ग्लूकॉगन हॉर्मोन को नष्ट किया गया है. जिससे चूहों के ब्लड शुगर के स्तर में कमी देखी गई. संभावना जताई जा रही है कि यह रिसर्च भविष्य में मधुमेह के इलाज की दिशा को बदल सकती है.


Diabetes Treatment: क्या है ग्लूकॉगन हॉर्मोन?
हमारे पैंक्रियाज में दो हॉर्मोन मौजूद होते हैं, पहला इंसुलिन और दूसरा ग्लूकॉगन हॉर्मोन. इंसुलिन हॉर्मोन खाने से शुगर को लेकर एनर्जी के रूप में बदलता है. लेकिन जब शरीर में इंसुलिन का उत्पादन कम होने लगता है या फिर शरीर इंसुलिन के प्रति संवेदनशील नहीं रहता, तो ब्लड शुगर बढ़ने लगती है और टाइप-2 डायबिटीज की समस्या हो जाती है. इसे इस तरह से भी समझा जाए कि जब इंसुलिन का स्तर कम होने लगता है, तभी ग्लूकॉगन हॉर्मोन का स्तर बढ़ने लगता है. मधुमेह के गंभीर मामलों में इंसुलिन इंजेक्शन दिए जाते हैं, ताकि शरीर में इंसुलिन का स्तर बढ़ाया जा सके. लेकिन, यह भारतीय रिसर्च इंसुलिन का स्तर बढ़ाने के साथ ग्लूकॉगन हॉर्मोन के स्तर को कम करने पर जोर देती है.


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रिसर्च पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
लाइफस्टाइल और डायबिटीज रिवर्सल एक्सपर्ट डॉ. एच. के. खरबंदा का कहना है कि, यह रिसर्च काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है, लेकिन इसे कमर्शियली इस्तेमाल होने में समय लगेगा. डॉ. खरबंदा के मुताबिक, ग्लूकॉगन हॉर्मोन को कम करके डायबिटीज का इलाज करने का यह तरीका एडवांस टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों में इंसुलिन इंजेक्शन की निर्भरता को कम कर सकता है. हालांकि, इसका इस्तेमाल और असर देखने के लिए अभी इंतजार करना होगा.


यहां दी गई जानकारी किसी भी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है. यह सिर्फ शिक्षित करने के उद्देश्य से दी जा रही है.