नवजात की स्क्रीनिंग स्वास्थ्य देखभाल का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो शिशुओं में संभावित स्वास्थ्य स्थितियों का पता लगाने के लिए जन्म के तुरंत बाद का लक्ष्य रखता है. इन स्थितियों की प्रारंभिक पहचान से डॉक्टर तुरंत एक्शन लेकर उपचार प्रदान कर सकते हैं. इससे नवजात शिशुओं के दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणामों में काफी सुधार होता है. इस स्टोर में, हम नवजात स्क्रीनिंग के महत्व, स्क्रीनिंग प्रक्रिया और शिशुओं के जीवन पर इसके प्रभाव की पड़ताल करेंगे.


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न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग जन्म के समय स्पष्ट न होने वाली स्थितियों की पहचान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. लैब-न्यूबर्ग डायग्नोस्टिक्स के प्रमुख डॉ. विज्ञान मिश्रा बताते हैं कि समय पर बीमारी का पता लगाने से प्रारंभिक हस्तक्षेप की अनुमति मिलती है, जिससे गंभीर जटिलताओं या यहां तक ​​कि मृत्यु का जोखिम कम हो जाता है. इन स्थितियों की प्रारंभिक पहचान से डॉक्टर उचित उपचार और प्रबंधन योजनाओं को लागू कर सकते हैं, संभावित रूप से दीर्घकालिक विकलांगता को रोक सकते हैं और प्रभावित शिशुओं के जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं.


न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग की जांच जेनिटिक, मेटाबॉलिक और हार्मोनल डिसऑर्डर की एक सीरीज की पहचान करने के लिए डिजाइन की गई है. इसमें फेनिलकेटोनुरिया, जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म,  सिकल सेल रोग और सिस्टिक फाइब्रोसिस शामिल है.


कैसे की जाती है न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग?
नवजात शिशु की जांच में आमतौर पर जन्म के पहले 48 घंटों के भीतर बच्चे की एड़ी से खून की कुछ बूंदें ली की जाती हैं. इस खून के नमूने को एक प्रयोगशाला में भेजा जाता है, जहां संभावित स्वास्थ्य स्थितियों के विभिन्न मार्क और संकेत के लिए विश्लेषण किया जाता है. स्क्रीनिंग प्रक्रिया सुरक्षित, गैर-आक्रामक है और इससे नवजात को न्यूनतम असुविधा होती है.


शिशुओं के जीवन पर प्रभाव
नवजात शिशु की जांच के माध्यम से शीघ्र पता लगाने से शिशुओं और उनके परिवारों के जीवन में महत्वपूर्ण अंतर आ सकता है. यह समय पर हस्तक्षेप, चिकित्सा प्रबंधन और विशेष देखभाल तक पहुंच की अनुमति देता है. लक्षण उत्पन्न होने से पहले स्थितियों की पहचान करके, नवजात शिशु की जांच गंभीर जटिलताओं, विकास संबंधी देरी और विकलांगताओं को रोकने में मदद करती है, जिससे बच्चे के लिए एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित होता है.