केरल में निपाह वायरस के प्रकोप के बीच एक जीव चमगादड़ (फ्रूट बैट्स) निशाने पर है, जो हम मनुष्यों की तरह ही स्तनपायी वर्ग का है. इसे लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं. यह हाल तब है जबकि देश की भोपाल स्थित बीएसएल लेवल-4 वाली लैब ने यह साबित कर दिया है कि केरल में फैले निपाह वायरस के लिए चमगादड़ या कोई अन्य जानवर जिम्मेदार नहीं है. वास्तव में चमगादड़ भले ही निपाह वायरस के वाहक हों, लेकिन इनका इकोसिस्टम में खासा महत्व है. हालांकि हम अंधविश्वास के फेर में इनको अशुभ करार देते हैं और इनकी खासियत पर ध्यान नहीं देते. अगर हम वायरस या बैक्टीरिया के वाहकों की बात करें, तो हर जीव के नॉर्मल फ्लोरा में कई बैक्टीरिया या वायरस मौजूद होते हैं. यहां तक कि मनुष्य के शरीर में भी कई बैक्टीरिया (लगभग 1014) प्राकृतिक रूप से मौजूद होते हैं, जिनमें से कई हानिकारक भी हो सकते हैं, जो अनुकूल दशा मिलने पर कई बार रोग भी पैदा करते हैं.


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ऐसे में धरती के स्तनपायी जीवों के बीच लगभग 1200 प्रजातियों के साथ 20% की हिस्सेदारी रखने वाले चमगादड़ों में कई वायरस का होना आश्चर्यजनक बात नहीं है. खास बात यह कि इनमें से कई वायरस ऐसे हैं, जो मनुष्यों के लिए हानिकारक नहीं होते. जैसे भारत में फ्रूट बैट्स (शाकाहारी चमगादड़) की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन इनमें से ऑनीटेक्टेरिस स्पोलिया, ग्रेटर इंडियन फ्लाइंग फॉक्स, हिप्पोसिडेरस लार्वाट्स और स्कॉटोफिलस कुहली ही निपाह वायरस की वाहक होती हैं.



अब बात चमगादड़ों से होने वाले फायदों की करते हैं...


1. चमगादड़ का कृषि में योगदान- कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार चमगादड़ ऐसे कीड़े-मकोड़ों और मक्खियों को खा जाते हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. इस संदर्भ में एक घटना का जिक्र अहम हो जाता है. काफी समय पहले अजंता-एलोरा की गुफाओं से चमगादड़ों को भगा दिया गया था. इसका कारण यह डर था कि वे वहां के चित्रों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, लेकिन इसका उल्टा परिणाम देखने को मिला था. इन गुफाओं के आसपास की फसलों में कीड़े लगने लगे और वे बर्बाद होने लगीं. बाद में जब चमगादड़ फिर आ गए, तो फसलों की स्थिति में सुधार हुआ.
2. घर में होने पर चमगादड़ मच्छरों को भी खत्म कर देते हैं. अध्ययनों के अनुसार चमगादड़ एक बार में अपने शरीर के भार के बराबर मच्छर खा सकते हैं. छोटे भूरे चमगादड़ एक घंटे में लगभग 500 मच्छर खा सकते हैं.
3. चमगादड़ के मल में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम जैसे तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो जैविक खाद का काम करते हैं.
4. पक्षियों और मधुमक्खियों की तुलना में चमगादड़ अधिक तेजी से परागण (Pollination) करते हैं, क्योंकि इनका शरीर बड़ा और रोमदार होता है.
5. फलाहारी चमगादड़ पेड़ों पर ही या अपने अड्डे पर फल लाकर खाते हैं. ऐसे में जब ये उड़कर एक पेड़ से दूसरे पेड़ या किसी अन्य स्थान पर जाते हैं, तो रास्ते में कई बार फलों के बीज गिर जाते हैं. इस प्रकार ये आम, अमरूद के बीजों के फैलाव में सहायक होते हैं.
6. कई अध्ययनों में सामने आया है कि चमगादड़ों के शरीर से जो गंध निकलती है वह कई ऐसे वायरस को नष्ट कर देती है जो मनुष्य के लिए हानिकारक होते हैं.


मान्यताओं में अंतर
जहां प्राचीन भारतीय मान्यताओं में चमगादड़ की घर में मौजूदगी अशुभ मानी जाती है, वहीं फेंगसुई मान्यता के अनुसार यह सुख और समृद्धि तो लाता ही है आपको दीर्घायु भी बनाता है.



भारत में ही पूजा भी होती है...
बिहार के ऐतिहासिक वैशालीगढ़ में चमगादड़ों की पूजा होती है. वहां मान्यता है कि चमगादड़ उनकी रक्षा करते हैं. इसके पीछे एक कहानी है. मध्यकाल में वैशाली में एक महामारी फैली थी जिसके कारण बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई थी. इसी दौरान वहां बड़ी संख्या में चमगादड़ों ने रहना शुरू कर दिया. तब से वहां किसी प्रकार की महामारी नहीं आई. तभी से वहां चमगादड़ शुभ माने जाने लगे.


वैसे भी प्राकृतिक रूप से वीरान और उजड़े हुए क्षेत्रों में रहने वाले चमगादड़ (फ्रूट बैट्स) अगर हम मनुष्यों के पास आ पहुंचे हैं, तो इसके लिए भी हम ही जिम्मेदार हैं. फलों पर निर्भर रहने वाला यह जीव घटते जंगलों और भोजन की खोज में रहवासी इलाकों में ठिकाना बनाने लगा है.