कांगो फीवर पशुओं के शरीर से चिपके रहने वाले हिमोरल नामक टिक के काटने या इससे संक्रमित खून के संपर्क में आने से होता है. इसे क्रीमियन-कांगो हेमोरेजिक फीवर भी कहते हैं. यह एक वायरल इंफेक्शन है, यानी की यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फ्लूइड, स्लाइवा, या खून के जरिए फैल सकता है.


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कांगो फीवर का सबसे पहला मामला 1944 में क्रीमिया में मिला था. इसके बाद इस वायरस का प्रकोप एशिया और अफ्रीका के कई क्षेत्रों में और यूरोप में बाल्कन, स्पेन, रूस और तुर्की में दिखायी दे चुका है. हाल ही में जोधपुर में इसका मामला सामने आया, यह 2019 के बाद का पहला केस है जिसमें पशुपालन करने वाली 51 साल की एक महिला की मौत हो गयी है. ऐसे में यदि आप भी पशुओं के संपर्क में रहते हैं, तो यहां इस वायरस के बारे में अच्छी तरह से समझ लें.


क्या कांगो फीवर जानलेवा है

अस्पताल में कांगो फीवर से भर्ती हुए मरीजों में मृत्यु दर लगभग 30% है. सीसीएचएफ एक वायरल बीमारी है जो गंभीर बीमारी का कारण बन सकती है, जिसमें मल्टी ऑर्गन फेलियर, शॉक और इंटरनल ब्लीडिंग शामिल है.


कांगो फीवर के लक्षण

इसके लक्षण आमतौर पर हल्के और फ्लू की तरह शुरू होते हैं. इसमें बुखार, मांसपेशियों में दर्द, अकड़न और चक्कर आना, मतली, उल्टी, गले में खराश, पेट में दर्द और मूड में उतार-चढ़ाव शामिल है. 2 से 4 दिनों के बाद, अवसाद या थकान के लक्षण दिखाई दे सकते हैं. कई गंभीर मामलों में लिवर डैमेज होने का खतरा भी होता है.


कांगो फीवर का इलाज

CCHF के लिए कोई विशिष्ट एंटीवायरल दवा या टीका नहीं है. ऐसे में इसका इलाज लक्षणों पर आधारित होता है. आमतौर पर एंटीवायरल दवा रिबाविरिन का उपयोग सीसीएचएफ के इलाज के लिए किया जाता है, जो काफी प्रभावी असर करता है.


बचने के उपाय

लोगों में इस इंफेक्शन को कम करने का एकमात्र तरीका जोखिम कारकों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और लोगों को वायरस के जोखिम को कम करने के बारे में शिक्षित करना है. अगर आपके यहां जानवर हैं तो उनकी सफाई को सुनिश्चित करें और इस दौरान खुद को अच्छी तरह से कवर रखें.

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Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.