Rare Cancers: भारत में इन 5 रेयर कैंसर का खतरा सबसे ज्यादा, आखिर क्यों चलैंजिंग है इनका ट्रीटमेंट?
Rare Cancers in India: कैंसर एक बेहद खतरनाक बीमारी है, भारत की बात करें तो पिछले कुछ दशकों में रेयर कैंसर के काफी ज्यादा मामले देखने को मिल रहे हैं, लेकिन इसको लेकर ट्रीटमेंट की कमी है और ये काफी महंगा भी है.
Top 5 Rare Cancers Prevalent in India: भारत में काफी लोग ऐसे हैं जो रेयर कैंसर को मैनेज करने में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. पारंपरिक ज्ञान बताता है कि सभी कैंसर एक जैसे होते हैं, लेकिन सच्चाई इससे परे है. कुछ कैंसर काफी जटिल होते हैं, साथ ही भारत में हेल्थ केयर सिस्टम, डाइगनोसिस और ट्रीटमेंट के चैलेंज भी मौजूद हैं. इन बीमारियों को मैनेज करना इसलिए भी दिक्कतों से भरा है क्योंकि यहां जनसंख्या के हिसाब से अवेरनेस प्रोग्राम की कमी, स्पेशियल फैसिलिटीज और ट्रेंड ऑन्कोलोजी की कमी है. इसके अलावा महंगी स्वास्थ्य सेवाएं और रेलेवेंट हेल्थ इंश्योरेंस की कमी मरीजों और उसके परिवार पर आर्थिक दबाव बढ़ा देती हैं.
भारत में मौजूद 5 रेयर कैंसर
भारत में कैंसर के मरीजों की तादाद लगातार बढ़ रही है.फोर्टिस अस्पताल शालीमार बाग दिल्ली के सीनियर कंसल्टेंट और यूनिट हेड (मेडिकल ऑन्कोलॉजी) डॉ. विनीत गोविंदा गुप्ता (Dr. Vineet Govinda Gupta) ने बताया कि हमारे देश में कुछ रेयर कैंसर के मामलों में इजाफा हो रहा है, साथ ही इसके ट्रीटमेंट को लेकर चैलेंज भी ज्यादा हैं. आइए जानते हैं कि वो दुर्लभ कैंसर कौन-कौन से हैं जिसकी जानकारी बेहद जरूरी है.
1. सॉफ्ट टिश्यू सारकोमा (Soft Tissue Sarcoma)
सॉफ्ट टिश्यू सारकोमा एक रेयर टाइट ऑफ कैंसर है, इसके हेटरोजेनेटी के कारण डाइगनोसिस और ट्रीटमेंट मुश्किल है. इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए कई तरह की कोशिशें की जा सकती हैं जैसे सर्जरी, रेडिएशन और कीमोथेरेपी शामिल हैं. अगर भारत में मोलेकुलर डाइगनोसिस टूल की उपलब्धता को बढ़ाया जाएगा तो बेहतर ट्रीटमेंट किया जा सकता है.
2. प्राइमरी सीएनएस लिंफोमा (Primary CNS Lymphoma)
प्राइमरी सीएनएस लिंफोमा और अग्रेसिव ब्रेन ट्यूमर है. इसके ट्रीटमेट में मेथोट्रेक्सेट बेस्ड कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी का हाई डोज दिया जाता है. हलांकि इसके इलाज की टॉक्सिसिटी के कारण साइड इफेक्ट्स भी होते जिसके लिए मेटिक्यूलस मैनेजेमेंट और स्पेशियलाइज्ड केयर की जरूरत पड़ती है जिसका भारत में आभाव है.
3. चाइल्डहुड सॉलिड ट्यूमर्स (Childhood Solid Tumors)
न्यूरोब्लास्टोमा या विल्म्स ट्यूमर चाइल्डहुड सॉलिड ट्यूमर्स का प्रकार है जो काभी दुलर्भ माना जाता है, लेकिन अगर इसे जल्दी डाइगनोज किया जाए तो इसका इलाज किया जा सकता है. इस बीमारी के ट्रीटमेंट के लिए ज्यादा से ज्यादा पिडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी यूनिट्स लगाने की जरूरत है जिसमें स्पेशियलाइज्ड स्टाफ और सपोर्टिव केयर सर्विस हो जिससे पीड़ित बच्चे और उनके परिवार की जरूरतों को पूरा किया जा सके.
4. थिमिक कार्सिनोमा (Thymic Carcinoma)
ये थाइलेमस ग्लैंड का बेहद दुर्लभ प्रकार का कैंसर है, आमतौर पर इसे तब तक डिटेक्ट नहीं किया जा सकता, जब तक ये एडवास्ड स्टेज में न पहुंच जाए. इसके ट्रीटमेंट में मेटिक्यूलस सर्जिकल रेसेक्शन की जरूरत है, जिसकी एक्सपर्टीज की भारत के कई हिस्सों में भारी कमी है. थोरेसिक सर्जिकल डिपार्टमेंट को मजबूत करके और टारगेट थेरेपीज के रिसर्च को बढ़ाकर बेहतर नतीजे हासिल किए जा सकते हैं.
5. एड्रिनोकोर्टिकल कार्सिनोमा (Adrenocortical Carcinoma)
ये एड्रिनल ग्लैंड का रेयर ट्यूमर है, जिसके लिए मरीजों को काफी चैलेंज फेस करना पड़ता है क्योंकि इस डिजीज का नेचर बेहद अग्रेसिव और कॉम्पलेक्स होता है जो हार्मोनल मैनेजमेंट की जरूरत होती है. बीमारी के अर्ली स्टेज में केयरफुल सर्जिकल रिसेक्शन की जरूरत होती है, जबकि डिजीज के एडवास्ड स्टेज में टार्गेटेड थेरेपी, हार्मोन थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी करनी होती है. ये सभी ट्रीटमेंट भारत में सीमित और महंगे हैं. इसके लिए काफी मजबूत मल्टीडिसिप्लिनरी ऑन्कोलोजी टीम जरूरत होती है, साथ ही अगर सिस्टेमिक थेरेपी को बेहतर किया जाए जो सर्वाइवल रेट बढ़ सकता है.