इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) के ताजा आंकड़ों से भारत और विकसित देशों जैसे अमेरिका और कनाडा के बीच कैंसर के खतरे में चौंकाने वाला अंतर सामने आया है. भारत में 75 साल से कम की आयु में कैंसर होने का खतरा काफी कम है (जो 10.6% है) जबकि अमेरिका में यह 34.3% और कनाडा में 32.2% है. हालांकि, कैंसर से होने वाली मौतों के आंकड़े भारत में चिंताजनक हैं. भारत में कैंसर से मृत्यु दर 7.2% है, जो अमेरिका और कनाडा के 8.8% के आंकड़ों के लगभग बराबर है.


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IARC का अनुमान है कि 2050 तक दुनिया भर में नए कैंसर के मामलों में 77% की वृद्धि होगी, जो 35 मिलियन (3.5 करोड़) से अधिक मामलों तक पहुंच जाएगी. यह वृद्धि आबादी के बढ़ने, उम्र बढ़ने, तंबाकू, शराब और मोटापे जैसे रिस्क फैक्टर के संपर्क में बदलाव के कारण हो रही है. 30-50% कैंसर के मामलों को रोका जा सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) जागरूकता बढ़ाने, जोखिम फैक्टर के संपर्क को कम करने और हेल्दी लाइफस्टाइल को बढ़ावा देने के लिए सदस्य देशों के साथ मिलकर काम करता है.


कैंसर का जल्दी पता चलने पर इलाज संभव है: इन लक्षणों पर दें ध्यान
नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज(NCDs) की रोकथाम और कंट्रोल के लिए WHO का ग्लोबल एक्शन प्लान 2025 तक प्रमुख रिस्क फैक्टर पर ध्यान केंद्रित करते हुए नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज से होने वाली समय से पहले मृत्यु दर को कम करने का एक रोडमैप प्रस्तुत करता है.


तंबाकू: कैंसर से होने वाली मौतों का प्रमुख कारण, हर साल 8 मिलियन से अधिक मौतें होती हैं.
शराब: 7 प्रकार के कैंसर से जुड़ा हुआ है, जिससे सालाना 740,000 नए मामले सामने आते हैं.
मोटापा: अधिक वजन और मोटापा विभिन्न कैंसर से जुड़े हैं.
संक्रमण: हेपेटाइटिस और HPV जैसे वायरस कम और मध्यम आय वाले देशों में 25% कैंसर मामलों में योगदान करते हैं.
पर्यावरण प्रदूषण: बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं.
रेडिएशन: काम से संबंधित रिस्क और रेडिएशन कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं.


ई-क्लीनिकल मेडिसीन में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि 2020 में भारत में लगभग 2.25 लाख लोगों की मौत रोके जा सकने वाले रिस्क फैक्टर के कारण हुई. इसका प्राथमिक कारण तंबाकू धूम्रपान था, जिससे 1.1 लाख मौतें हुईं, उसके बाद HPV (89,100), शराब का सेवन (41,600) और अधिक वजन (8,000) था. चीन में रोके जा सकने वाली कैंसर से होने वाली मौतों (11.4 लाख) में सबसे आगे है, उसके बाद भारत (2.2 लाख) है. जैसे-जैसे दुनियाभर में कैंसर का बोझ बढ़ता है, रोकथाम को प्रायोरिटी देना और रोके जा सकने वाले रिस्क फैक्टर को दूर करना सभी के लिए स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है.