अंजनील कश्यप, गुवाहाटी : पूर्वोत्तर के राज्य खासकर असम और त्रिपुरा बांग्लादेश के गठन 1971 के 25 मार्च के बाद से ही बांग्लादेशी घुसपैठ समस्या से जूझ रहे हैं. आए दिन बंगलादेशी नागरिकों के चोरी छिपे सीमा पार कर भारत की उत्तर पूर्वी राज्यो में प्रवेश करने के मामले रौशनी में आते रहते हैं. कुछ अरसा पहले असम में 21 बांग्लादेशी नागरिकों को बिना पासपोर्ट, वीसा के घुसने के जुर्म में असम की बॉर्डर पुलिस ने गिरफ्तार किया था. ये 21 बांग्लादेशियों ने असम के करीमगंज जिले के सुतरकाण्डी भारत बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा से असम में घुसे थे.


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शनिवार को इन 21 बांग्लादेशी नागरिकों को असम बॉर्डर पुलिस और बीएसएफ के अगुवाई में करीमगंज जिले के सुतरकाण्डी बांग्लादेश सीमा पर बांग्लादेश राइफल्स और बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को सौंप दिया गया.  


बांग्लादेश के गरीब और मजदूर वर्ग के लोगो के लिए भारत की भूमि में आसानी से मज़दूरी के रोज़गार और कमाने के अन्य कई मौके मिल जाते हैं. इसी आस में ये बांग्लादेशी अक्सर असम के करीमगंज, धुबड़ी से सटे अंतरराष्ट्रीय भारत बांग्लादेश सीमा से घुसपैठ करते हैं.


बता दें कि असम में इसी बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ 1979 से 1984 तक 6 साल अखिल असम छात्र संगठन के नेतृव में जनता ने आंदोलन किया था. उसके बाद 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ असम की सम्प्रुभता, भौगौलिक, राजनीतिक, सामाजिक अन्य बिंदुओं के रक्षा कवच के लिए समझौता (असम एकॉर्ड) हस्ताक्षर हुआ था.


इसी क्रम में एनआरसी भी असम में भरतीय नागरिकों के सटीक परिचय के कारण किया जा रहा है. जो 1971, 24 मार्च से पहले असम या हिंदुस्तान के किसी भी भाग से असम में आए नागरिकों की सही पहचान के साथ मूल और शुद्ध भारतीय नागरिकता का मापदंड होगा.