नई दिल्ली : भारत में पिछले एक दशक में बाल विवाह में तेजी से कमी आई है. संयुक्त राष्ट्र की बच्चों से संबंधित एजेंसी यूनिसेफ ने कहा कि आज से 10 साल पहले 47 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की उम्र से पहले कर दिया जाता था जो अब घटकर 27 प्रतिशत हो गया है. यूनिसेफ ने बताया कि बाल विवाह के आंकड़ों में वैश्विक स्तर पर कमी आई है. पिछले एक दशक में 25 मिलियन बाल विवाह के मामले रोके गए. रिपोर्ट में बताया गया कि एक दशक पहले हर 4 में से एक लड़की की शादी 18 साल की उम्र से पहले ही हो जाती थी. साउथ एशियन देशों में बाल विवाह के आंकड़े तेजी से गिरे हैं.  


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भारत में हुई इस कमी ने वैश्विक स्तर पर बाल विवाहों की संख्या में कमी लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कुल मिलाकर बाल्यावस्था में शादी करने वाले लड़कियों के अनुपात में 15 प्रतिशत कमी आई है. यूनिसेफ द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक पिछले दस सालों में ढाई करोड़ बाल विवाह रोके गए. इनमें सबसे ज्यादा कमी दक्षिण एशिया में दर्ज की गई जहां भारत सबसे ऊपर था.


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यूनिसेफ ने इस कमी के पीछे लड़कियों की शिक्षा, किशोरियों के लिए सरकार का सक्रिय निवेश और बाल विवाह की अवैधता और उसके नुकसान को लेकर मजबूत जन जागरुकता को कारण बताया है.


यूनिसेफ की मदद से बदल रही आंगनबाड़ी की सूरत
उत्तर प्रदेश में आंगनबाड़ी केंद्रों की हालत में सुधार लाने के लिए यूनिसेफ ने अपनी तरफ से एक प्रयास शुरू किया है और इसमें लोगों का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है. पहले आंगनबाड़ी में बच्चे आने से कतराते थे, लेकिन अब यूनिसेफ की पहल से तस्वीर लगातार बदल रही है. 


दरअसल, यूनिसेफ के अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन प्रोग्राम (ईसीसीई) के माध्यम से आंगनबाड़ी केंद्र की कार्य संस्कृति और वातावरण में बदलाव आया है. यहां आने वाले बच्चों को दीवारों पर टंगे बैग के नाम जाने बगैर महक से ही सब्जी, फल-फूलों को पहचानना सिखाया जाता है. आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों के सेहत का भी ख्याल रखा जाता है. उन्हें शारीरिक रूप से मजबूत बनाने के लिए खेलकूद भी कराया जाता है. यूनिसेफ का दावा है कि बनारस जिले में ही लगभग 100 से अधिक केंद्रों पर इसका असर साफ तौर पर महसूस किया जा सकता है.