अहमदाबादः जहां एक ओर दुनिया भर के लोग ऐशो-आराम को पाने के लिए पैसे के पीछे भाग रहे हैं तो वहीं कुछ ऐसी शख्सियत भी मौजूद हैं जो मोह-माया के बंधन और धन-वैभव को त्याग साधु-संतों के सादगी भरे जीवन का चुनाव करते हैं. कुछ ऐसा ही हाल परिशी शाह का है जिन्‍होंने सब कुछ त्याग साध्वी बनने का फैसला लिया है. परिशी ने जैन साध्वी बनने के लिए दीक्षा ग्रहण समारोह के तैयारियां भी शुरू कर दी हैं.


हॉन्‍गकॉन्‍ग में पिता करते हैं डायमंड का कारोबार


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परिशी शाह ने सभी प्रकार के ऐशो-आराम को बेहद करीब से देखा है लेकिन दुनिया की चकाचौंध और धन-दौलत उन्हें आकर्षित नहीं कर पाई. परिशी के पास साइकॉलजी की डिग्री भी है जिसे उन्होंने हॉन्‍गकॉन्‍ग से हासिल किया है. उनकी शुरुआती पढ़ाई भी वहीं हुई है. उनके पिता हॉन्‍गकॉन्‍ग में डायमंड का कारोबार चलाते हैं. उनके पास वो सब कुछ है जिसे हासिल करने के लिए लोग कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन फिर भी वे साध्वी बनने जा रही हैं. उनका भाई जयनाम अमेरिका में डाटा साइंस की पढ़ाई कर रहा है. 


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कैसे दिमाग में आया साध्वी बनने का ख्याल


परिशी का कहना है कि जब वे भारत आई थीं तब वे अपनी नानी संग डेरासर (जैन मंदिर) गईं और जहां उन्होंने प्रवचन सुने. मंदिर में सुनाए गए प्रवचनों से परिशी इतना प्रभावित हुईं कि तबसे वे रेस्टोरेंट जाना और फिल्में देखना ही भूल गई हैं.  परिशी ने आगे बताया कि बाद में अधिकतर साध्वी के प्रवचन सुनने लगीं और इस बीच उन्हें अलग ही तरह के आनंद की अनुभूति हुई. साध्वी के बीच रहकर परिशी को ज्ञान हुआ कि खुशी व्यक्ति के अंदर ही समाहित होती है जिसे लोग चकाचौंध की दुनिया में खोज रहे हैं. इस अलग अनुभूति के बाद ही परिशी ने साध्वी बनने का फैसला लिया है. परिशी के साध्वी बनने में उनकी मां और नानी ने भी उनका साथ दिया. अब ये तीनों ही जैन साध्वियां बनने का ठान चुकी हैं. 


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मां-नानी के साथ जल्द दीक्षा लेंगी परिशी 


परिशी ने साध्वी बनने का फैसला महज 23 वर्ष की उम्र में लिया है. परिशी अपनी नानी इंदुबेन शाह और मां हेतलबेन के साथ रामचंद्र समुदाय की साध्वी हितदर्शनीश्रीजी के मार्गदर्शन में दीक्षा लेने के लिए तैयार हैं. उत्तर गुजरात के बनासकांठा जिले के दीसा और धानेरा में रहने वाले परिवार के तीन पीढ़ियों की महिलाएं जल्द ही जैन साध्वी की दीक्षा ग्रहण करेंगी. सबसे पहले परिशी ने साध्वी बनने का सोचा और फिर उनकी मां भी हॉन्‍गकॉन्‍ग से भारत आ पहुंची. परिशी की मां का कहना है कि वे अपने बच्चों के विवाह के साध्वी बनने का सोच रही थीं. चूंकि उनकी बेटी ने शादी न कर साध्वी बनने का फैसला लिया तो वे भी उसके साथ दीक्षा लेने जा रही हैं.