नई दिल्ली: मोदी सरकार ने अलगाववादी नेता यासीन मलिक के नेतृत्व वाले जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के खिलाफ सख्त कदम उठाते हूए शुक्रवार को आतंकवाद विरोधी कानून के तहत प्रतिबंधित कर दिया. संगठन को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत प्रतिबंधित किया गया है. वहीं, यासीन मलिक गिरफ्तार फिलहाल वह जम्मू की कोट बलवल जेल में बंद है. मलिक को 22 फरवरी को हिरासत में लिया गया था.  यह जम्मू-कश्मीर में दूसरा संगठन है जिसे इस महीने प्रतिबंधित किया गया है. इससे पहले, केंद्र ने जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर पर प्रतिबंध लगा दिया था.


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अधिकारियों ने बताया कि संगठन पर जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियों को कथित तौर पर बढ़ावा देने के लिए प्रतिबंध लगाया गया है. गृह सचिव राजीव गौबा ने बताया कि जेकेएलएफ को प्रतिबंधित कर दिया गया है क्योंकि सरकार की आतंकवाद को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने की नीति है. उन्होंने यह भी बताया कि जेकेएलएफ के खिलाफ जम्मू एवं कश्मीर पुलिस ने 37 एफआईआर दर्ज की हैं. दो मामले वायुसेना के कर्मी की हत्या से जुड़े हैं जिसकी एफआईआर सीबीआई ने दर्ज की थी. राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने भी केस दायर किया है जिसकी जांच चल रही है. 


 



गौबा के मुताबिक, "जेकेएलएफ जम्मू कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियों में सबसे आगे है, वह 1989 में कश्मीरी पंडितों की हत्याओं के लिए जिम्मेदार रहा है, जिसकी वजह से उन्हें राज्य से बाहर पलायन करना पड़ा." 


जेकेएलएफ 1988 से घाटी में सक्रिय है और कई आतंकी गतिविधियों में शामिल रहा है. संगठन ने 1994 में हिंसा का रास्ता छोड़ने का दावा किया लेकिन अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देता रहा. गौबा ने बताया कि यह संगठन मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया का अपहरण में शामिल था. इस घटना को दिसंबर 1989 में अंजाम दिया गया. तब मुफ्ती मोहम्मद देश के तत्कालीन गृहमंत्री थे. यासीन मलिक 1989 में घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन का मास्टर माइंड था और यही उस नरसंहार के लिए जिम्मेदार है. 


14 फरवरी को हुए आतंकी हमले के बाद जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने कई अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस ले ली थी जिसमें मलिक, सैयद अली शाह गिलानी, शब्बीर शाह और सलीम गिलानी शामिल हैं.