Delhi Euthanasia case: मां-बाप को भगवान का दर्जा दिया गया है. उनसे बड़ा कोई हितैषी नहीं होता. ममता और प्रेमभरी बातों के बीच अगर किसी दुखद परिस्थिति में कोई माता-पिता अपने बच्चे की मृत्यु की कामना कर रहे हों, तो जरूरी नहीं कि ये उनकी क्रूरता ही हो. क्योंकि यह कोई दुर्लभ मामला भी हो सकता है जिसमें वो शायद बच्चे का कष्ट देखकर सहन ना कर पा रहे हों. इच्छामृत्यु (Euthanasia) की मांग को लेकर दिल्ली में एक ऐसा मामला सामने आया है जो किसी भी संवेदनशील शख्स की आत्मा को झकझोर कर रख देगा. दरअसल ये एक बेबस पिता के बिस्तर पर पड़े बेटे हरीश की दुखभरी कहानी है जिसमें वो परिस्थितियों के आगे लाचार हैं. जो बेटे को पल-पल घुटता और तड़पता हुए देखने को मजबूर हैं.


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इसलिए 62 वर्षीय बुजुर्ग पिता ने बेटे के निष्क्रिय इच्छामृत्यु (passive euthanasia) के अनुरोध का आकलन करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड के गठन की मांग करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) में याचिका दायर की थी. HC ने 8 जुलाई को उनकी याचिका खारिज कर दी थी. अब उनकी ये दुखभरी कहानी लोगों को इमोशनल कर रही है.


बेटे की मौत की कामना!


ऐसे में अशोक राणा और उनकी पत्नी को इस अनुरोध के साथ अदालत जाने के लिए मजबूर हुए कि उनके बेटे हरीश को अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति दी जाए. पिता का कहना है कि वो रोज भगवान से अपने बेटे को अपने पास बुला लेने की प्रार्थना करते हैं, ऐसा करना आसान नहीं होता. ये कहते हुए भी उनका कलेजा छलक पड़ता है. चूंकि इस मामले में और कुछ नहीं हो सकता, इसलिए वो HC में बेटे की इच्छामृत्यु की याचना लेकर गए थे. पिता का ये भी कहा, 'भगवान के फैसले के आगे किसी की मर्जी नहीं चलती लेकिन उनकी सुनवाई न ऊपरवाले की अदालत में हो रही और ना ही धरती की अदालत में कोई उनकी फरियाद सुन रहा है.'


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पिता की सैलरी 28000 रुपए जिसमें 27000 लेती थी नर्स 


इस लाचार पिता ने अपनी दुखभरी कहानी आगे बताते हुए कहा, 'हरीश की ऐसी हालत 11 सालों से है. हमने उसके इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी. उसकी देखभाल के लिए एक नर्स का भी इंतजाम किया जिसका खर्च 27000 रुपए था. जबकि उनकी सैलरी बस 28000 रुपए महीना थी. बस कैसे परिवार का पेट पल रहा है, भगवान जानता है. बीते कुछ सालों से बस दो बातें ही जिंदगी का हिस्सा बन गईं. दो वक्त की रोटी और बेटे का इलाज. लेकिन अब जब उसकी हालात दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है तो उसे इस हालत में नहीं देखा जाता.'


हरीश की दर्दभरी जिंदगी पर क्या बोला हाईकोर्ट?


हरीश 2013 में सिर में चोट लगने के बाद से बिस्तर पर निष्क्रिय स्थिति में पड़ा है. हरीश पंजाब यूनिवर्सिटी का छात्र था और 2013 में अपने ‘पेइंग गेस्ट हाउस’ की चौथी मंजिल से गिरने के बाद उसके सिर में गंभीर चोट लगी थी. उसके पिता की अर्जी में कहा गया है कि याचिकाकर्ता के परिवार ने उसका इलाज करने की पूरी कोशिश की है, लेकिन वह 2013 से स्थायी तौर पर बिस्तर पर पड़ा है क्योंकि ‘डिफ्यूज एक्सोनल’ चोट के कारण वह 100 फीसदी अपंग हो गया है. उसके ठीक होने की कोई गुंजाइश नहीं है. 


याचिका में कहा गया है कि युवक के परिवार ने कई चिकित्सकों से संपर्क किया लेकिन उन्हें बताया गया कि उसके ठीक होने की कोई संभावना नहीं है. याचिका में कहा गया है कि 11 साल से बिस्तर पर पड़े रहने के कारण उसके शरीर में कई गहरे घाव हो गए हैं जिससे संक्रमण और बढ़ गया है.


हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले के तथ्य इंगित करते हैं कि इस युवक को यंत्रों के जरिये जिंदा नहीं रखा गया है और वह बिना किसी अतिरिक्त बाहरी सहायता के खुद से जिंदा रहने में सक्षम है.


जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, ‘याचिकाकर्ता किसी भी लाइफ सपोर्ट सिस्टम यानी वेंटिलेटर जैसी जीवन रक्षक प्रणाली पर नहीं है और वह बिना किसी बाहरी सहायता के जीवित है. हालांकि कोर्ट उसके माता-पिता के प्रति सहानुभूति रखती है. लेकिन याचिकाकर्ता असाध्य रूप से बीमार नहीं है, ऐसे में ये अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती है और उस अनुरोध पर विचार करने की अनुमति नहीं दे सकती है जो कानूनी रूप से मानने योग्य नहीं है.’


HC ने याचिका में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि ‘सक्रिय इच्छामृत्यु’ कानूनी रूप से अस्वीकार्य है. 


उसने कहा, ‘इस प्रकार याचिकाकर्ता जीवित है और चिकित्सक सहित किसी भी व्यक्ति को कोई घातक दवा देकर किसी अन्य व्यक्ति को मौत देने की अनुमति नहीं है, भले ही इसका उद्देश्य रोगी को दर्द और पीड़ा से राहत देना हो. इसलिए वह याचिकाकर्ता के इस अनुरोध को स्वीकार करने के प्रति इच्छुक नहीं है कि उसे मेडिकल बोर्ड के पास भेजा जाए ताकि यह विचार किया जा सके कि उसे ‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ की अनुमति दी जा सकती है या नहीं. कोर्ट ने यह बात कहते हुए याचिका खारिज कर दी.